Unique Clothes: सोयाबीन फाइबर के कपड़े पहनें और पसीने से छुटकारा पाएं
उप्र वस्त्र एवं प्रौद्योगिकी संस्थान की आनलाइन अंतर राष्ट्रीय कार्यशाला में देश विदेश के तकनीकी संस्थानों से विशेषज्ञ व छात्र-छात्राएं जुड़े रहे । राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रो. राजीव ने सोयाबीन फाइबर के कपड़े की जानकारी दी ।
कानपुर, जेएनएन। गर्मी का मौसम बेहद परेशान करने वाला होता है, चिलचिलाती धूप और उसपर उमस में पसीना दुखदायी होता है। पसीने से अक्सर घमौरियों की भी समस्या हो जाती है और ऐसे में शरीर पर पहने कपड़े उतार फेंकने का भी मन करता है। लेकिन, अब ऐसा मन कतई नहीं करेगा क्योंकि शरीर पर पहने गए कपड़े ही पसीने से छुटकारा दिलाएंगे। सोयाबीन फाइबर से बनाया गया कपड़ा गर्मी में पसीने से छुटकारा दिलाएगा। सुनने में भले ही अटपटा लग रहा हो कि सोयाबीन फाइबर का कपड़ा, सोयाबीन तो खाने में इस्तेमाल किया जाता है। जी हां, बिल्कुल सही खाने में इस्तेमाल होने वाला प्रोटीन युक्त सोयाबीन के फाइबर का कपड़ा बनाया गया है। इसके बारे में जानकारी के बाद उप्र वस्त्र एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ) की आनलाइन अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने भी पसंद किया। राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने प्रोटीन आधारित फाइबर से बने कपड़े की जानकारी साझा की है।
राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रो. राजीव ने बताया कि सोयाबीन फाइबर से बने कपड़े शरीर के लिए बेहद आरामदायक हैं। यह न सिर्फ पसीने से छुटकारा दिलाते हैं, बल्कि इनसे किसी भी तरह की बदबू नहीं आती है। इसको बैंडेज (पट्टी) की तरह इस्तेमाल करने से घाव जल्दी भर सकता है। बैक्टीरिया और अन्य जीवाणुओं का हमला नहीं होता है। उन्होंने बताया कि सोयाबीन में कई तरह के रसायनों को घोलकर फाइबर तैयार किया जाता है।
आइआइटी दिल्ली के प्रो. अपूर्वा दास ने ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की शुद्धता के लिए नैनो तकनीक पर आधारित कपड़े के बारे में बताया। इसका उपयोग कर नदी, तालाब के पानी को शोधित किया जा सकता है। आइआइटी दिल्ली के प्रो. अभिजीत मजूमदार ने पालीएस्टर, काटन व ङ्क्षसथेटिक कपड़ों को रीसाइकल करने की तकनीक बताई। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी आफ हडर्सफिल्ड के प्रो. सोहेल राणा ने प्राकृतिक रेशों से कपड़े और अन्य उत्पाद बनाने की तकनीक साझा की। कोलकाता यूनिवर्सिटी की प्रो. साधना रे ने नान वूवेन कपड़ों की प्राकृतिक तरीके से गुणवत्ता बढ़ाने के शोध को पढ़ा। कार्यशाला में निदेशक प्रो. जी नलनकिल्ली, प्रो. शुभंकर मैती, प्रो. अमजद, प्रो. अरुण सिंह गंगवार समेत अन्य विशेषज्ञ जुड़े।