जयंती पर विशेष: ऊर्जा और चेतना से परिपूर्ण रचनाओं ने दिलाई सोहन लाल को 'राष्ट्रकवि' की उपाधि, जानिए उनका साहित्यिक सफर
Sohanlal Dwivedi Birth Anniversary राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की जयंती आज। करीबियों ने साझा किए संस्मरण हमेशा कहते थे। कुछ बनना है तो घर से बाहर निकलो। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रकवि श्री द्विवेदी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक कवि थे ही।
फतेहपुर, [जागरण स्पेशल]। किया प्रकाशित धरा धाम को, निज जीवन की ज्योति जलाकर,
हमें प्रेरणा पथ दिखलाया, अपना जीवन पुष्प चढ़ाकर,
मानवता के प्रबल उपासक, दया, क्षमा का भाव अटल था,
वाणी में अमृत बरसाता, देशभक्ति का ज्वार प्रबल था।।
इन पंक्तियों को सार्थक करने वाली महान हस्ती का नाम है, राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी। जिनका देश प्रेम का अंदाजा उनकी कविताओं को पढ़कर ही लगाया जा सकता है। राष्ट्रभक्ति से आेत-प्रोत रचनाएं और गीतों के माध्यम से आम जनमानस के अंदर देशप्रेम का संचार कर देने वाले राष्ट्रकवि की आज 116वीं जयंती है। ये मूलरूप से उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के निवासी थे।
29 फरवरी 1988 को हुआ था निधन
श्री द्विवेदी की तिथि को लेकर प्राय: ऐसा सुनने को मिलता है कि उनका जन्म 22 फरवरी 1906 को हुआ था। लेकिन उनके पौत्र मुकेश द्विवेदी व आनंद द्विवेदी बताते हैं कि बाबा का जन्म फाल्गुन कृष्णपक्ष अष्टमी, पांच मार्च 1905 को हुआ था। बिंदकी तहसील के सिजौली नामक गांव में जन्मे श्री द्विवेदी फतेहपुर के राजकीय इंटर कॉलेज से पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय चले गए। वहां महामना मदनमोहन मालवीय के सानिध्य में रहकर इन्होंने राष्ट्रीयता से ओतप्रोत रचनाएं लिखना शुरू किया। गांधीवाद को अभिव्यक्त करने के लिए युगावतार गांधी, खादी गीत, गांव में किसान दांडी यात्रा, त्रिपुरी कांग्रेस, बढ़ो अभय जय जय जय, राष्ट्रीय निशान जैसी लोकप्रिय रचनाओं का सृजन किया। 'चल पड़े जिधर दो डगमग पग, चल पड़े कोटि पग उसी ओरÓ जैसी रचनाओं से गांधी जी के पीछे पूरी तरुणाई को खड़ा किया। उनकी पहली काव्यकृति भैरवी की पंक्ति 'वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहां बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लोÓ सेनानियों के लिए प्रेरणादायक गीत रहा। 83 साल की आयु में 29 फरवरी 1988 को बिंदकी कस्बे स्थित आवास में वह चिरनिद्रा में लीन हो गए।
रचनाएं व कृतियां
भैरवी, पूजा गीत, प्रभाती और चेतना, उनके प्रेम गीतों का संग्रह है। बाल साहित्य में बांसुरी, झरना, बिगुल, बच्चों के बापू, दूध बताशा, नेहरू चाचा आदि है।
बाल साहित्य के भी थे निर्माता
बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रकवि श्री द्विवेदी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक कवि तो थे ही, लेकिन साथ-साथ बाल साहित्य के निर्माता के रूप में भी इन्हें जाना जाता है। सोहनलाल द्विवेदी का साहित्यिक जीवन बाल-कवि के रूप में ही प्रारंभ हुआ था। इनके द्वारा रचित कई ऐसी भी कृतियां और रचनाएं जो विद्यालयी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनीं। बता दें कि इन्होंने ‘बालसखा’ नामक बाल साहित्य पत्रिका का संपादन भी किया था। ‘उठो लाल अब आंखें खोलो’ शीर्षक से इनकी यह बाल-कविता अत्यंत लोकप्रिय है।
