जीटी रोड पर लगने वाले जाम से निजात दिलाने को मंधना ट्रैक शिफ्टिंग ही सबसे सस्ता विकल्प
स्टेशन डायरेक्टर की समिति ने रेलवे बोर्ड को दी रिपोर्ट, गुण-दोष के आधार पर चार विकल्पों पर दी गई है राय
जागरण संवाददाता, कानपुर : मंधना से अनवरगंज रेलवे लाइन की वजह से जीटी रोड पर लगने वाले भीषण जाम से निजात दिलाने के लिए चार विकल्पों पर विचार के बाद ट्रैक शिफ्टिंग सबसे सस्ता विकल्प सामने आया है। स्टेशन डायरेक्टर की समिति ने इन विकल्पों पर अपनी रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी है। रिपोर्ट में समिति ने किसी एक विकल्प की वकालत नहीं की है बल्कि बोर्ड चेयरमैन के सुझाए चारों विकल्पों को गुण-दोष के आधार पर रेखांकित कर गेंद बोर्ड के पाले में डाल दी है।
इस रिपोर्ट में दर्शाए गए गुण-दोष के आधार पर ट्रैक शिफ्टिंग बाकी विकल्पों की तुलना में सबसे कम खर्चीला है, खासतौर पर ट्रैक मंधना से पनकी शिफ्ट करने का। बिठूर से कानपुर वाया उन्नाव नया ट्रैक इससे ज्यादा खर्चीला होने के साथ ही दोगुनी दूरी की समस्या का सबब बन रहा है। एलीवेटेड टै्रक जहां सबसे ज्यादा महंगा हैं, वहीं 18 क्रासिंग में आरओबी की संभावना केवल तीन क्रासिंग पर ही बन रही है। रेलवे के जानकारों का कहना है कि ट्रैक शिफ्ट होगा तो मंधना से अनवरगंज तक जाम की तत्काल समस्या समाप्त होगी और ट्रेनें मंधना से पनकी निकल जाएंगी। एलीवेटेड ट्रैक और आरओबी पर यदि कदम बढ़ाए जाएं तो मौजूदा रूट पर निर्माण करने से जाम की समस्या से छुटकारे के लिए इंतजार लंबा समय लेगा। निर्माण के दौरान जाम की समस्या और बढ़ सकती है। बता दें, पिछले दिनों रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी ने इस मंधना-अनवरगंज ट्रैक का निरीक्षण करने के बाद चार विकल्पों पर विचार करने को कहा था। स्टेशन डायरेक्टर डॉक्टर जितेंद्र कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था।
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विकल्प नंबर 1: लाइन शिफ्टिंग
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अनवरगंज से मंधना के बीच रेलवे लाइन बंद कर दी जाए। फर्रुखाबाद से कानपुर आने वाली ट्रेनों को मंधना से वाया पनकी होते हुए लाया जाए।
गुण: जीटी रोड पर जाम का स्थायी हल। खर्च लगभग 1200 करोड़ रुपये होगा। पुराने ट्रैक की भूमि का प्रयोग मेट्रो के लिए भी किया जा सकता है। अगर राज्य सरकार इस जमीन को खरीदती है तो ऐसे में खर्च महज 500 करोड़ ही होगा।
दोष: मंधना से पनकी तक नए ट्रैक के लिए जमीन अधिग्रहण रेलवे के सामने प्रमुख चुनौती होगी।
विकल्प नंबर 2: एलीवेटेड ट्रैक
अनवरगंज से मंधना के बीच रेलवे ट्रैक को एलीवेटेड कर दिया जाए। इसके बनने से सभी रेलवे क्रासिंग स्वत: समाप्त हो जाएंगी।
गुण : रेलवे को इसके लिए कोई विशेष इंतजाम नहीं करने पड़ेंगे। केवल रेलवे बोर्ड से फैसला लेने भर से यह विकल्प मूर्त रूप ले सकता है।
दोष: 18 किमी लंबा एलीवेटेड ट्रैक बनाने में ढाई से तीन हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। आर्थिक दृष्टि से यह विकल्प सबसे महंगा है। कई स्थानों पर मानक के अनुसार चौड़ाई भी नहीं मिल पा रही है।
विकल्प नंबर 3: वाया गंगा पुल
बिठूर में गंगा पर पुल बनाकर रेलवे ट्रैक को फतेहपुर से उन्नाव तक जोड़ा जाए। इसके बाद उन्नाव से कानपुर ट्रेन लाई जाए।
गुण : लखनऊ जाने वाली मालगाड़ियों को कानपुर नहीं आना होगा। रेलवे को एक नया रेलवे रूट भी मिल जाएगा।
दोष: बिठूर से उन्नाव होकर कानपुर आने में सफर की दूरी लगभग दोगुनी हो जाएगी। करीब 1800 करोड़ रुपये का खर्च भी आर्थिक दृष्टि से ठीक नहीं है।
विकल्प नंबर 4 : जीटी रोड पर पड़ने वाली हर क्रासिंग पर आरओबी का निर्माण करना होगा।
गुण: जाम से मुक्ति दिलाने के अलावा इस विकल्प में कोई विशेष गुण नहीं है।
दोष: जीटी रोड पर 18 रेलवे क्रासिंग हैं। पूर्वोत्तर रेलवे ने इनमें से केवल आठ पर आरओबी बनाने का प्रस्ताव दिया था। जब सर्वे हुआ तो इसमें भी तीन में ही फिजिबिलिटी मिली। केवल तीन क्रासिंग पर आरओबी से समस्या का स्थायी हल संभव नहीं है।