Teachers Day 2022 : कानपुर के Famous डिग्री कालेजों की खास रिपोर्ट, कहीं आपने भी तो नहीं की है यहां से पढ़ाई
कानपुर में दो सौ साल पूरे कर चुका क्राइस्ट चर्च कालेज है तो 100 साल पूरे करने वाले डीएवी कालेज और वीएसएसडी कालेज का अपना अपना इतिहास है। इनकी एतिहासकता आकर्षण पैदा करने वाली है। डीएवी कालेज में तो सुरंग है जिससे क्रांतिकारी छिपकर भाग निकलते थे।
By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sat, 03 Sep 2022 04:51 PM (IST)
कानपुर, [शिवा अवस्थी]। पांच सितंबर शिक्षक दिवस के रूप मनाया जाता है, यह दिवस गुरु के सम्मान और योगदान की याद दिलाता है और प्रेरणा देता है कि गुरु के बिना ज्ञान असंभव है। गुरु विद्यालय रूपी उपवन का वह माली है जो विद्यार्थी स्वरूप रंग-बिरंगे पुष्पों को अपनी ज्ञान की धारा से अभिसिंचित करता है। ज्ञान के अपने अविरल स्रोत से लाखों विद्यार्थियों के भाग्य का निर्माण करता है। इन्हीं शिक्षण संस्थानों से निकलकर विद्यार्थी सुंदर, सभ्य समाज और राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
कानपुर शहर में भी कुछ ऐसे ही 'गुरुकुल' हैं, जो वर्षों पहले स्थापित किए गए और नित नए सोपान गढ़ते हुए अब भी शिक्षा की अलख जगाए हुए हैं। इनमें गुरु-शिष्य परंपरा पली-बढ़ी तो आजादी की क्रांति के गवाह भी हैं। आइए शहर के उन कालेजों के इतिहास से रू-ब-रू कराते हैं, जिनकी एतिहासकता आकर्षण पैदा करती है... और हो सकता है कभी आपने भी उनमें अपने जीवन के पल गुजारे हों। इनमें क्राइस्ट चर्च, डीएवी और वीएसएसडी कालेज का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
200 साल पुराना है क्राइस्ट चर्च कालेज
अपनी स्थापना के 200 साल पूरे कर चुका क्राइस्ट चर्च कालेज शहर का सबसे पुराना शिक्षा का मंदिर है। यहां से पढ़कर निकले विद्यार्थियों ने देश-दुनिया तक पहचान बनाई है। माल रोड किनारे 1820 में पहली बार पाश्चात्य शैली की शिक्षा का पहला 'फ्री स्कूल' खुला, जिसने 1840 में एसपीजी मिशन स्कूल का रूप लिया था। इसके बाद 1866 में यही क्राइस्ट चर्च कालेज बना। एसपीजी मिशन स्कूल में अजीमुल्ला खां छात्र और अध्यापक दोनों रहे।स्थापना के 200 से अधिक साल पूरे कर चुके इस शिक्षण संस्थान में किसी समय उन्नाव, इटावा, औरैया, फतेहपुर, फर्रुखाबाद, कन्नौज व बुंदेलखंड के साथ विदेश तक के छात्र आते थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के पिता व प्रसिद्ध अधिवक्ता मोतीलाल नेहरू, कई हिट फिल्मों में अभिनय करने वाले अनिल धवन इसी कालेज के छात्र रहे हैं। शहर के कई नामचीत चिकित्सक, उद्यमी और शिक्षाविद् भी यहां पढ़े। क्राइस्ट चर्च की यादें शानदार हैं, जबकि यहां पढ़ाई का वह सदाबहार दौर अब भी चल रहा है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।103 साल पूरे कर चुका है डीएवी कालेज
कानपुर का दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) कालेज अपने आप में अनोखा है। 103 साल पूरे कर चुके इस कालेज में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके पिता दोनों ही एक साथ छात्र रहे। जंग-ए-आजादी की यादें संजोए डीएवी कालेज की शुरुआत सिर्फ 20 छात्रों से हुई थी। यहां कभी नाइजीरिया, भूटान, बांग्लादेश, मलेशिया, नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका के छात्र पढ़ने आते थे। वर्ष 1992 तक यह सिलसिला चला। भवन की डिजाइन सर सुंदरलाल ने ब्रिटिश इंडियन शैली पर तैयार की थी। यहां का सेंट्रल हाल बिना किसी पिलर और सरिया के सिर्फ ईंट-गारे के दम पर अब भी टिका हुआ है। हास्टल में एक साथ रहते थे अटल जी व उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी डीएवी कालेज में पढ़े और वर्ष 1945 में डीएवी में राजनीति शास्त्र से एमए (मास्टर्स आफ आर्ट्स) में प्रवेश लेकर 1947 में डिग्री ली थी।। वह हास्टल के कमरा नंबर 104 में रहते थे। 