Tesu Jhanjhi Festival In Kasganj: बेहद प्राचीन है टेसू झांझी की परंपरा, महाभारत काल से जुड़ी है दिलचस्प कहानी
Tesu Jhanjhi Festival Celebrate In Kasganj भारतीय लोक परंपराएं एक से बढ़कर एक हैं रामलीला के दौरान टेसू और झांसी की परंपरा। शाम होते ही बच्चों की टोलियां हाथों में टेसू और झांझी को लेकर गली मोहल्लों में मेरा टेसू यहीं अड़ा खाने को मांगे दही बड़ा टेसू रे टेसू घंटा बजैयो नौ नगरी दस गांव बसइयो जैसे तुकबंदी से गाए जाने वाले गानों की धूम देखने को मिलेगी। छोटे-छोटे बच्चे घर-घर दस्तक देकर गीत गाते हुए बदले में अनाज व पैसा मांगते हैं।
संवाद सहयोगी, कासगंज। दशहरा के अगले पांच दिनों तक बच्चों में टेसू-झांझी से खेलने, उनका पूजन करने की भी सनातनी परंपरा है। इसके चलते बाजार में जगह-जगह इनकी दुकानें सज गई हैं।
स्वजन के साथ विजय दशमी मेला देखने पहुंच रहे बच्चे इन्हें खरीद रहे हैं। बुधवार से पांच दिनों तक वह घरों में इनकी पूजा करेंगे और पूर्णिमा को इन्हें विसर्जित किया जाएगा।
पूजा कर गाते हैं गीत
दशहरा के अगले ही दिन से बच्चों में टेसू-झांझी खेलने की पुरानी परंपरा है। लड़के टेसू और लड़कियां झांझी की पूजा करती हैं। शाम ढलते ही वह इनमें दीपक जलाते हैं और गीत गाते हैं। टेसू के तमाम गीत प्रचलित हैं। इनमें मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दहीबड़ा... आदि शामिल हैं।
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पहले परंपरा टेसू-झांझी लेकर आसपड़ोस में मांगने की भी थी, मगर यह अब मलिन बस्तियों में ही सिमट कर रह गई है। मध्यम और उच्च वर्गीय परिवारों के बच्चे परंपरा का अपने घरों में निर्वहन करते हैं, बाहर नहीं निकलते। यही परंपरा बुधवार से शुरू होगी। इसके लिए मंगलवार को दशहरा मेला मैदान के साथ ही बाजारों में जगह-जगह टेसू-झांझी की दुकानें सजी नहीं आईं। बच्चों ने स्वजन के साथ पहुंचकर टेसू-झांझी खरीते।
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टेसू-झांझी का विवाह भी कराते थे बच्चे
टेसी-झांझी की परंपरा को बुजुर्ग महाभारतकाल की कहानी से जुड़ा बताते हैं। उसी परंपरा के निर्वहन के रूप में बच्चे टेसू-झांझी का पहले विवाह भी कराते थे। उसमें विवाह की सभी रस्मे अदा होती थीं, मगर अब सिर्फ यह परंपरा टेसू-झांझी से बच्चों के खेलने तक सीमित रह गई है।
मान्यता के अलग हैं मत
टेसू की उत्पत्ति और इसकी मान्यता के लिए विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। मान्यता है कि टेसू का आरंभ महाभारत काल से हुआ था। पांडवों की माता कुंती ने सूर्य उपासना व तपस्या के दौरान वरदान से कुंवारी अवस्था में ही दो पुत्र बब्रुवाहन व दानवीर कर्ण के रूप में जन्म दिया था।
बब्रुवाहन को कुंती लोक लाज के भय से जंगल में छोड़ आई थी। वह बड़ा ही विलक्षण बालक था। सामान्य बालक की अपेक्षा दुगनी रफ्तार से बढ़ने लगा। कुछ सालों में ही उसने उपद्रव करना शुरू कर दिया। पांडव उससे बहुत परेशान रहने लगे तो सुभद्रा ने भगवान कृष्ण से कहा कि वे उन्हें बब्रुवाहन के आतंक से बचाएं।
भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन काट दी, परंतु बब्रुवाहन अमृतपान कर लेने से मरा नहीं। तब कृष्ण ने उसके सिर को छैंकुर के पेड़ पर रख दिया। फिर भी वह शांत न हुआ तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से झांझी को उत्पन्न कर टेसू से उसका विवाह रचाया।