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स्मृति शेष 1924-79 : कानपुर के पं. लालमणि मिश्र के हाथों में था जादू, छूते ही बज उठते थे वाद्ययंत्र

कानपुर के शिवराजपुर के पास तारापति नेवादा गांव में सुर-संगीत के बदशाह पंडित लालमणि मिश्र का जन्म हुआ था और फिर माता-पिता कोलकाता चले गए थे। वो संगीत की बहती सरिता थे और अब उनके शिष्य कमाल कर रहे हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sat, 17 Jul 2021 05:18 PM (IST)
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पं. लालमणि के सुरों पर वाद्ययंत्र भी झूम उठते थे।

कानपुर, [शशांक शेखर भारद्वाज]। वो महज सात साल की उम्र में ही संगीत की तमाम विधाओं में पारंगत हो गए थे। उनके सुरों पर वाद्ययंत्र भी झूम उठते थे। खुद के अंदर सुर-सरिता का समंदर सहेजने वाले ये शख्स थे पंडित लालमणि मिश्र। वह ऐसे गुरु थे, जिनसे तालीम हासिल कर शिष्य देश ही नहीं, विदेश में भी छा गए। अब वह भले ही हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियां ताजा हैं। 17 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है। वर्ष 1979 में उनका निधन हुआ था।

कंठस्थ थी 1500 बंदिशें : पंडित मिश्र का जन्म 11 अगस्त 1924 को शिवराजपुर के पास तारापति नेवादा गांव में हुआ। उनके पिता रघुवंशी लाल की मिठाई की दुकान थी, जबकि मां रानी देवी गृहणी थीं। 1930 के दंगों में दुकान क्षतिग्रस्त होने पर परिवार कलकत्ता (अब कोलकाता) जाकर बस गया था। उनकी शिक्षा और संगीत की दीक्षा की शुरुआत वहीं हुई। सात वर्ष की आयु में अपनी मां के संगीत गुरु पंडित गोवर्धन दास को हारमोनियम पर 15 अलंकारों की प्रस्तुति दी थी। कोलकाता की शहंशाही रिकार्डिंग कंपनी में सहायक संगीत निर्देशक के पद पर नियुक्ति भी मिली। उन्हेंं 1500 बंदिशें कंठस्थ थीं।

इन वाद्ययंत्रों में हासिल थी महारत : विचित्र वीणा, सितार, सरोद, जलतरंग, तबलातरंग, काष्ठतरंग, कांचतरंग, संतूर, वायलिन, सारंगी, गिटार, पखावज, हारमोनियम।

22 श्रुतियों की वीणा पर प्रस्तुति और कई रागों की रचना :  स्वरांजलि संगीत शिक्षण संस्थान की सचिव डा. रिचा मिश्रा ने बताया कि समारोह में पंडित लालमणि मिश्र की बहू पद्मजा मिश्रा भी आती हैं, जो वर्तमान में वाराणसी में रहती हैं। उन्होंने सोमेश्वरी, मधुकली, कोमल सोहनी, मधुभैरव, श्याम बिहाग, कलेश्वरी, जोगतोड़ी, आनंद भैरवी रागों की रचना की। साथ ही 22 श्रुतियों की वीणा पर स्पष्ट प्रस्तुति कर श्रुति वीणा का आविष्कार, संगीतज्ञों व छात्रों के लिए भारतीय संगीत वाद्य, तंत्रीनाद, संगीत सरिता (तीन भाग) पुस्तकें लिखीं।

संगीत के मंदिर जैसे थे पं. मिश्र : दिल्ली विश्वविद्यालय में फैकल्टी आफ म्यूजिक एंड फाइन आर्ट्स की प्रो. सुदिप्ता शर्मा कहती हैं, वर्ष 1978 में गुरु जी के निर्देशन में शिक्षा पाकर खूब नाम कमाया। शहर के जवाहर नगर स्थित स्वरांजलि संगीत शिक्षण संस्थान की प्रधानाचार्य डा. कविता सिंह बताती हैं वो संगीत के मंदिर जैसे थे। उनके जन्मदिवस पर हर साल समारोह आयोजित किया जा रहा है। पुत्री डा. रागिनी त्रिवेदी और उनके पति डा. राजीव त्रिवेदी समेत कई पुराने शिष्य आ चुके हैं।

देश-विदेश में ये प्रमुख शिष्य : दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. सुदिप्ता शर्मा, पंडित भवानी शंकर शुक्ला, डा. राजभान सिंह, आनंद शंकर, ओम प्रकाश चौरसिया, गोपाल शंकर, रागिनी त्रिवेदी, डा. पुष्पा बसु, सविता देवी, नैन्सी नलबेंडियन, गोपाल शंकर मिश्र, डा. केसी गंगराणे, सुधाकर भट्ट आदि।

बहुमुखी व्यक्तित्व का सफर

1936-39 : फिल्म में अभिनय, पाश्र्वगायकी, लेखन व संगीत निर्देशन।

1940-44 : बाल संगीत शोध केंद्र और कानपुर आरकेस्ट्रल सोसाइटी की स्थापना।

1947 : कानपुर में सिविल लाइंस में गांधी संगीत महाविद्यालय की स्थापना कर प्रधानाचार्य के रूप में काम किया।

1950-54 : भारत रत्न पंडित रविशंकर के बड़े भाई नर्तक पंडित उदय शंकर के ट्रूप में कोरियोग्राफी, संगीत निर्देशन।

1955 : मीरा ओपेरा के अंतर्गत बुद्ध, रामायण संगीत रचनाएं कीं।

1957 : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में रीडर बने।

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