जयंती पर विशेष : हारे मन में ऊर्जा भर देते थे राष्ट्रकवि सोहल लाल द्विवेदी, कैसा रहा उनका 83 वर्ष का सफर
आज है राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी की 115वीं जयंती पांच मार्च 1905 को बिंदकी के सिजौली गांव में हुआ था जन्म।
By AbhishekEdited By: Updated: Thu, 05 Mar 2020 03:59 PM (IST)
फतेहपुर, [जागरण स्पेशल]। जब मन हार रहा हो तो शब्दों से न केवल उसे सहारा देना बल्कि असीम ऊर्जा भर देना। स्वतंत्रता आंदोलन के यज्ञ में उन शब्दों की आहुति देना, जो सागर तट से रणभेरी बजाते हुए आजादी का हर्ष निनाद ले आना। कभी छत पर शब्दों के कबूतर बैठाकर, पहेलियां सुनाकर चंचल बाल मन को लुभा लेना। शब्दों की शहतीर से भावों के ऐसे ही महल खड़ा करने वाले, हार पर जीत का मंत्र फूंकने वाले उस 'सोहन' से लाल को देश ने पहला राष्ट्रकवि कहा। यह थे फतेहपुर के बिंदकी कस्बे के राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, जिनकी आज 115वीं जयंती है।
29 फरवरी 1988 को हुआ था निधन
पांच मार्च 1905 को बिंदकी तहसील के सिजौली गांव में जन्मे श्री द्विवेदी फतेहपुर के राजकीय इंटर कॉलेज से पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए बनारस ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय चले गए। वहां महामना मदनमोहन मालवीय के संपर्क में आए और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत गीत गढऩे लगे। 1935 में प्रयागराज विश्वविद्यालय से परास्नातक करने के बाद पिता पं. बिंदाप्रसाद द्विवेदी के साथ बिंदकी कस्बे के घियाही बाजार में रहकर देश को न केवल जागृत किया बल्कि बोधगम्य साहित्य से राष्ट्रीयता का बिगुल फूंक दिया। गांधीवाद को अभिव्यक्त करने के लिए युगावतार गांधी, खादी गीत, गांव में किसान दांडी यात्रा, त्रिपुरी कांग्रेस, बढ़ो अभय जय जय जय, राष्ट्रीय निशान जैसी लोकप्रिय रचनाओं का सृजन किया। 83 साल की आयु में 29 फरवरी 1988 को बिंदकी कस्बे स्थित आवास में वह चिरनिद्रा में लीन हो गए।
भैरवी काव्य संग्रह से मिली ख्याति उनका पहला काव्य संकलन 'भैरवी' 1949 में सामने आया। भैरवी में ही युगावतार गांधी की ओजपूर्ण काव्य पंक्तियां 'चल पड़े जिधर दो डग मग में...' व 'तैयार रहो मेरे वीरो...' ने उन्हें लोकप्रिय किया।खादी से था बेहद प्रेम
गांधीवादी कवि खादी की धोती, कुर्ता व टोपी पहनते थे। कभी-कभार खादी का कोट-पैंट भी पहनते थे। उनका खादी गीत 'खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा...' खूब सराहा गया। खादी को अंग्रेजों के प्रतिकार व स्वाधीनता से जोड़ते हुए रचना की। वह सभी को खादी पहनने की सलाह देते थे।प्रमुख रचनाएं भैरवी, पूजागीत, सेवाग्राम, कुणाल, चेतना, बांसुरी, युगाधार, दूध बतासा, वासंती, चित्रा, संजीवनी, कच व देवयानी आदि।
मतदाता हो, नेता से सवाल पूछोसोहनलाल द्विवेदी हालात से समझौता नहीं करते थे। उनके सान्निध्य में रहे समाजसेवी लोकनाथ पांडेय बताते हैं कि वर्ष 1964 में ङ्क्षबदकी नगर पालिका के चेयरमैन नामित किए गए। विकास न होने की कसक थी। व्यवस्था से नाखुश होकर नौ माह में इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह भी लिखा कि 'ओ लाल किले पर झंडा फहराने वालों, पहले जवाब दो मेरे चंद सवालों का।' लोगों से कहते थे, वोट देने से पहले नेताओं से अपने सवाल जरूर पूछें।
जन्मतिथि पर मतभेद नहीं सोशल मीडिया में राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी की जन्मतिथि 22 फरवरी दिखाई जा रही है। पौत्र मुकेश द्विवेदी व आनंद द्विवेदी ने बताया कि बाबा का जन्म फाल्गुन कृष्णपक्ष अष्टमी, पांच मार्च 1905 को हुआ था। बाबा अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। उनके निधन के बाद जयंती समारोह मनाया जाने लगा। जन्मतिथि को लेकर कोई मतभेद नहीं है।
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