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पढ़ाई के दौरान आर्थिक तंगी झेली, 22 साल की उम्र में बने IPS, पढ़ें कानपुर के अपर पुलिस आयुक्त हरीश चन्दर की कहानी

IPS Harish Chander दिल्ली के गुरु तेग बहादुर नगर की एक छोटी सी खोली में जन्मे हरीश चंदर ने अपने संघर्षों से भरे जीवन में कई लोगों के जीवन में उजाला भरा है। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से 2009 में IPS अधिकारी बनने का सपना पूरा किया। खबर में हम उनके जीवन के संघर्षों उपलब्धियों और पुलिसिंग में उनके योगदान के बारे में जानेंगे...

By shiva awasthi Edited By: Abhishek Pandey Updated: Sun, 20 Oct 2024 05:08 PM (IST)
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अपर पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था ) हरीश चन्दर l (फोटो- जागरण आर्काइव)

Success Story of IPS Harish Chander: पुलिस...ये शब्द सहज ही सुरक्षा का भाव पैदा करता है। समाज में अच्छे लोगों की पालक, अपराधियों के लिए संहारक, नित नए संघर्षों के बीच कीर्तिमान गढ़ने की ललक। पुलिस विभाग में कई शख्सियतें ऐसी हैं, जिनका जीवन संघर्षों भरा रहा। आमजन, खासकर युवाओं के लिए प्रेरणादायक।

कानपुर कमिश्नरेट में बतौर अपर पुलिस आयुक्त (कानून-व्यवस्था) के पद पर तैनात आइपीएस हरीश चन्दर भी इनमें से ही एक हैं। पुलिस स्मृति दिवस 21 अक्टूबर को है। इस दिन कर्तव्य परायण पुलिस अफसरों व कर्मियों की कहानियां समाज याद करता है। संघर्षों के प्रतिमान हरीश की कहानी भी हर युवा के लिए प्रेरक है। पढ़िए कानपुर से शिवा अवस्थी की रिपोर्ट...

दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर स्थित छोटी सी खोली के अंधेरे कोने में 36 साल पहले आंखें खोलने वाले हरीश ने स्वयं की जिंदगी में संघर्षों के बीच कइयों के जीवन में उजाला भरा। आर्थिक तंगी में माता-पिता ने पढ़ाया। दिल्ली में प्रारंभिक शिक्षा के बाद हाईस्कूल में साथी से कम अंक मिलने पर वो मन मसोस कर रह गए, लेकिन हार नहीं मानी।

2009 में IPS बने हरीश चन्दर

स्नातक व परास्नातक के बाद जब लगा कि अब आगे का सफर और कठिन है। नौकरी कर कुछ रुपये जुटा परिवार की मदद में हाथ बंटाएं। बस तभी जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) मिलने से उन्हें पंख मिले। 2009 में आइपीएस बने। महज 22 साल की उम्र में मिली सफलता ने जिंदगी बदल दी पर उन्हें संघर्ष के वो दिन अब तक याद हैं। घर के सबसे बड़े होने के नाते परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

वो कहते हैं, जब मन में कभी स्वयं पर संदेह आए, अपने से नीचे वाले को देख लीजिए, भ्रम टूट जाएगा। मेहनत से काम कर संघर्ष से हार नहीं मानेंगे, सफलता तय है। निराशा को मन में रख लेना आसान है पर आशा के लिए लड़ना पड़ता है। इसलिए लड़ो और आगे बढ़ो।

पुलिस दरवाजे-दरवाजे खटकाती थी डंडा, बने आइपीएस

हरीश चन्दर यूं ही पुलिस अफसर नहीं बने। इसके पीछे भी उनके बचपन की यादें व कहानी है। वो बताते हैं, आइएएस लायक रैंक मिली पर पुलिस अफसर बनने की ठानी थी, जिससे आइपीएस चुना। जब बचपन में खोली में रहते थे, तब पुलिस अक्सर दरवाजे-दरवाजे डंडा बजाकर चली जाती थी। मन में ऐसे क्षेत्रों के प्रति छवि बदलने की ललक ने उन्हें पुलिस अफसर बनाया। पुलिसिंग में लगातार सुधार प्राथमिकता है।

पकड़ा 15 हजार करोड़ का जीएसटी घोटाला

कानपुर से ही प्रशिक्षु आइपीएस के रूप में काम शुरू करने वाले हरीश चन्दर यहां एसपी सिटी के रूप में भी कार्यरत रहे। महोबा, कन्नौज, औरैया, गोरखपुर व मुरादाबाद में काम किया। डीसीपी नोएडा रहते उन्होंने जीएसटी का 15 हजार करोड़ रुपये का घोटाला पकड़ा। फर्जी फर्मों के माध्यम से सरकार को चूना लगा रहे 50 से अधिक लोगों को जेल भेजा। इसमें करोड़ों की नकदी भी बरामद कराई। वित्त मंत्रालय सीधे मामले की निगरानी करा रहा था।

बदलाव को चुनौती मान आगे बढ़ना ही पुलिस

हरीश बताते हैं, पुलिसिंग में बदलाव हुआ है। पहला बदलाव पुलिस के घटनास्थल पर त्वरित पहुंचने का हुआ। पुलिस नहीं पहुंचती, ये शिकायत अब खत्म है। दूसरा बदलाव पुलिस कमिश्नरेट का है। पुलिस आयुक्त प्रणाली के परिणाम पांच से 10 साल बाद सही से दिखेंगे। सरकार की पहल से जनता को तत्काल मदद मिल रही।

दिल्ली की पुलिसिंग व्यवस्था अच्छी है, इस सवाल पर बोले-

यहां भी वैसे ही सब जल्द होगा। पुलिस के लिए व्यवहार में बदलाव चुनौती है। यह व्यक्तिनिष्ठ मामला है। लोगों की समस्याओं, अपराधियों व अपराध से जुड़े मामलों, कार्रवाई से लोगों को बेरुखी जैसी स्थिति लगती होगी। थानों में महिला पुलिसकर्मी नई कहानी लिख रहीं। केवल अपराधी ही नहीं, समाज से जुड़े हर काम में पुलिस पहले है। पुलिस से खराब व्यक्ति डरे, गलत काम करने वाला डरे, अच्छे लोग साथ खड़े हों। बस पुलिस ऐसी होनी चाहिए। पुलिस ने सबसे पहले स्वयं को तकनीक में ढाला। यूपी-112, 1090, एक्स अकाउंट पर पुलिस की तत्परता सबकी पसंदीदा है।

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