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आसान नहीं है BJP के लिए सीसामऊ सीट का चक्रव्यूह, 1996 के बाद से नहीं मिली जीत; पढ़ें सीट का सियासी समीकरण

UP Assembly ByPolls सीसामऊ विधानसभा सीट पर बीजेपी के लिए जीत का रास्ता आसान नहीं है। 1996 के बाद से इस सीट पर पार्टी को जीत नहीं मिली है। मुस्लिम ब्राह्मण और दलित मतदाताओं के बीच उलझी इस सीट पर भाजपा लगातार पांच बार हार का सामना कर चुकी है। इस बार पार्टी ने अनुसूचित जाति बस्तियों पर फोकस किया है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Thu, 17 Oct 2024 02:39 PM (IST)
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल किया गया ग्राफिक

जागरण संवाददाता, कानपुर। (Sisamau Vidhan sabha Seat history) सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में जीत की राह मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित मतदाताओं के बीच उलझी हुई है। भाजपा ने 1991 में इस सीट पर पहली बार जीत दर्ज की थी, लेकिन 2012 से इस सीट पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है।

इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में मिले वोटों ने साफ कर दिया कि भाजपा के लिए अभी यह सीट आसान नहीं है, वह भी तब जब कांग्रेस सपा के साथ खड़ी हुई है।

भाजपा को लगातार पांच बार मिला हार

सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में एक के बाद एक लगातार पांच हार का सामना करने वाली भाजपा प्रदेश में अपनी सरकार होने के नाते इस सीट के उपचुनाव को जीतने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए है। 1985 में छवि लाल, 1989 में पन्ना लाल तांबे के तीसरे नंबर पर रहने के बाद 1991 में राकेश सोनकर ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी।

राकेश सोनकर ने 1993 और 1996 में लगातार दो और जीत हासिल कीं। इसके बाद लगातार दो बार 2002 और 2007 में कांग्रेस के संजीव दरियाबादी ने भाजपा प्रत्याशियों को हराया।

संजीव दरियाबादी ने छीनी थी भाजपा से सीट

संजीव दरियाबादी के लिए यह सीट पारिवारिक कही जा सकती है, क्योंकि उनकी मां कमला दरियाबादी यहीं से 1985 में चुनाव जीती थीं। हालांकि इस सुरक्षित सीट को सामान्य घोषित करने के बाद यहां पर सपा का कब्जा हो गया।

सपा के इरफान सोलंकी 2012 में यहां से विधायक बने। पिछले दो चुनाव में सपा और भाजपा में यहां बहुत करीबी लड़ाई हुई। 2017 में इरफान सोलंकी को 73,030 वोट मिले तो भाजपा के सुरेश अवस्थी को 67,204 वोट। वहीं 2022 में इरफान को 79,163 वोट मिले तो भाजपा के सलिल विश्नोई को 66,897 वोट, लेकिन हाल में हुए लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट पर वोटों का अंतर बहुत ज्यादा हो गया।

इसका एक कारण बूथों की समीक्षा में यह सामने आया कि 60 बूथों में भाजपा को दहाई में भी वोट नहीं मिले। ये सभी बूथ घनी मुस्लिम बस्तियों के हैं। इतना ही नहीं 275 बूथ में से करीब 90 बूथ ऐसे हैं, जहां भाजपा का संगठन भी ठीक से खड़ा नहीं है।

सीट पर एक लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता

विधानसभा क्षेत्र के परिसीमन के बाद 2012 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था और उसमें जिस तरह से भौगोलिक स्थिति बदली, उसके चलते ही सीसामऊ में सपा लगातार जीत रही है। इस बार चुनाव में भाजपा ने जीत के लिए अपना फोकस बदला है। इस सीट पर 2,69,770 मतदाता हैं। इसमें से मुस्लिम मतदाता करीब एक लाख 10 हजार हैं।

वहीं ब्राह्मण और अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या करीब साठ-साठ हजार है। पार्टी ने इस बार अनुसूचित जाति बस्तियों पर शुरू से ही फोकस किया है।

भाजपा के लिए सीसामऊ सीट के प्रभारी वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और सह प्रभारी आबकारी राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल दोनों ही अनुसूचित जाति बस्तियों में संपर्क करते रहे हैं। सांसद रमेश अवस्थी भी अनुसूचित जाति बस्तियों में पांच जन चौपाल लगाकर लोगों को शिकायतों को दूर करने का प्रयास कर चुके हैं।

सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की फिराक में भाजपा

जहां सपा अपने वोट बैंक को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रही है, वहीं भाजपा को मालूम है कि वह सपा के वोट बैंक में से कुछ हासिल नहीं कर पाएगी, इसलिए वह अपने वोट बैंक के सहेजने के प्रयास में जुटी हुई है। दूसरी ओर कांग्रेस का साथ लेकर सपा इस वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी में है।

प्रत्याशी घोषित करने के मामले में सपा ने बाजी मार ली है और सपा विधायक रहे इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी मैदान में हैं। भाजपा ने अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है, लेकिन उसके लिए चिंता की बात यह है कि रामलीला के मंचों पर भी इस बार नसीम सोलंकी को न सिर्फ स्थान दिया गया, वरन कुछ स्थानों पर उन्हें भाषण भी देने का अवसर दिया गया।

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