पुलिस भी कभी डाकिया बन बांटती थी चिट्ठी, 4 मील पर आउटपोस्ट अब कहलाते थाना, रोचक है कानपुर पुलिसिंग का सफरनामा
कानपुर में पुलिसिंग व्यवस्था और थानों की कहानी रोचक है। आमिल की तरह जमींदार-चौकीदार पर भी शांति व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी होती थी तो तहसीलदार पुलिस का प्रमुख अधिकारी होता था। पहले के बने आउटपोस्ट अब थाना बन चुके हैं।
By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sat, 19 Nov 2022 05:23 PM (IST)
कानपुर, [शिवा अवस्थी]। चार जोन, 14 सर्किल और 49 थानों के साथ अतिरिक्त तीन महिला थानों वाली कानपुर कमिश्नरेट पुलिस का सफरनामा बेहद रोचक है। कमिश्नरेट से पहले पुलिसिंग व्यवस्था का पुराना दौर जमींदार-चौकीदार वाला था, जो बाद में दारोगा जी कहलाए। पुलिस के सफरनामे में सबसे रोचक बात बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि वो कभी डाक बांटने का भी काम करती थी।
बदलाव के कई दौर देख चुकी कानपुर पुलिसिंग
स्वाधीनता के बाद से कानपुर की पुलिसिंग कई बदलाव के दौर देख चुकी है। पहले कानपुर क्षेत्र के थाने कानपुर देहात जिले में चले गए हैं। कुछ का अस्तित्व ही खत्म हो गया। वहीं, इसी कानपुर क्षेत्र में प्राचीनकाल में राजा-महाराजाओं के समय और मुगलकाल तक लूट, ठगी, चोरी, लड़ाई-झगड़ों और हत्या जैसी घटनाओं को रोकने के लिए जमींदार-चौकीदार की भूमिका अहम हुआ करती थी। पुलिस कभी डाकिया की तरह चिट्ठी भी बांटा करती थी। नई पीढ़ी में तमाम लोग इस व्यवस्था से कम ही परिचित हैं।
हर चार मील पर होते थे आउटपोस्ट
अवध का हिस्सा रहा कानपुर जब ब्रिटिशकाल में अंग्रेजों के कब्जे में आया तो पुलिसिंग बदलावों के दौर से गुजरी। मुख्य मार्गों से लेकर गांवों तक प्रत्येक चार मील पर तीन से चार सशस्त्र बल के साथ आउट पोस्ट स्थापित किए गए। एक समय था, जब पुलिस इन आउट पोस्ट से किसी गांव में जिसके भी दरवाजे पर पहुंचती थी, वो क्षेत्र में बड़ी पहचान वाला होता था। भविष्य में वही आउट पोस्ट थाने के रूप में अस्तित्व में आए, जो अब भी हैं।जीमंदार-चौकीदार पर होती थी शांति व्यवस्था की जिम्मेदारी
ब्रिटिश शासनकाल से पहले कानपुर और आसपास का क्षेत्र अवध के तत्कालीन नवाब के पास था। तब अलमास अली की यहां आमिल के रूप में तैनाती थी, जो राजस्व व शांति व्यवस्था का प्रमुख हुआ करता था। जब अंग्रेजों के पास कानपुर की कमान आई तो पहले कलक्टर अब्राहम वेलांड आए। उन्होंने अलमास अली से चार्ज लिया। उस समय आमिल की तरह ही शांति-व्यवस्था का काम कलक्टर की निगरानी में जमींदार व चौकीदार करते रहे। इसके बाद सुरक्षित यात्रा की जब जरूरत बढ़ी तो सशस्त्र बल का गठन यहां पर किया गया।तहसीलदार होता था पुलिस का मुख्य अधिकारी
अंग्रेजों के शासनकाल में तहसीलदार पुलिस का मुख्य अधिकारी होता था। वह राजस्व के साथ ही शांति-व्यवस्था में तैनात कर्मियों की निगरानी करता था। उस पर मजिस्ट्रेट नियंत्रण करता था। इसके बाद कानपुर में मजिस्ट्रेट ने पुरानी चौकीदारी व्यवस्था में बदलाव किया। पुलिस दारोगा व जमींदार ने चौकीदारों की तैनाती गांव-गांव व जरूरी जगहों पर शुरू की। 1857 की क्रांति से पहले बड़ी संख्या में आउट पोस्ट समाप्त कर उन्हें थानों में समाहित कर दिया गया और कुछ को थाने का दर्जा दे दिया गया।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।कभी चौक में कोतवालेश्वर मंदिर के पास थी कोतवाली
