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Bithoor: बिठूर में पग-पग पर जीवंत हैं श्रीराम, लव-कुश का यहीं हुआ था जन्म; मां सीता से भी है खास नाता

Bithoor स्वाधीनता संग्राम की गवाह बिठूर की धरा में पग-पग पर प्रभु श्रीराम की निशानियां अब भी जीवंत हैं। गंगा तट पर घाट और गली-मोहल्ले में मौजूद पौराणिक साक्ष्य लव-कुश महर्षि वाल्मीकि माता सीता से जुड़े दर्शनी स्थल हर किसी को अपनी ओर खींचते हैं। प्रभु श्रीराम ने जब माता सीता का परित्याग किया तो लक्ष्मण ने उनको पौराणिक धरती बिठूर में ही छोड़ा था।

By Jagran News Edited By: Swati Singh Updated: Thu, 18 Jan 2024 10:36 AM (IST)
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बिठूर स्थित वाल्मीकि आश्रम के पास बना वनदेवी का मंदिर। जागरण

संवाद सहयोगी, बिठूर। ऐतिहासिक, पौराणिक व स्वाधीनता संग्राम की गवाह बिठूर की धरा में पग-पग पर प्रभु श्रीराम की निशानियां अब भी जीवंत हैं। इसी धरती पर लवकुश का जन्म हुआ। उनके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा, धनुष विद्या से लेकर अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ने पर हुए युद्ध के स्थल हैं।

गंगा तट पर घाट और गली-मोहल्ले में मौजूद पौराणिक साक्ष्य, लव-कुश, महर्षि वाल्मीकि, माता सीता से जुड़े दर्शनी स्थल हर किसी को अपनी ओर खींचते हैं। हालांकि इन पौराणिक स्थलों का अपेक्षित विकास नहीं हुआ और सरकार अगर इन पर ध्यान दे तो ये आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकते हैं।

लक्ष्मण में मां सीता को यही छोड़ा था

प्रभु श्रीराम ने जब माता सीता का परित्याग किया तो लक्ष्मण ने उनको पौराणिक धरती बिठूर में ही छोड़ा था। इसके साक्ष्य महर्षि वाल्मीकि आश्रम में मिलते हैं, जहां उन्हें आश्रय मिला था। जिस मंदिर में माता सीता रुकी थीं, उसे वन देवी के रूप में जाना जाता है। हालांकि, आश्रम देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है। पुरातत्व विभाग व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है।

प्राण-प्रतिष्ठा से पहले बिठूर पहुंच रहे लोग

अब अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली में प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर उत्साह और बढ़ा है। प्रतिदिन सैकड़ों पर्यटक बिठूर पहुंच रहे हैं। आश्रम का मुख्य द्वार जर्जर अवस्था में होने व उसे पॉलीथिन से ढकने के कारण तमाम पर्यटकों को मायूसी भी हाथ लगती है। किसी ने बता दिया तो बगल के रास्ते से उनकी तपोभूमि के दर्शन करते हैं। जहां बैठकर माता सीता प्रभु राम की आराधना और ध्यान करती थीं, वो पीलू का पेड़ अब भी मौजूद है। इसमें कभी पतझड़ नही होता।

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना यहीं की थी

पुजारी दुर्गा प्रसाद बताते हैं, महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना यहीं की थी। नारद ने 100 श्लोक वाल्मीकि जी को सुनाए थे, जिससे उन्होंने रामायण रची थी। उसका स्तूप पर अब भी वर्णन है, जिससे महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की है। ऐसे ही तमाम उदाहरण त्रेता युग की याद दिलाते हैं। पूर्व पार्षद डब्बू दिवाकर बताते है, किसी पर्यटक के लिए शौचालय तक नहीं हैं।

बिठूर का हो विकास

बिठूर का विकास धार्मिक, ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में करें तो देश-विदेश के पर्यटक इसकी ओर आकर्षित होंगे। प्रशासन ने नानाराव पार्क व संग्रहालय बनाकर इस ओर कुछ प्रयास किए हैं, लेकिन ये नाकाफी हैंे। सरकार, प्रशासन व नागरिकों को चाहिए कि मिटती हुई इस धरोहर को बचाने के लिए आगे बढ़ें और सब सहभागी बनें। डा. मनीषा दीवान, एसएन सेन पीजी कालेज की इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष

अब तक उपेक्षित है वीरों और पौराणिकता का ठौर बिठूर

ऐतिहासिकता, पौराणिकता समेटे ‘वीरों का ठौर’ अब तक उपेक्षित है। शहर से 12 मील दूर गंगा तट पर स्थित ये क्षेत्र प्राचीन काल में ‘उत्पलारण्य’ के नाम से ख्याति प्राप्त था। गंगा तटवर्ती क्षेत्र कमल व नीलकमल से परिपूर्ण था उत्पलारण्य में ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए पुण्य सलिला गंगा के तट पर यज्ञ किया था। उस यज्ञ की स्मृति में घोड़े की नाल स्थापित की थी, जिसे अब भी ब्रह्म खूंटी के नाम से जानते हुए धरती का केंद्र माना जाता है।

ऐसे पड़ा 'बिठूर' का नाम

यज्ञ समापन के बाद ही ये भूभाग ब्रह्मावर्त कहलाया, जिसे धीरे-धीरे बिठूर कहा जाने लगा। इसी यज्ञ तीर्थ में मनु-शतरूपा का पाणिग्रहण संस्कार हुआ था। इसी ब्रह्मावर्त को महर्षि वाल्मीकि ने अपनी तपोभूमि बनाया। रामायण की रचना की व माता सीता को आश्रय देकर लव-कुश को दीक्षा दी।

‘ध्रुव टीला’ भी यहीं है स्थित

राजा उत्तानपाद व उनके पुत्र ध्रुव ब्रह्मावर्त के शासक रहे, जिनकी राजधानी के अवशेष के रूप में ‘ध्रुव टीला’ गंगा तट पर है। जनश्रुति के अनुसार ध्रुव का यहीं जन्म हुआ था। इसी ध्रुव टीले पर नाना साहब की दत्तक पुत्री मैनावती को अंग्रेजों ने जिंदा जला दिया था। प्रसिद्ध मैथिली कवि विद्यापति (1360-1450) ने बिठूर का वर्णन ‘ब्रह्मावर्त अध्याय’ में किया है।

इन पुराणों में है बिठूर का जिक्र

बिठूर का ब्रह्मावर्त के रूप में स्कंद पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण व देवी भागवत पुराण में भी ब्योरा मिलता है। इसी बिठूर में गंगा की धारा में नाव पर बैठकर नाना साहब, अजीमुल्ला खान, तात्या टोपे अजीजनबाई ने अंग्रेजों को देश से भगाने की सौगंध खाई थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति बनी थी। बिठूर के किले के ध्वंसावशेष मनु के रूप में रानी लक्ष्मीबाई के बचपन की गवाही दे रहे हैं।

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