बॉलीवुड में खास पहचान बना चुकी नयनी को क्यों कहते हैं रिंग मास्टर, जानें-उनकी जुबानी
कानपुर की गलियों से निकल कर नयनी दीक्षित ने मायानगरी में अभिनय की गजब छाप छोड़ी है।
कानपुर, [अनुराग मिश्र]। विरासत में मिले अभिनय और रगों में दौड़ती प्रतिभा के दम पर नयनी दीक्षित फिल्म इंडस्ट्री का जाना पहचाना चेहरा बन चुकी हैं। उन्होंने साल 2000 में मिस कानपुर बनने के बाद मुंबई की राह पकड़ी थी। एक्टिंग का कोर्स किया और फिर अभिनय की दुनिया में छा गईं। फिल्म शादी में जरूर आना की आरती (कृति खरबंदा) की बड़ी बहन आभा का यादगार किरदार निभाने वाली नयनी अब नवोदित कलाकारों को प्रशिक्षण भी देती हैं। अब कनपुरिया टैलेंट को तराशकर कर्ज उतारने की उनकी चाहत है। मेस्टन रोड के पास चौक मोहल्ले की गलियों से मायानगरी में अलक मुकाम बनाने वाली नयनी से बातचीत के प्रमुख अंश...।
- अभिनय आपको विरासत में मिला, आपने कोर्स भी किया अब प्रशिक्षण भी दे रही हैं? अदाकारी के लिए कोर्स कितना जरूरी है ?
रंगकर्मी पिता विजय दीक्षित से अभिनय विरासत में मिला। मां स्नेह गृहणी थीं, लेकिन घर का माहौल अभिनय का था। पिता से मिलने कलाकार ही आते थे। इसीलिए मेरी दिलचस्पी बढ़ी। थिएटर तो आ गया था, एक्टिंग भी करने लगी थी, लेकिन कोर्स से कई बारीकियां पता चलीं। इसीलिए मेरा मानना है कि कोर्स जरूरी है। इससे बहुत सी चीजें सीखने को मिलती हैं।
- नवोदित कलाकार आपको 'रिंग मास्टर' कहते हैं, ये नाम कैसे मिला?
मैंने पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से एक्टिंग का कोर्स किया था। वहां मुझे नसीर साहब, रजा मुराद सरीखे दिग्गजों का सानिध्य मिला। अभिनय की बारीकियां सीखीं। वहीं अनुभव नवोदित कलाकारों को देती हूं। कई बार सख्ती करनी पड़ती है। हंसते हुए... प्रशिक्षण के समय में मैं वाकई रिंग मास्टर ही हो जाती हूं। इसलिए स्टूटेंड्स इस नाम से बुलाने लगे।
जी, बिल्कुल अभी कुछ दिन पहले ही मैनें सनी जी के बेटे रॉकी को एक्टिंग के गुर सिखाए थे। मिस वल्र्ड मानुषी छिल्लर ने भी कुछ क्लासेज अटेंड की हैं। कानपुर में भी मैं एक वर्कशॉप कर चुकी हैं। वहां मैनें देखा कि कितना टैलेंड है। मुंबई, दुबई और बहरीन में भी जाकर एक्टिंग का प्रशिक्षण दे चुकी हूं।
मुझे बचपन से ही नृत्य का शौक था। जुहारी देवी कॉलेज से इंटर की पढ़ाई के बाद पीपीएन कॉलेज से हिंदी लिटरेचर और मनोविज्ञान से स्नातक किया। ङ्क्षहदी साहित्य में मैं विश्वविद्यालय टॉपर भी रही थी। वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। साल 2000 में जब मिस कानपुर प्रतियोगिता जीती। उसी दौरान मैनें लखनऊ घराने से कथक सीखा था, फिर अदाकारी में व्यस्त होगी। मौका मिलता है तो कथक जरूर करती हूं।
ऐसा तो कुछ नहीं है। मैं स्पेशल छब्बीस, देल्हीवेल्ही, क्वीन, शादी में जरूर आना समेत कई बड़ी फिल्मों का हिस्सा रही हूं। शॉट फिल्में भी की हैं। हर बार अलग तरह का रोल भी मिला। मेरी हमेशा ही से यही चाहत रही कि मैं ऐसा रोल करूं जो लोगों के लिए चर्चा का विषय रहे। किरदार चुनौतीपूर्ण होता है तो काम करने में मजा आता है।
बहुत ही ज्यादा, कानपुर से मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हैं। मैं आज जो कुछ भी हूं वह मेरे अपने शहर की ही देन है। इसीलिए मैं कानपुर में एक ट्रेनिंग एकेडमी शुरू करना चाहती हूं। यहां के टैलेंट को ऐसा बनाना चाहती हूं कि वह जहां भी जाकर कानपुर का नाम ले तो लोग कहें कि ये तो अभिनय में माहिर होगा।