अंग्रेजों के शासनकाल में कानपुर कोतवाली चौक में कोतवालेश्वर मंदिर के पास थी। 1857 की क्रांति के दौरान तक यह वहीं से संचालित हुई। उस भवन को नीलामी में जहानाबाद के सेठ ने खरीद लिया था। उसके बाद वर्ष 1860 में जब नए थानों की संरचना हुई तो कोतवाली को कलक्टरगंज में शिफ्ट कर दी गई थी। इसके बाद 1936 में बड़ा चौराहा के पास वर्तमान जगह में नया भवन बनाकर कोतवाली को वहां लाया गया। तब यूनाइटेड प्रोविंसेस के आगरा और अवध के गर्वनर सर हैरी हैग ने 26 अप्रैल, 1936 को इसका लोकार्पण किया था, जो बोर्ड अब भी लगा है। इस भवन की डिजाइन रायबहादुर श्रीनारायण ने बनाई थी, जबकि इसका निर्माण कानपोर इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के माध्यम से ठेकेदार एसएस भार्गव ने कराया था।पुराने थाना भवनों में ब्रिक वर्क
सेवानिवृत्त सहायक अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग एके शुक्ला बताते हैं कि ब्रिटिश काल में ज्यादातर निर्माण ब्रिक वर्क और छतें लकड़ी या लोहे के एंगल और पत्थरों से तैयार की जाती थीं। कानपुर कोतवाली, कर्नलगंज, अनवरगंज, कलक्टरगंज समेत ज्यादातर पुराने थानों में ब्रिक वर्क ही है। इनकी मजबूती ऐसी है कि सालों बाद भी भवन मजबूत हैं।अंग्रेजी हुकूमत में बना था पुलिस आयुक्त कार्यालय
कानपुर में कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के बाद शहर क्षेत्र के थाने इसमें शामिल किए गए। हाल ही में आउटर पुलिस को खत्म करते हुए वहां के थाने भी कमिश्नरेट से जोड़ दिए गए हैं। जानकार बताते हैं कि कचहरी के पास जहां वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का कार्यालय था, वहां पहुंचने से पहले पोर्च समेत निर्मित पुराना ब्रिक वर्क वाला भवन अंग्रेजों ने बनवाया था। मौजूदा पुलिस आयुक्त बीपी जोगदण्ड ने इस शानदार भवन को ही अपना कार्यालय बनाया है।कभी सरसौल, तिश्ती और मझावन में भी था थाना
1857 की क्रांति से पहले तक कानपुर क्षेत्र में सरसौल, मझावन और तिश्ती थाने भी हुआ करते थे, जो इस क्रांति के बाद खत्म कर दिए गए। मझावन अब कानपुर नगर के बिधनू थानाक्षेत्र में है, जो रमईपुर से साढ़ जाते समय रास्ते में पड़ता है। यहां के शहनाई वादक देश भर में जाते हैं। इसी तरह तिश्ती कानपुर देहात में रसूलाबाद के पास स्थित है। सरसौल कानपुर-प्रयागराज हाईवे किनारे है, जो महाराजपुर थानाक्षेत्र का हिस्सा बन गया है।सचेंडी व घाटमपुर का सबसे बड़ा था क्षेत्र
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले सचेंडी और घाटमपुर सबसे बड़े क्षेत्र वाले थाने थे। इसके साथ ही कलक्टरगंज, अनवरगंज, नवाबगंज, कर्नलगंज, गजनेर, घाटमपुर, अकबरपुर, भोगनीपुर, डेरापुर, सिकंदरा, मंगलपुर, रसूलाबाद, बिल्हौर, शिवली और शिवराजपुर, छावनी जैसे कई थाने अस्तित्व में थे। नवाबगंज व कर्नलगंज आउट पोस्ट थे, जिनमें कर्नलगंज पहले थाना बना। इसके बाद नवाबगंज को भी दर्जा मिल गया।आरामगाह भी रहा कर्नलगंज थाना भवन
इतिहास के जानकार बताते हैं, कर्नलगंज थाना कभी बीच शहर में होने के कारण आरामगाह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसे सावन-भादौ हाउस भी कहा जाता था। गर्मियों की दोपहर इस भवन में गुजारने के लिए तब के मालिक पहुंचते थे। इस इमारत में साइकिल कारखाना भी चला और शोरूम भी रहा। जब साइकिल कंपनी ने इमारत खाली की तो उसे एसपी सिटी के लिए आवंटित कर दिया गया। पुलिस का सबसे बड़ा अधिकारी तब यहीं बैठता था। बाद में यहां कर्नलगंज थाना बना।कानपुर पुलिसिंग से जुड़ी रोचक बातें
- 1801 के नवंबर में अंग्रेजों को अवध से मिला था कानपुर।
- 1802 फरवरी में कलक्टर अब्राहम वेलांड को यहां तैनाती मिली और उन्होंने उसी साल पांच मार्च को अलमास अली से चार्ज लिया। वह 22 मार्च, 1803 तक कलक्टर रहे।
- 1806 में तत्कालीन कलक्टर ने शांति-व्यवस्था व सुरक्षित यात्रा के लिए सशस्त्र बल का गठन किया।
- 1817 में कानपुर के मजिस्ट्रेट ने थानों की स्थापना कराई।
- 1833 में पुरानी चौकीदारी व्यवस्था में बदलाव कर पुलिस दारोगा व जमींदार के माध्यम से चौकीदार चुने जाने लगे।
- 1845 में बड़ी संख्या में आउट पोस्ट समाप्त करके उन्हें थानों से जोड़ दिया गया। उनकी जगह चौकियां स्थापित की जाने लगीं।