Sant Premanand: संत प्रेमानंद ने लौटाया मानद उपाधि का प्रस्ताव, बोले-भक्त उपाधि सबसे बड़ी
संत प्रेमानंद ने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय की मानद उपाधि लेने से मना कर दिया है। उन्होंने कहा कि राधारानी के भक्त की उपाधि के सामने सभी उपाधियां छोटी हैं और उन्हें सबसे बड़ी उपाधि उनके भगवान ने दे रखी है। संत प्रेमानंद ने कहा कि वह उपाधि मिटाने के लिए साधु बने हैं और उनके लिए सबसे बड़ी उपाधि है मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।
जागरण संवाददाता, कानपुर। जिले के अखरी गांव में जन्मे भक्त संत प्रेमानंद ने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय की मानद उपाधि लेने से मना कर दिया है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डाॅ. अनिल कुमार यादव से उन्होंने कहा कि राधारानी के भक्त की उपाधि के सामने सभी उपाधियां छोटी हैं। हम तो उपाधि मिटाने के लिए ही साधु बने हैं।
संत ने कहा कि मुझे सबसे बड़ी उपाधि मेरे भगवान ने दे रखी है और बड़ी उपाधि पाने के लिए छोटी उपाधियों का त्याग करना पड़ता है। सबसे बड़ी उपाधि है 'मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत'। मेरे संसार का जो स्वरूप भगवान का है, मैं उसका दास हूं। आपकी सद्भावना है, लेकिन हम जिस उपाधि की बात कर रहे हैं उसके सामने यह उपाधि बहुत छोटी है।
अपनी बात को समझाने के लिए उन्होंने सुरपति, नरपति, लोकपति जिनके भावे घास, रहे परमपद तजि सबही की आस - जब मैं था तब हरि नहिं अब हरि हैं मैं नाहिं- दोहों का उदाहरण भी दिया और कहा कि हरि यानी ईश्वर को जगत की कौन सी उपाधि दी जा सकती है। जो मुझे उपलब्ध है वह ब्रह्मा को भी नहीं है।
संत प्रेमानंद से मिलकर लौटे कुलसचिव ने बताया कि संत जी के दर्शन की अभिलाषा से वृंदावन के श्रीहित राधा केलि कुंज आश्रम गया था। स्वामी जी ने प्रस्ताव को यह कहकर नकार दिया है कि उनके आध्यात्मिक जीवन में इसका मूल्य नहीं है और यह सांसारिक बाधा है। उनके निर्णय की जानकारी कुलपति को दी है।
दीक्षा समारोह के लिए मानद उपाधि दिए जाने के लिए उपयुक्त नामों पर अभी विचार किया जाना बाकी है। विद्या परिषद की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा।