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Amir Khusro: अपने ही घर में अमीर खुसरो मौन, पटियाली में सिर्फ एक पुस्तकालय तक सिमटी यादें

अमीर खुसरो की जन्मभूमि कासगंज जिले का पटियाली गांव है। देश को मीठे गीत गजल देने वाले इस मिट्टी में जन्में अमीर खुसरो को उनकी अपनी ही धरती पर भूला दिया गया है। यहां उनके नाम पर एक पुस्तकालय खड़ा है।

By Jagran NewsEdited By: Nirmal PareekUpdated: Tue, 27 Dec 2022 12:18 PM (IST)
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अमीर खुसरो की यादें पटियाली में सिर्फ एक पुस्तकालय तक सिमटी
कृष्णबिहारी शर्मा, कासगंज: अमीर खुसरो की जन्मभूमि में कभी आप जाएंगे तो सिढ़पुरा रोड पर मीलों तक सड़क के दोनों किनारों पर जामुन के बहुत पुराने पेड़ मिलेंगे। बहुत पुराने होने पर जैसे इमली के पेड़ के तने रस्सी की तरह इंठ जाते हैं, ठीक वैसी ही शक्ल-सूरत इन जामुन के पेड़ों की है। क्या सोचकर ये जामुन के पेड़ कब, किसने लगवाए होंगे? वराहमिहिर संहिता कहती है कि जहां जामुन के पेड़ होते हैं वहां बहुत कम गहराई में ही मीठा जल मिलता है। अब जल का तो पता नहीं, लेकिन खड़ी बोली को मीठे गीत, गजल देने वाले इस मिट्टी में जन्में अमीर खुसरो को उनकी अपनी ही धरती पर भूला दिया गया है।

अमीर खुसरो की जन्मस्थली पर बना पुस्तकालय

बता दें कासगंज जिले का पटियाली गांव अमीर खुसरो की जन्मभूमि है। आज यह कासगंज की एक तहसील है। कासगंज के एटा से अलग होकर जिला बनने तक यह एटा का हिस्सा था। इस गांव तक दो रास्तों से पहुंचा जा सकता है। कासगंज होते हुए सोरों जाने वाले रास्ते से या फिर एटा से सीधे सिढ़पुरा होते हुए पटियाली को सड़क जाती है। पटियाली की आबादी करीब 25 हजार है। पटियाली के किला क्षेत्र में अमीर खुसरों के पूर्वजों का कभी घर था। यहीं उन्होंने जन्म लिया। मगर, आज यहां उनके नाम पर एक पुस्तकालय खड़ा है। इसी के पास करीब एक एकड़ भूमि में खुसरो पार्क और खुसरो चिल्ड्रन पार्क बने हैं। ये करीब 20 साल पहले बनाए गए थे। यहीं पर एक साहित्य चबूतरा है। उनकी यादों के नाम पर कुल जमा यही पूंजी है।

अमीर खुसरों ने लगभग तीन राजवंशों का शासन देखा

प्राप्त जानकारी के अनुसार खुसरो पुस्तकालय की देखरेख नगर पालिका करती है। पुस्तकालय में कुल 150 पुस्तकें हैं, इनमें भी खुसरो पर लिखी गईं विभिन्न लेखकों की कुल 50 पुस्तकें ही होंगी। मगर उनकी वे पांडुलिपियां या उनसी जुड़ी कोई याद नहीं हैं जिन्हें देखकर खुसरो के लेखन को ताजा किया जा सके। कुछ साल पहले तक 27 दिसंबर को खुसरो के जन्मदिन पर यहां आयोजन हुआ करते थे। मगर, अब उसे भी भूला दिया गया है। इस बार यहां आयोजन के लेकर किसी तरह की कोई तैयारी नहीं है। नगर पालिका को भी इसके में कोई रुचि नहीं बची है। इस आयोजन को कभी तहसील प्रशासन कराता था, मगर चार साल से ये आयोजन नहीं हुआ है। अमीर खुसरों ने लगभग तीन राजवंशों का शासन देखा। गुलाम, खिलजी, तुगलकों के उत्थान और पतन उनकी आंखों के आगे हुआ। वे निजामुद्दीन औलिया के परम भक्त रहे। सात शताब्दियों से खानकाहों में और सूफी समागमों में उनके रचे गीत हमें सुनाई देते हैं। अमीर खुसरो की ‘छाप तिलक’ तो सबके कंठ में मिस्री घोल ही रही है।

अमीर खुसरो- जीवन वृतांत

खड़ी बोली के जनक कहे जाने वाले अमीर खुसरो के पिता मध्य एशिया की लाचन जाति के तुर्क सैफुद्दीन तुर्क चंगेज खां के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलबन के राज्यकाल में शरणार्थी के रूप में भारत में आ बसे थे। उनकी मां बलबन के युद्ध मंत्री इमादुतुल मुल्क की पुत्री भारतीय मुसलमान थीं। खुसरो मात्र सात साल के थे कि पिता का देहांत हो गया। किशोरावस्था में ही उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। राजदरबार में रहते हुए भी खुसरो हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे। उन्होंने भारतीय और ईरानी रागों का मिश्रण किया। नवीन राग शैली इमान, जिल्फ, साजगरी आदि को उन्हीं की देन माना जाता है। खड़ी बोली के साथ ही वे कव्वाली के जनक और तबला व सितार वाद्य यंत्रों के आविष्कारक माने जाते हैं।

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