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World Liver Day 2022: लिवर को हेल्दी रखने के लिए काम आएंगे ये 5 टिप्स, जानें एक्सपर्ट्स की राय

World Liver Day 2022 कानपुर के आयुर्वेद चिकित्सालय की चिकित्साधिकारी डा. अर्पिता सी. राज ने बताया कि अल्कोहल का अधिक सेवन दवाओं का दुष्प्रभाव मोटापा और खानपान की अनियमितता से होती हैं लिवर की बीमारियां। वर्ल्‍ड लिवर डे पर जानते हैं कि क्या हैं इसके संक्रमण के प्रारंभिक लक्षण।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 19 Apr 2022 11:53 AM (IST)
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World Liver Day 2022: आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में इसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए कैसी होनी चाहिए दिनचर्या
कानपूर, लालजी बाजपेयी। हमारा संपूर्ण स्वास्थ्य उपापचय क्रिया (मेटाबालिज्म) पर निर्भर है और इसमें लिवर (यकृत) की अहम भूमिका है। यह ऐसा अंग है, जो शरीर में होने वाली सर्वाधिक रासायनिक क्रियाओं को पूरा करता है। शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना, पाचन क्रिया को सक्रिय रखना, कोलेस्ट्राल व शुगर का नियंत्रण, प्रोटीन का संश्लेषण और शारीरिक ऊर्जा, जिसे रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं, में वृद्धि करना लिवर के विशेष कार्यों में शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर पांचवां भारतीय लिवर की किसी न किसी समस्या से ग्रसित है।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में लिवर के अस्वस्थ होने का कारण पाचन क्रिया का खराब होना है। पाचन तंत्र में गड़बड़ी तब आती है, जब जीवनशैली अनियमित, वजन बढ़ा हुआ, असंयमित खानपान और शारीरिक निष्क्रियता रहती है। हालांकि कुछ मामलों में लिवर के संक्रमित होने का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है। अल्कोहल का अत्यधिक सेवन व दवाओं का दुष्प्रभाव भी इसकी सेहत बिगाड़ देता है। बदली जीवनशैली में लिवर में चर्बी का जमाव व सूजन का होना आम बात है, लेकिन इस तरह की प्रारंभिक समस्याओं की अनदेखी ही भविष्य में गंभीर समस्या का कारण बनती है। यदि आयुर्वेद सम्मत आहार-विहार अपनाया जाए तो लिवर किसी बीमारी या संक्रमण की चपेट में आने से बचा रहेगा।

इन लक्षणों पर रखें नजर

  • पेट साफ न होना
  • पेट में हल्का दर्द रहना
  • कमजोरी महसूस होना
  • आंखों व नाखूनों का रंग पीला होना
  • लगातार पेशाब पीली होना
  • वजन गिरना
  • कमजोरी महसूस होना
  • भूख न लगना
  • रह-रहकर उल्टी महसूस होना
इनसे मिलेगा फायदा

  • दही व मट्ठे का सेवन करें। इससे पाचन तंत्र सक्रिय रहेगा
  • पानी की स्वच्छता का विशेष खयाल रखें।
  • गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर नियमित पिएं।
  • नियमित पालक के जूस या सब्जी का सेवन करें। यह लिवर सिरोसिस में बहुत फायदेमंद है।
  • पर्याप्त पानी पिएं, जिससे शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बना रहे।
सुपाच्य भोजन करें: पाचन तंत्र की खराबी में हमारे आहार की अहम भूमिका होती है। फास्ट फूड, जंक फूड और अधिक चिकनाई व गरिष्ठ भोजन से शरीर में चर्बी जमा होने लगती है। इसका पहला प्रभाव लिवर पर पड़ता है और आंतों में सूजन आ जाती है। धीरे-धीरे इससे पीलिया की समस्या होती है, जो लिवर का प्रारंभिक संक्रमण है। इसलिए ऐसे भोजन का सीमित मात्रा में ही सेवन करें। भोजन में सुपाच्य और पौष्टिक आहार को प्राथमिकता दें।

मौसमी फलों व सब्जियों का करें सेवन: फल व सब्जियों में प्रचुर मात्रा में विटामिंस, फाइबर व अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं। मौसमी फल व सब्जियों जैसे पपीता, सेब, आंवला, अंगूर, पालक, बींस, गाजर, नींबू, केला आदि का सेवन पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाता है। इनके सेवन से शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं। इनमें फाइबर होने के कारण आंतें साफ रहती हैं और शरीर से विषाक्त तत्व बाहर हो जाते हैं।

वजन नियंत्रित रखें: शारीरिक निष्क्रियता और तैलीय भोजन का अधिक सेवन वजन बढ़ने का प्रमुख कारण है। बढ़ा वजन या मोटापा फैटी लिवर के साथ ही हृदय की बीमारियां, डायबिटीज, रक्तचाप, आस्टियोपोरोसिस समेत कई समस्याओं का कारण बनता है। इसलिए वजन नियंत्रित रखना आवश्यक है। आयुर्वेद के अनुसार, आहार में समुचित अनुशासन और ऋतु के अनुसार संयम रखें। इससे वजन नियंत्रण में रहेगा।

व्यायाम बने दिनचर्या का हिस्सा: शरीर के लिए भोजन जरूरी है और भोजन से आवश्यक तत्व शरीर को मिलें इसके लिए ठीक से इसका पाचन होना चाहिए। काम की व्यस्तता, आलस्य या अनियमित दिनचर्या के कारण लोग शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं रहते हैं। ये पाचन तंत्र ही नहीं, सभी शारीरिक समस्याओं की मूल वजह है। इससे बचने के लिए सुबह टहलना या व्यायाम करना आवश्यक है। व्यायाम से कैलोरी बर्न होगी और शरीर में चर्बी का जमाव नहीं होगा। अतिरिक्त चर्बी शरीर के हर अंग पर दुष्प्रभाव डालती है।

उपचार: आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति उपचार में वैज्ञानिक एवं समग्र दृष्टिकोण को शामिल करती है। लिवर के संक्रमित होने पर आयुर्वेदिक उपचार में आहार-विहार और व्यायाम के साथ रोग की स्थिति के हिसाब औषधियों का सेवन कराया जाता है। इसके साथ ही आयुर्वेद में वर्णित शोधन, विरेचन और पंचकर्म आदि विधियां अपनाई जाती हैं। लिवर प्रोफाइल टेस्ट के आधार पर उपचार से संक्रमण का निदान किया जाता है।

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