जिसे BJP समझ रही थी सपा की जल्दबाजी, असल में वो थी अखिलेश यादव की रणनीति; इस तरह बदल गया यूपी का सियासी समीकरण
लोकसभा चुनाव परिणामों में भाजपा अपनी अपेक्षा ही नहीं पिछली बार के प्रदर्शन से भी बहुत पीछे रह गई है। नतीजा अकेले दम बहुमत भी नहीं पा सकी। हम आपको अप्रत्याशित चुनाव परिणाम के छिपे कारणों की पड़ताल बता रहे हैं। आज की कहानी उत्तर प्रदेश में पांच से 37 सीटों के आंकड़े तक पहुंचकर शानदार प्रदर्शन करने वाली समाजवादी पार्टी की छिपी रणनीति के बारे में...
जितेंद्र शुक्ल, संपादकीय प्रभारी कानपुर। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में यूं तो पूरे देश में होता है, लेकिन सबसे अधिक सियासी चर्चा और आकर्षण का केंद्र उत्तर प्रदेश ही रहता है। सर्वाधिक 80 सीटों वाले प्रदेश में जिसने बाजी मारी, प्राय: वही केंद्र में सरकार गठित करता है। इस बार भी कहानी में उत्तर प्रदेश की अहम भूमिका रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का चुनाव निकलते-निकलते अखिलेश यादव मानो यह जान गए थे कि मध्य उत्तर प्रदेश का लक्ष्य साधना है तो उन्हें खुद चुनाव में उतरना होगा। यूं तो उनके कन्नौज से लड़ने की चर्चा वर्ष 2022 से ही शुरू हो गई थी, लेकिन इस पर कभी न तो सहमति दी, न ही खुलकर इनकार किया।
कन्नौज में अखिलेश ने आखिरी समय में खोले पत्ते
इस लोकसभा चुनाव में उन्होंने भतीजे तेज प्रताप को कन्नौज (Kannauj Lok Sabha Seat) से प्रत्याशी जरूर घोषित कर दिया, लेकिन अपने लिए भी गुंजाइश बनाए रखी। आखिरी समय में उन्होंने पत्ते खोले और नामांकन प्रक्रिया के अंतिम दिन पर्चा दाखिल कर दिया। हालांकि इसकी तैयारी उन्होंने पहले से ही कर रखी थी।कांग्रेस से गठबंधन, सीटों का बंटवारा और फिर प्रत्याशियों की घोषणा में सपा ने जिस तरह फैसले किए, उसे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की जल्दबाजी और दबाव में काम करना समझा गया, लेकिन धरातल पर यह रणनीति थी जो पार्टी की जीत का आधार बनी। हां, इसमें भाजपा के प्रत्याशियों को लेकर जनता के अंदर चल रहे विरोध ने आग में घी की तरह भी काम किया जिसका लाभ सपा को मिला।
गठबंधन, विरोध और जातीय समीकरण
अखिलेश की रणनीति की सफलता इसी से आंक लीजिए कि सपा ने घोषणा के बाद 13 प्रत्याशी बदले, जिनमें से सात जीत गए। रामपुर में आजम खां (Azam Khan) की मर्जी के खिलाफ मोहिबुल्लाह नदवी को प्रत्याशी बनाना हो या मुरादाबाद में एसटी हसन की जगह अंतिम समय में रुचि वीरा को मैदान में उतारने का फैसला हो, हर जगह उन्हें सफलता मिली।कांग्रेस से गठबंधन किया और यहां भी सीटों के बंटवारे में पूरी सतर्कता बरती। पल्लवी पटेल के विरोध को भी उन्होंने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। अखिलेश ने 11 कुर्मी प्रत्याशी उतारे, जिसमें अधिकतर जीत गए। बीच चुनाव पाल समाज से श्याम लाल पाल को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। बसपा प्रमुख मायावती के करीबी रहे बाबू सिंह कुशवाहा को बांदा से ले जाकर जौनपुर से लड़ा दिया।
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