संस्मरण सुनाते हुए इन्होंने बताईं कई बातें
- दमापुर इंटर कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता शैलेंद्र द्विवेदी को अच्छे से याद है वो दिन, जब राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने उन्हें कविता का सही स्वरूप सिखाया। वह बताते हैं कि बात 40 साल पहले की है। रोज की तरह बाबू जी (सोहनलाल द्विवेदी) के पास शाम चार बजे पहुंचा तो देखते ही वह बोले, दिखाओ क्या लिखा...। डरते हुए कॉपी आगे बढ़ाई तो 20 लाइन की कविता में उन्होंने पांच गलतियां खोजकर लाल गोले लगा दिए। लगा कि अब वह डांटेंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने पास में बैठाया और समझाने लगे कि कविता में लय-स्वर के साथ जरूरी है कि ऐसे शब्द चुने जाएं जो मन को छू लें।
- सोहनलाल द्विवेदी की 116 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर शैलेंद्र द्विवेदी दैनिक जागरण से उनकी यादें साझा करते हुए बताते हैं कि बाबूजी गलतियां पकड़ सिर्फ लाल गोले ही नहीं लगाते थे बल्कि बार-बार कविता लिखवाते थे। नवोदित कवियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते थे, उन्हें मंच पर काव्यपाठ के लिए बुलाते थे। वह अक्सर कहते थे, कुछ बनना है तो घर से बाहर निकलो। बुजुर्ग कवि देवदत्त आर्य वैद्य बताते हैं कि मेरा दवाखाना सोहनलाल जी के घर के पास था। शाम को वह आते और मरीजों की भीड़ होती तो चुपचाप आकर बैठ जाते। मरीज चले जाते तो फिर साहित्य की चर्चा होती, वह कविता सुनते और सुनाते थे। समाजसेवी लोकनाथ पांडेय बताते हैं कि जब वह राष्ट्रकवि के पैर छूकर आशीर्वाद लेते तो अपनी कविता 'चमक रहा है तेज तुम्हारा बनकर लाल सूर्य मंडल' सुनाते और कहते थे, इसको गाया करो। कवि वेदप्रकाश मिश्र बताते हैं कि शिक्षा की अलख जगाने के लिए सोहनलाल जी चैयरमैन का दायित्व भी संभालने को तैयार हुए और नौ माह के अंदर बालिका इंटर कॉलेज की स्थापना कराई।
राष्ट्रकवि की साहित्य संपदा नहीं संजो पाई बिंदकी
राष्ट्रकवि पंडित सोहन लाल द्विवेदी की साहित्य संपदा को बिंदकी संजो नहीं सका। उनकी स्मृति में बनाए गए वाचनालय एवं पुस्तकालय में कवि का संपूर्ण साहित्य एकत्र नहीं किया जा सका है। वाचनालय के चारों ओर सब्जी दुकानदारों का कब्जा रहता है। ताला तभी खुलता है, जब राष्ट्रकवि की जयंती और पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
वर्ष 2001 में बिंदकी के तत्कालीन विधायक एवं राज्यमंत्री राजेंद्र ङ्क्षसह पटेल ने श्रीरामलीला मेला मैदान में वाचनालय एवं पुस्तकालय का निर्माण कराया था। कवि की संपूर्ण पुस्तकें क्रय करने के लिए तत्कालीन शिक्षक विधायक लवकुश मिश्र ने दो लाख रुपये दिए थे। कई बार साहित्य को एकत्र करने के प्रयास मंचों से सुने गए। हालांकि कोई सार्थक काम नहीं हुआ। कुछ पुस्तकें खरीदकर आईं तो रद्दी की तरह पड़ी हैं। वाचनालय एवं पुस्तकालय की देखरेख की जिम्मेदारी नगर पालिका उठाती है।
युवा कवि मृत्युंजय पांडेय कहते हैं, वाचनालय को राष्ट्रकवि के शोध संस्थान के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी को बिंदकी की इस अनमोल धरोहर को समझने का मौका मिल सके।