सल्फर के प्रयोग से बढ़ता सरसों का उत्पादन
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : तिलहनी फसल में सरसों का अहम स्थान है। लागत कम और फायदा
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : तिलहनी फसल में सरसों का अहम स्थान है। लागत कम और फायदा अधिक होने से किसानों के लिए सरसों पीला सोना है। चार माह में तैयार होने वाली ये फसल प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल की पैदावार देती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 25 हजार रुपये की लागत से लगभग एक लाख रुपये की आमदनी होती है।
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संतुलित उर्वरक का प्रयोग जरूरी
सरसों की बोवाई के लिए सितंबर के प्रथम सप्ताह से 15 अक्टूबर तक का समय उत्तम है। बोवाई में प्रति हेक्टेयर 4 से 5 किग्रा बीज लगता है। कृषि वैज्ञानिक डा. अर¨वद कुमार कहते हैं कि सरसों के अच्छे उत्पादन के लिए प्रति बीघा 5 किग्रा सल्फर उर्वरक जरूर डालना चाहिए। जो किसान सल्फर का प्रयोग न करना चाहें वह प्रति बीघा 50 किग्रा जिप्सम प्रयोग कर सकते हैं। इससे दाना गोल आता है और उत्पादन बढ़ता है। फूल आने से ठीक पहले हल्की ¨सचाई जरूरी है। ध्यान रहे कि जलभराव न हो नहीं तो पौधे पीले पड़ने से उत्पादन कम हो जाता है। उपज ठीक हो इसके लिए 15 से 20 दिन की फसल होने पर निराई जरूर करें। फसल में लाइन से लाइन की दूरी 40 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी होनी चाहिए।
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टॉ¨पग कर बढ़ा सकते उत्पादन
सरसों में टॉ¨पग यानी पौधे के ऊपरी फूल तोड़ने से फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। कृषि वैज्ञानिक के अनुसार पहले शीर्ष के फूल तोड़ने से साइड ब्रां¨चग बढ़ती है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर दवा को 800 लीटर पानी में मिलाकर बोवाई के चार दिन बाद छिड़काव करना चाहिए। आरा मक्खी से फसल बचाने के लिए पांच किग्रा मेथाइल पैराथियान का छिड़काव कर सकते हैं।
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सरसों की उन्नत किस्में
वरुणा टाइप-59, क्रांति, रोहिणी, ऊषा गोल्ड हैं। ऊसर में एनडीआर-850 बोने से उत्पादन बंपर होता है। आरएच-749, 406, आइजे-31 उन्नत किस्में हैं। पछेती बोवाई के लिए वरदान किस्म है। इसकी बोवाई 15 नवंबर तक कर सकते हैं।