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1857 के क्रांतिवीरों की गाथा से जुड़ा साहित्य है बेहद खास, यहां है अबतक लिखी पुस्तकों के नाम

भारत देश में 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई बताई जाती है लेकिन इस प्रथम सशक्त क्रांति में शामिल रहे उन वीरों की शौर्य गाथाओं को कई कृतियों में रेखांकित किया गया है। ऐसी ही खास कृतियों के बारे में जानकारी देता ये आलेख।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Tue, 10 May 2022 03:30 PM (IST)
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क्रांतिवीरों की गाथा का अनमोल साहित्य ।
कानपुर, फीचर डेस्क। अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम सशस्त्र क्रांति और क्रांतिवीरों की गौरवान्वित करने वाली शौर्य गाथाओं पर सृजित कृतियों को रेखांकित करता मनोज कपूर का शोधपूर्ण आलेख...

10 मई 1857 दिन रविवार शाम लगभग पांच बजे मेरठ के भीड़ भरे सदर बाजार में अचानक हलचल बढ़ी, कारण एकाएक समाचार आया कि अंग्रेजों ने यह तय किया है कि हिंदुस्तानी सैनिकों के हथियार जब्त कर लिए जाएं। यह बात पूरे बाजार में आग की तरह फैल गई। सदर बाजार की घटना का समाचार छावनी भी पहुंचा, सिपाहियों ने अपनी वर्दी उतार फेंकी और पहला हमला 20वीं पैदल टुकड़ी द्वारा किया गया। कर्नल फिनिश उनका पहला शिकार हुआ। फिर तो विद्रोह की आग फैलती गयी। अंतत: मेरठ पर कब्जा कर सिपाहियों ने दिल्ली की ओर कूच किया।

1857 की क्रांति के संबंध में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में भी बहुत लेखन हुआ है। उनको मोटे तौर पर इतिहास, जीवनी, उपन्यास, कविता और संस्मरण विधा में विभाजित किया जा सकता है।

इतिहासपरक लेखन में विष्णु दामोदर सावरकर की '1857 का स्वतंत्रता समर' सुविख्यात है। मराठी भाषा की मूल पुस्तक का हिंदी अनुवाद उपलब्ध है। क्रांति में भारतीय दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाली यह पहली पुस्तक है।

कार्ल माक्र्स की अंग्रेजी से हिंदी में अनूदित पुस्तक 'भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम' उनके डेली ट्रिब्यून में सन् 1853-59 में प्रकाशित लेखों का संग्रह है। उसमें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की नीतियों की मुखर आलोचना है।

माक्र्सवादी दष्टिकोण से 1857 की क्रांति का विश्लेषण और समीक्षा करने वाली पुस्तकों में प्रमुख हैं- डा. रामविलास शर्मा की 'सन् सत्तावन की राज्य क्रांति और माक्र्सवाद' तथा पी.सी. जोशी का 'विद्रोह-1857'।

प्रमोद भार्गव की पुस्तक '1857 का लोक संग्राम और रानी लक्ष्मीबाई' गदर की अवधारणा से हटकर 'लोक संग्राम' की विस्तृत चर्चा के साथ झांसी की रानी के व्यक्तित्व और शौर्य की गाथा प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार नाना साहब को केंद्रीय भूमिका में रखते हुए मराठी भाषी लेखक माधव साठे ने 'नाना साहब पेशवा और 1857' कृति की रचना की है। इसका हिंदी में अनूदित संस्करण भी उपलब्ध है। वर्ष 2016 में प्रकाशित ए.के. गांधी की पुस्तक '1857 की क्रांति और क्रांतिधरा' मई 1857 में मेरठ की घटनाओं का वर्णन सरल और सुबोध शैली में प्रस्तुत करती है।

1857 की क्रांति में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान को प्रस्तुत करने वाली पुस्तकों में उल्लेखनीय हैं-विलियम टेलर की 'पटना में 1857 की बगावत', मो. जाकिर हुसैन की '1857 और बिहार की पत्रकारिता', के.सी. यादव की '1857 पंजाब, हरियाणा और हिमाचल की भूमिका', सुरेश मिश्र की '1857, मध्यांचल के विस्मृत सूरमा', डा. उदय प्रकाश अरोड़ा और एस.एन.आर रिजवी द्वारा संपादित '1857 और रुहेलखंड'।

प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायकों पर केंद्रित जीवनी परक अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। इनमें उल्लेखनीय हैं- कल्पना गांगुली की 'झांसी की रानी', चमनलाल रामपाल की 'झांसी की रानी', के.सी. यादव की 'मुहम्मद अली खां', राज नारायण पांडेय की 'श्रीमन्त नाना साहब', श्रीनिवास बालाजी हर्डिकर की 'नाना साहब', 'तात्याटोपे', 'नाना फडऩवीस' और '1857 की चिंगारियां', इन पुस्तकों के लिए मराठी और उर्दू की अनेक पांडुलिपियों, बहियों और डायरी का विशद अध्ययन किया गया था। अमृतलाल नागर की अवध क्षेत्र पर केंद्रित पुस्तक 'गदर के फूल'। 1857 की क्रांति के शताब्दी वर्ष पर सूचना विभाग, उ.प्र. द्वारा जीवनी परक दो महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई हैं, पहली है डा. मोतीलाल भार्गव की 'नाना साहब', दूसरी है संघर्षकालीन नेताओं की जीवनियां।

