यूपी की इस हाई प्रोफाइल सीट पर सपा-बसपा और भाजपा ने साधा समीकरण, 'चुनावी वैतरणी' पार करने के लिए सभी नए चेहरों को मौका
लोकसभा चुनाव के लिए सजे सियासी युद्ध में प्रमुख दलों के योद्धा मैदान में हैं। इस बार भाजपा कांग्रेस और बसपा ने चुनावी वैतरणी पार लगाने के नए खेवैया ही उतारे हैं जो पतवार लेकर सियासत की नदी में दो-दो हाथ करने निकले हैं। भाजपा ने कई बड़े धुरंधरों को दरकिनार कर रमेश अवस्थी के रूप में चौंकाऊ दांव चला है।
शिवा अवस्थी, कानपुर। लोकसभा चुनाव के लिए सजे सियासी युद्ध में प्रमुख दलों के योद्धा मैदान में हैं। इस बार भाजपा, कांग्रेस और बसपा ने 'चुनावी वैतरणी' पार लगाने के 'नए खेवैया' ही उतारे हैं, जो 'पतवार' लेकर सियासत की नदी में दो-दो हाथ करने निकले हैं। तीनों दलों के उम्मीदवार सामने आने से रोचकता बढ़ी है।
भाजपा ने कई बड़े धुरंधरों को दरकिनार कर रमेश अवस्थी के रूप में चौंकाऊ दांव चला है। छात्र संघ के बाद वह पहली बार कोई चुनाव लड़ने जा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस से आलोक मिश्रा मैदान में हैं तो बसपा ने कुलदीप भदौरिया पर भरोसा जताया है। तीनों ही प्रत्याशी पहली बार किसी लोस चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
कानपुर संसदीय सीट पर भाजपा पिछले तीन चुनावों से हर बार उम्मीदवार बदल रही है। 2014 में डा. मुरली मनोहर जोशी मैदान में उतरे और बड़े अंतर से जीत हासिल की। इसके बाद सत्यदेव पचौरी ने जीत का स्वाद चखा। इस बार पचौरी ने ऐन टिकट घोषणा से पहले ही चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा का पत्र केंद्रीय नेतृत्व को भेजा।
2024 के लिए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, नीतू सिंह, दिनेश शर्मा जैसे नाम चर्चा में थे, लेकिन भाजपा ने प्रदेश कार्यसमिति सदस्य व 2014 से ही टिकट की कतार में रहे पूर्व पत्रकार रमेश अवस्थी के नाम पर मुहर लगा दी। नया नाम चौंकाने वाला अवश्य है पर भाजपाई गणित समझें तो इस सीट पर पिछले 33 वर्षों से ब्राह्मण चेहरा ही उतर रहा है। कारण, यह सीट ब्राह्मण बाहुल्य है।
मूलरूप से फर्रुखाबाद निवासी रमेश अवस्थी संघ के स्वयंसेवक हैं। 2019 में बांदा व इससे पहले फर्रुखाबाद में टिकट मांग रहे थे। पिछले 20 वर्षों से कानपुर में रह रहे हैं। उनको पार्टी संगठन, पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं, पूर्व व वर्तमान मंत्रियों से समन्वय बना मतदाताओं तक पैठ बनाने के लिए बूथ तक पहुंचने के लिए कमर कसनी होगी। अंदरखाने विरोध को भी पाटना चुनौती होगी।
भाजपा के पास राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 का समापन, सीएए लागू करने, तीन तलाक कानून लाने जैसे ऐसे हथियार हैं, जिनसे युद्ध में लड़ने के लिए वह आश्वस्त हैं।
वहीं, कांग्रेस ने दो बार विधानसभा चुनाव लड़े अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य आलोक मिश्रा पर भरोसा जताया है। आलोक इससे पहले पत्नी बंदना मिश्रा को भी महापौर चुनाव में उतार चुके हैं। वह स्वयं क्राइस्ट चर्च कालेज से छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। 42 साल पहले कांग्रेस से जुड़े आलोक को ब्राह्मण चेहरे के रूप में स्वयं को स्थापित कर पार्टी की चुनावी नैया पार लगाने के लिए कांग्रेस के कमजोर संगठन की चुनौती को खत्म करना होगा।
चुनाव से पहले ही दक्षिण जिलाध्यक्ष के निधन के बाद उत्तर अध्यक्ष नौशाद आलम मंसूरी को दक्षिण का जिम्मा दिया गया है, जहां पहले दमदार उपस्थिति रखने वाले पूर्व विधायक अजय कपूर अब भाजपा हैं। इससे कांग्रेस की गणित गड़बड़ाई है।इसी तरह, बसपा के कुलदीप सामाजिक समीकरण के भरोसे मैदान में तानाबाना बुन रहे हैं। कल्याणपुर निवासी कुलदीप पेशे से एडवोकेट हैं। बीडीसी और जिला पंचायत का चुनाव भी लड़ चुके हैं। पार्टी के कैडर वोट बैंक के साथ अपने व दूसरे समाज के वोटों की रणनीति पर उनकी नाव आगे बढ़ रही है। वैसे, अभी ये शुरुआत है। चुनावी शोर और तेज होने के साथ मतदाताओं का गुणा-गणित और सियासी हवा में बदलाव लाजिमी है।
भाजपा संगठन का हर कार्यकर्ता प्रत्याशी है। राम मंदिर, प्रधानमंत्री मोदी के जनकल्याणकारी काम, मुख्यमंत्री योगी की सुदृढ़ कानून-व्यवस्था व बदलते प्रदेश के साथ जनता खड़ी है। पांच लाख मतों के अंतर से जीतेंगे।-प्रकाश पाल, भाजपा कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के अध्यक्षकांग्रेस किदवईनगर व गोविंदनगर में विशेष रूप से काम कर रही है। भाजपा प्रत्याशी को उनके कार्यकर्ता ही नहीं जानते हैं। सपा व आइएनडीआइए के घटक दलों के समन्वय से नई तस्वीर बनेगी।
-नौशाद आलम मंसूरी, महानगर अध्यक्ष कांग्रेसबसपा ने दलों नहीं समाज से गठबंधन किया है। सामाजिक समीकरण से जीत का रोडमैप तैयार करेंगे। कैडर वोट बैंक के साथ प्रत्याशियों के सामाजिक ताने-बाने से बदलाव लाएंगे।-मुकेश कठेरिया, बसपा के कानपुर मंडल प्रभारीइसे भी पढ़ें: पीलीभीत से भाजपा प्रत्याशी जितिन प्रसाद ने दाखिल किया नामांकन, मंत्री समेत कई दिग्गज नेता रहे मौजूद
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