1948 में एलएलबी में प्रवेश लिया, तब सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त पिता पंडित कृष्णबिहारी लाल वाजपेयी भी एलएलबी करने कालेज आए। अटलजी व उनके पिता हास्टल के एक कमरे में रहते थे। पिता-पुत्र एक ही कक्षा में बैठकर पढ़ते थे। डीएवी कालेज में सुरंग थी क्रांतिकारियों की मददगारडीएवी कालेज में इतिहास के विभागाध्यक्ष डा. समर बहादुर सिंह बताते हैं कि आजादी के दौरान क्रांतिकारियों की शरणस्थली रहे कालेज के हास्टल व कमरों में अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति बनती थीं। तत्कालीन हिंदी विभागाध्यक्ष पंडित मुंशीराम शर्मा सोम उनके संरक्षक थे। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारी उनकी सलाह पर काम करते थे। यहीं काकोरी कांड की रणनीति बनी थी और शाहजहांपुर में तैयारी को दोहराया गया था। कालेज से परमट-बिठूर के लिए सुरंग थी, जिसमें बैठकर क्रांतिकारी बम बनाते थे। कभी ब्रिटिश पुलिस कालेज आती तो इसी सुरंग से क्रांतिकारी निकल जाते थे।उत्तर भारत का पहला कामर्स कालेज था वीएसएसडी कालेज
इतिहास के जानकार बताते हैं, वर्ष 1910 में श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामंडल की स्थापना हुई थी। स्वामी ज्ञानानंद (काशी) के शिष्य स्वामी दयानंद के मार्गदर्शन में राय बहादुर विक्रमाजीत सिंह ने सनातन धर्म महाविद्यालय की स्थापना, सनातन धर्म कालेज आफ कामर्स के रूप में 1921 में की थी। यह उत्तर भारत का पहला कामर्स कालेज था, जो बांबे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। 1923 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) विश्वविद्यालय से संबद्धता हुई। 1925 में अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षण व्यवस्था के साथ कला संकाय शुरू हुआ। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने यहीं बीए कोर्स में प्रवेश लिया और दो वर्ष तक हास्टल के कमरा नंबर 100 में रहकर पढ़े। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलपति सुधारानी पांडेय और आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डा. अरविंद दीक्षित ने भी यहीं से पढ़ाई की थी। न्यायमूर्ति केएस राखरा, वीरेंद्र कुमार दीक्षित, शशिकांत गुप्ता आदि भी यहीं से पढ़े।कुछ स्कूल-कालेज और उनकी स्थापना
- 1866 क्राइस्टचर्च कालेज। यह 1820 में पहली बार पाश्चात्य शैली की शिक्षा का पहला 'फ्री स्कूल' था, जिसने 1840 में एसपीजी मिशन स्कूल का रूप लिया।
- 1898 सुरेंद्र नाथ (एसएन) सेन बालिका विद्यालय
- 1903 एबी विद्यालय, माल रोड।
- 1919 दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) कालेज।
- 1921 विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कालेज (वीएसएसडी)
- 1921 बीएनएसडी इंटर कालेज
- 1933 विक्टोरिया कालेज (अब गवर्नमेंट इंटर कालेज)
- 1936 राष्ट्रीय शर्करा संस्थान।
- 1957 एसएन सेन डिग्री कालेज
- 1959 पीपीएन डिग्री कालेज
- 1960 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर।
- 1961 में ब्रह्मानंद डिग्री कालेज