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चंबल में था फूलन देवी के खौफ का साया, फिल्म से मिला था बैंडिट क्वीन का नाम, यहां पढ़ें - 14 फरवरी से जुड़ीं 14 बातें

Bandit Queen Phoolan Devi Story कानपुर देहात के बेहमई गांव में बीस लोगों को एक साथ खड़ा करके मौत के घाट उतारने वाली फूलन देवी की हत्या के मामले में आरोपित शेर सिंह राणा चर्चा में आया था। फूलन के नरसंहार से पूरा देश हिल गया था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Thu, 31 Mar 2022 04:42 PM (IST)
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बीहड़ की दस्यु सुंदरी थी फूलन देवी।

कानपुर, जागरण संवाददाता। मशहूर अभिनेता विद्युत जामवल अभिनित फिल्म के मुख्य किरदार शेर सिंह राणा का नाम यूपी में तब चर्चा में आया था जब उसने दिल्ली में पूर्व सांसद फूलन का कत्ल कर दिया था। यही फूलन का गिरोह कभी कानपुर देहात और जालौन के यमुना तटवर्ती चंबल के बीहड़ में खौफ का पर्याय था और उसने बेहमई गांव में बीस लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया था। जालौन जिले के एक छोटे से गांव में मल्लाह के घर में जन्मी फूलन पर अत्याचार और फिर उसके द्वारा किए नरसंहार ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। गरीबी, अत्याचार और नरसंहार की उसकी कहानी को बॉलीवुड ने बैंडिट क्वीन का नाम देकर पर्दे पर भी उतारा। आइए जानते हैं कौन थी फूलन और कैसे चर्चा में आई..।

1-यूपी के जालौन जनपद स्थित 'घूरा का पुरवा' गांव में मल्लाह देवी दीन की पत्नी ने 10 अगस्त 1963 को फूलन देवी काे जन्‍म दिया था।

2-जमीन हड़पने पर चाचा के खिलाफ आवाज उठाने पर सजा के तौर पर पिता ने महज दस साल की उम्र में फूलन की शादी अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दी थी।

3-पहली रात से शुरू हुई अधेड़ उम्र के पति की दरिंदगी को बर्दाश्त न कर सकी और सेहत बिगड़ने पर वह घर छोड़कर भाग निकली लेकिन घरवालों ने उसे दोबारा पति के पास भेज दिया। वह उसकी दरिंदगी सहती रही और बर्दाश्त के बाहर होने पर वह फिर भाग निकली।

4-पति के घर से भागकर वह फिर गांव पहुंची और चाचा के खिलाफ मोर्चा खोला तो चचेरे भाई ने उसे जेल भिजवाया, जहां फिर उसे दरिंदगी का शिकार होना पड़ा।

5-जेल से निकलने के बाद उसे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया तो पुरुषों के विरोध का सामना करना पड़ा। इससे वह चंबल के बीहड़ में छिपकर रहने लगी और डाकुओं की मदद करने लगी, अब वह 18 साल की हो चुकी थी।

6-गिरोह में सरदार बाबू गुज्जर की नियत फूलन देवी पर खराब हुई और फूलन के साथ जबरदस्ती शुरू कर दी। इसपर गिरोह में दूसरे नंबर पर रहने वाले विक्रम मल्लाह ने विरोध किया और जब बाबू नहीं माना तो उसकी हत्या कर दी। इसके बाद विक्रम मल्लाह पर फूलन भरोसा करने लगी और दोनों के बीच संबंध भी बने। बाद जेल से छूटकर आए श्रीराम और लालाराम ने गिरोह में फूट डलवाकर विक्रम की हत्या करवा दी।

7-लालाराम और श्रीराम डाकुओं की मदद से नाराज होकर फूलन को बंधक बना लिया और बेहमई गांव में कैद करके उससे दरिंदगी करते रहे। कई दिन तक उससे सामूहिक दुष्कर्म हुआ और उसे निर्वस्त्र गांव में भी घुमाया गया था। किसी तरह वह उनके चंगुल से छूटकर फिर वह डाकुओं का गिरोह बनाकर हथियार उठा लिया।

8-प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही फूलन को सात महीने बाद मौका मिला और 14 फरवरी 1981 को गिरोह के साथ बेहमई गांव पहुंच गई। यहां हर घर से लोगों को बाहर निकाला और एक कतार में खड़ा कर दिया। उसने बंदूक उठाई और सामने खड़े 21 लोगों को पर ताबड़तोड़ गोलियों से बौछार कर दी थी, जिसमें बीस लोगों की मौत से पूरा देश हिल गया था। बेहमई कांड की गूंज केंद्र से लेकर यूपी और एमपी के विधानसभा में भी सुनाई दी थी। अब दस्यु सुंदरी फूलन गिरोह का खौफ बीहड़ में सुनाई देने लगा था और दो साल तक गिरोह सक्रिय रहा।

9-मौत की सजा न देने और परिवार को कोई नुकसान न पहुंचाने की मांग पर केंद्र सरकार की पहल के बाद 1983 में फूलन ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के सामने अपने कई साथियों के साथ समर्पण कर दिया था। फूलन पर 22 लोगों की हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के आरोप थे और करीब 11 वर्षों तक उसे जेल में रहना पड़ा था। बेहमई कांड का मामला आज भी कानपुर देहात की अदालत में विचाराधीन है।

10-यूपी में सपा सरकार में मुलायम सिंह ने 1993 में फूलन पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए और उसे 1994 में जेल से छोड़ दिया गया।

11-जेल से छूटने के बाद फूलन ने उम्मेद सिंह से शादी भी की थी और रिहाई के बौद्ध धर्म अपना लिया था।

12-समाजवादी पार्टी ने फूलन को राजनीतिक मंच दिया और वह वर्ष 1996 में सपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंची। 1998 में हारने के बाद दोबारा वर्ष 1999 में वह एक बार फिर जीत गईं।

13-दिल्ली में रह रही फूलन की 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने गोली मारकर हत्‍या कर दी थी। इससे पहले शेर सिंह ने फूलन के हाथ से बनी खीर भी खाई थी। ऐसा कहा जाता है कि गिरफ्तारी के बाद शेर सिंह ने बेहमई नरसंहार का बदला लेने की बात कही थी।

14-फूलन की जीवनी को बॉलीवुड ने 'बैंडिट क्वीन' का नाम दिया और फिल्मी पर्दे पर उतारा था। इस फिल्म का काफी विरोध हुआ था और अपत्ति भी हुई थी।