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सास बनकर ही दोबारा देहरी चढ़ती है बहू

पटियाली के गांव नरदौली में स्थापित चंडी माता के मंदिर में अनोखा रिवाज है।

By JagranEdited By: Updated: Wed, 25 Apr 2018 10:46 PM (IST)
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सास बनकर ही दोबारा देहरी चढ़ती है बहू

श्रवण कुमार, कासगंज: पटियाली के गांव नरदौली में स्थापित चंडी माता के मंदिर में अनोखा रिवाज आज भी कायम हैं। शादी के बाद ससुराल आने वाली वाली नई बहू मंदिर की देहरी पर दोबारा सास बनकर ही चढ़ती है। चार सौ साल पहले बने मंदिर की यह खास परंपरा आज भी कायम है। ग्रामीण इसके पीछे देवी मां का सपना बताते हैं, तो महिलाएं भी बिना संकोच इसका पालन करती है। दस्युओं ने भी इस मंदिर पर मनौती मांगकर घंटे चढ़ाए हैं। टीले पर बसे मंदिर पर आजकल धर्म की सरिता प्रवाहित हो रही है।

मंदिर स्थापना से भी दिलचस्प वाकया जुड़ा हुआ है। चार सौ साल पहले उन्नाव जिले के डोडिया खेड़ा गांव में महामारी फैलने के बाद हर रोज मौतों का सिलसिला शुरू होने पर देवी के भक्त बैस ठाकुर परिवार के सदस्यों ने माता की आराधना की तो देवी ने उनको गांव से पलायन कर अन्यत्र बसने का सपना दिया। सपने को हकीकत मानकर बैस ठाकुरों के साथ सभी जातियों के लोग रथ पर देवी मां की सोने की प्रतिमा को विराजमान कर एक अन्जान सफर पर चल दिए। गंगा के किनारे चले इस कारवां के रथ का पहिया गांव नरदौली के टीले पर आकर धंस गया तो सभी ने वहां लंगर डाल दिया।

बैस ठाकुर वंश के श्यामपाल बताते हैं कि देवी माता के स्वप्न के बाद पूर्वजों के साथ आए लोगों ने टीले पर ही माता को कच्चा मंदिर बनाकर विराजमान कर दिया। इस दौरान उनकी जंगल में रहने वाली जनजातियों से लड़ाई भी हुई, इस दौरान दोनों ओर के लोग मारे गए तो दो कुएं शवों से भर गए। बीते सालों पहले यहां आए लाला बाबा ने यहां यज्ञ करवाया तो कुएं खुलवाए गए, जिसमें अस्थियों के भंडार मिले। गांव के डॉ. सुनील का कहना है कि आज भी माता के डर से कोई मंदिर पर आकर झूठी कसम नहीं खाता, इसके पीछे भी माता का डर विद्यमान है। आज यह स्थान नरदौली के अलावा आसपास के श्रद्धालुओं के लिए खास आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर पर सागर मल्लाह और कल्लू मल्लाह भी पुलिस-पीएसी के कड़े पहरे के बाद भी घंटे चढ़ा गए थे। सालाना आयोजन के दौरान हर साल गांव से मंदिर तक धार चढ़ती हैं, जिसमें सभी सहभागिता निभाते हैं।

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अनोखी है यह रिवाज-

गांव के इस मंदिर पर बैस ठाकुर वंश की महिलाएं एक अनोखी परपरा का आज भी पालन कर रही हैं। इस वंश के युवक की शादी होने पर ससुराल आने वाली महिला पहली बार बहू के रुप में मंदिर में पूजा के लिए देहरी चढ़ती है तो इसके बाद उसे इस मंदिर की देहरी पर चढ़ने का मौका सास बनने के बाद ही मिलता है। इस परंपरा को इस वंश की महिलाएं आज भी देवी का आशीर्वाद मानकर निभाती आ रही हैं।

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पांच दिनी मेला में उमड़ रहे श्रद्धालु-

देवी मेलों का आयोजन चैत्र और क्वार में होता है, ऐसा सभी ने सुना और देखा होगा, लेकिन इस मंदिर का सालाना कार्यक्रम बैसाख में नौंवी से शुरू होकर पूíणमा तक चलता है। अब इस मंदिर का पांच दिनी कार्यक्रम शुरू हुआ है। ग्रामीणों की बड़ी सहभागिता से जुड़े आयोजन में धाíमक और मनोरंजन के कार्यक्रम भी होते हैं। अब यहां 27 अप्रैल को देवी का जागरण होगा तो मंगलवार से तीन दिनी मनोरंजन के कार्यक्रम शुरू हो गए हैं। मेला कमेटी से जुड़े मुन्ना लाल, डॉ. सुनील, सुकेश ¨सह, विनोद ¨सह, प्रमोद ¨सह, गप्पू , दीपक पाठक, सुशील ¨सह, ललित कुमार ने बताया कि पांच दिनी मेले में ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी दुकानें सज गई हैं तो अपार भीड़ माता रानी के दरबार में हाजिरी लगा रही है।

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