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World Food Day 2022 : जलवायु परिवर्तन से बिगड़ा फसल चक्र, विज्ञानी विकसित कर रहे समयानुकूल बीज प्रजाति

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से जलवायु परिवर्तन पर सहिष्णु फसल पर अनुसंधान हो रहा है । इसमें सीएसए में बिना सिंचाई के पैदा होने वाले गेहूं की के-1616 और राई की सुरेखा प्रजाति तैयार हुई है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sun, 16 Oct 2022 10:48 AM (IST)
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सीएसए में विकसित हो रही बीज की प्रजातियां।

कानपुर, जागरण संवाददाता। जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा नुकसान अन्नदाताओं (किसानों) को उठाना पड़ रहा है। जब वर्षा होनी चाहिए, तब नहीं हो रही है और जब नहीं होनी चाहिए, तब कई दिन तक बरसात के कारण खेतों में पानी भर रहा है। जलवायु परिवर्तन और वर्षा के अनियमित चक्र के कारण किसानों का नुकसान बचाने के लिए ही कृषि विज्ञानियों ने शोधकार्य व नवीन प्रजातियों के विकास की दिशा में कदम बढ़ाया है ताकि देश में खाद्यान्न की उपज बढ़े और किसानों की आय भी बढ़ती रहे।

हाल ही में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के विज्ञानियों ने गेहूं की के-1616 व राई की सुरेखा प्रजाति विकसित की है, जबकि मक्का, दलहन, मोटे अनाजों पर शोध चल रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबंधित संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों में वर्तमान समय में विभिन्न फसलों की ऐसी प्रजातियों को विकसित करने की कोशिश की जा रही है, जो जलवायु सहिष्णु हों। इसके लिए भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आइआइपीआर) में जीनोम (पौधों के जीन) संपादन व स्पीड ब्रीडिंग (तेजी से प्रजातियां विकसित करना) का केंद्र भी स्थापित किया गया है।

अरहर, चना समेत अन्य दलहनी फसलों की प्रजातियों पर अनुसंधान चल रहा है। इसी तरह सीएसए में राई, दलहन, गेहूं, मक्का व मोटे अनाज (रागी) पर अनुसंधान किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डा. खलील खान ने बताया कि संस्थान की ओर से हाल ही में विकसित की गई गेहूं की प्रजाति के-1616 पूरे उत्तर प्रदेश के लिए अनुमन्य है। यह बिना सिंचाई के ही 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज देगी। इसी तरह राई की सुरेखा प्रजाति भी उच्च तापमान को सहने की क्षमता रखती है और इसमें प्रति हेक्टेयर 28 क्विंटल तक उपज मिलेगी। अगले कुछ वर्षों में कई प्रजातियों के और विकसित होने की संभावना है।

पूर्व में आईं सीएसए की जलवायु सहिष्णु प्रजातियां

सीएसए के कुलपति डा. डीआर सिंह ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से फसलों को बचाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से लगातार शोधकार्य चल रहे हैं। पूर्व में भी गेहूं की उच्च तापमान सहने वाली प्रजातियां के-7903 (हलना) व के-9423 (उन्नत हलना) का विकास किया गया था। इसके अलावा राई की कांति, मटर की इंद्र व जय, मसूर की केएलबी-303, केएलबी-345, केएलएस-122 प्रजातियां और चने की अवरोधी, केडब्ल्यूआर-108 व केपीजी-59 विकसित की जा चुकी हैं। ये सभी प्रजातियां किसानों के लिए बेहद लाभकारी हैं। अच्छी उपज होने से इनकी काफी मांग है।

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