संस्मरणात्मक साहित्य में एक मात्र पुस्तक है विष्णुभट्ट गोडशे की 'माझा प्रवास'। मराठी की इस पुस्तक को 'आंखों देखा गदर' के नाम से अमृत लाल नागर ने हिंदी में अनुवाद कर प्रस्तुत किया है।

1857 की क्रांति के घटना-क्रम ने लेखकों को मौलिक लेखन के लिए प्रेरित किया और अनेक उपन्यास भारतीय भाषाओं में प्रकाश में आए। ऐतिहासिक उपन्यासों में प्रमुख नाम वृन्दावन लाल वर्मा का 'झांसी की रानी' (1946), प्रताप नारायण श्रीवास्तव का 'बेकसी का मजार' (बहादुर शाह जफर पर केंद्रित)। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की सुविख्यात लेखिका महाश्वेता देवी ने 1857 की क्रांति के परिप्रेक्ष्य में चार औपन्यासिक कृतियों का सृजन भी किया है-'झांसी की रानी', 'जली थी अग्निशिखा' (ह्यू रोज की डायरी पर आधारित रानी लक्ष्मी बाई पर केंद्रित), 'अमृत कलश' (लखनऊ-कानपुर के घटनाक्रम पर केंद्रित)। 1857 की क्रांति से संबंधित घटनास्थलों-सागर, जबलपुर, पुणे, इंदौर, ललितपुर के जंगल, झांसी, ग्वालियर और कालपी आदि में लेखिका ने स्वयं जाकर तथ्यों को संग्रहित कर इन पुस्तकों की रचना की। इन पुस्तकों के हिंदी संस्करण भी उपलब्ध हैं। इसी क्रम में उल्लेखनीय है मराठी लेखक माधव साठे का उपन्यास 'ब्रह्मावर्त', यह भी हिंदी में उपलब्ध है।

1857 की क्रांति और क्रांतिवीरों से संबंधित अनेक गीत और लोकगीत भी कोटि-कोटि कंठों से गूंजे हैं। इनमें से प्रमुख का चयन और संपादन 'लोकगीतों और गीतों में 1857' नामक पुस्तक में डा. मैनेजर पांडेय ने किया है।

सशस्त्र क्रांति की अलख

क्रांति की चिंगारी तो उसी दिन से सुलगने लगी थी जब 8 अप्रैल को मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया था, किंतु 10 मई को मेरठ में इस चिंगारी ने तीव्र ज्वाला का रूप ले लिया जिसने पूरे देश में अंग्रेजों के विरोध में सशस्त्र क्रांति की अलख जगा दी।

1857 की क्रांति भारतीय इतिहास की अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। यह क्रांति भारत की स्वतंत्रता की नींव का पहला पत्थर है। यह क्रांति विदेशी सत्ता से भारतीयों के स्वाधीन होने की सहज महत्वाकांक्षाओं का रक्तरंजित इतिहास है। इस सशस्त्र विद्रोह से दोनों पक्षों के एक लाख से अधिक व्यक्तियों ने मृत्यु का वरण किया। इसी आधार पर इसे 'भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम' की संज्ञा से सर्वप्रथम कार्ल माक्र्स ने सन् 1857 में ही विभूषित किया था। इस क्रांति में विदेशी शासक के विरुद्ध हिंदू-मुस्लिम एक साथ लड़े थे।

इस क्रांति से संबंधित विपुल साहित्य का सृजन हुआ है। क्रांति के बाद तमाम सरकारी दस्तावेजों के आधार पर 1857 की क्रांति के इतिहास लेखन का कार्य हुआ। अनेकानेक ग्रंथ और रपटें प्रकाशित हुईं। यहां यह तथ्य भी ध्यान में रखना चाहिए कि युद्ध उपरांत इतिहास लेखन विजेता ही कराते हैं, जिसमें वे अपना महिमा मंडन कराते हैं और विरोधी पक्ष की सफलताओं की भी पूर्णत: उपेक्षा दर्ज कराते हैं।

1857 की क्रांति क्या वास्तव में सैनिक विद्रोह था? यदि हां, तो सैनिक बंगाल, बिहार आदि प्रदेशों से उ.प्र. क्यों चल दिये? ये तो चले ही थे तो मार्ग में इनके रसद आदि की व्यवस्था कैसे और किसने की? इनका उद्देश्य क्या था? आदि अनेक प्रश्न उठते हैं। सन् 1957 में उ.प्र. शासन द्वारा अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तक 'नाना साहब' में लेखक पंडित आनंद स्वरूप मिश्रा ने क्रांति की योजना पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है। इसी पुस्तक से ज्ञात होता है कि अपनी योजना को साकार करने के उद्देश्य से नाना साहब ने वाराणसी, इलाहाबाद, बक्सर, गया, जनकपुर, जगन्नाथ पुरी, नासिक, आबू, उज्जैन, मथुरा आदि की यात्राएं की थीं। इसी उद्देश्य से नाना ने दिल्ली में बहादुर शाह जफर और बेगम जीनत महल से भेंट और गुप्त वार्ता की, वहां से अंबाला, मेरठ होते हुए अप्रैल 1857 को लखनऊ पहुंचे तथा वापसी में कालपी होते हुए बिठूर पहुंचे।

किस छावनी से कितने सिपाही आएंगे इसका आकलन करने, मार्ग में उनके आवास और भोजन की व्यवस्था हेतु तात्या टोपे ने अभिनव योजना प्रस्तुत की। तात्या की योजना का विस्तृत विवरण पहली बार उनके ही वंशज पराग टोपे ने अंग्रेजी में प्रकाशित अपनी पुस्तक-'तात्याज आपरेशन रेड लोटस' में प्रस्तुत किया है

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