कानपुर में जल निगम के दो महाप्रबंधक समेत छह अफसर निलंबित, इस वजह से हुई कार्रवाई Kanpur News
टेनरियों और सीवरेज का पानी गंगा में जाने से न रोक पाने पर कमिश्नर ने शासन से कार्रवाई की सिफारिश की थी।
By AbhishekEdited By: Updated: Wed, 31 Jul 2019 12:28 PM (IST)
कानपुर, जेएनएन। गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए जरूरी उपाय कर पाने में नाकाम जल निगम के दो महाप्रबंधकों समेत छह अफसरों को नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने निलंबित कर दिया है। जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई से जुड़े इन अफसरों को कुंभ के दौरान एक बूंद भी सीवर व टेनरियों का पानी गंगा में न जाने देने के लिए जरूरी उपाय करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन वे इसका निर्वाह करने में नाकाम रहे। यही नहीं, पंपिंग स्टेशनों व सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की समय से मरम्मत तक नहीं कराई गई। दो बार हकीकत देख लेने के बाद प्रमुख सचिव ने निलंबन का आदेश जारी किया है।
बिना शोधन गंगा में बहाया पानी जाजमऊ स्थित पंपिंग स्टेशनों व सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थिति कुंभ के दौरान बहुत खराब रही थी। तब, आए दिन बिना शोधन के गंगा में पानी बहाया गया। शासन की सख्ती के बाद जांच को गए कमिश्नर सुभाष चंद्र शर्मा ने लापरवाही पाई और अफसरों को चेताया। साथ ही, कार्रवाई के लिए शासन को भी संस्तुति भेज दी। फिर, नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार सिंह खुद दो बार मौका मुआयना करने आए। उन्होंने भी पाया कि गंगा प्रदूषण मुक्ति के लिए शासन की कार्ययोजना के मुताबिक कोई काम नहीं हुआ।
मरम्मत हुई नहीं, कागजों पर सब दुरुस्त पंपिंग स्टेशन वाजिदपुर, शीतला बाजार, बुढिय़ा घाट से पानी ओवर फ्लो होकर गंगा में जाता रहा। टेनरियों व सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तक जाने वाले नालों की मरम्मत भी ठीक से नहीं कराई गई। हां, कागज पर सब दुरुस्त दर्ज था। अफसरों ने मरम्मत का जिम्मा लिए कंपनी सृष्टि सैमलेन योगी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। इससे नाराज प्रमुख सचिव ने जल निगम की गंगा प्रदूषण इकाई के तत्कालीन महाप्रबंधक महाप्रबंधक आरके अग्रवाल, मौजूदा महाप्रबंधक पीके यादव, परियोजना प्रबंधक घनश्याम द्विवेदी व सुदीप सिंह, परियोजना अभियंता शत्रुघ्न सिंह व सहायक परियोजना अभियंता राघवेंद्र प्रताप को निलंबित कर दिया।
झूठे उपायों से की थी गुमराह करने की कोशिश जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के निलंबत छह अफसरों ने गंगा को स्वच्छ रखने के झूठे उपायों के जरिये कमिश्नर को भी गुमराह करने की कोशिश की थी। यह और बात है कि उनका यह दांव चल नहीं सका। हर कदम पर बरती गई लापरवाही उनकी पोल खोलती चली गई। अफसरों की सुस्ती का आलम यह कि 101. 8 किलोमीटर लंबी सीवरेज पाइप लाइन का जो काम मई में पूरा हो जाना था, वह कमिश्नर के निरीक्षण के वक्त सिर्फ 60 किमी ही हो सका। सीसामऊ नाले को भी समय से टैप नहीं किया गया।
15 हजार चैंबर में सिर्फ साढ़े चार हजार ही बने कमिश्नर सुभाषचंद्र शर्मा की जांच रिपोर्ट बताती है कि जाजमऊ में घरेलू सीवर के लिए 15 हजार चैंबर बनाने थे, लेकिन मई तक साढ़े चार हजार ही बन सके। यह काम मई से पहले पूरा होना था। सीवरेज नेटवर्क के 370 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में घरेलू कनेक्शन करने की व्यवस्था करनी थी, लेकिन ठेकेदार कंपनी ने कनेक्शन नहीं किए। जल निगम अफसरों ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। जाजमऊ में इंटरमीडिएट पंपिंग स्टेशन का निर्माण 19 माह में करना था, लेकिन ठेकेदार फर्म सृष्टि सैमलेन योगी ने इसे पूरा नहीं किया। कमाल देखिये, ठेकदार फर्म के पास दक्ष तकनीकी कर्मचारी ही नहीं थे।
काम करा पाने अक्षम साबित हुए महाप्रबंधक कमिश्नर ने जल निगम के महाप्रबंधक को कार्य लेने में अक्षम करार दिया था। यह इसलिए कि अफसरों ने ठेकेदार फर्म पर नोटिस देते हुए जुर्माना तो लगाया, लेकिन वसूल नहीं किया। नौ एमएलडी के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की जांच दोपहर को जब हुई तब 10.50 एमएलडी दूषित पानी निकल रहा था। लॉग बुक में रात दो बजे उत्प्रवाह 18.60 एमएलडी दर्ज था। जांच में माना गया कि टेनरियां रात के समय चोरी छिपे चल रही थीं। इसी तरह छबीलेपुरवा पंपिंग स्टेशन में भी मानक से ज्यादा पानी आता मिला। इससे पहले, 20 अप्रैल को हुई जांच में कॉमन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट ओवरफ्लो मिला था। प्लांट की नाली से जोडऩे को लगे 1500 एमएम के पाइप फटे थे। इससे घरेलू सीवर सीधे गंगा में जा रहा था। छबीलेपुरवा पंपिंग स्टेशन से जुड़ी 28 टेनरियों की क्षमता 50 फीसद घटाई गई थी, लेकिन इनमें से कई मानक से ज्यादा क्षमता पर चलती मिलीं।अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप
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