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कौशांबी नहीं छोड़ेगी बसंती...,परंपरा निभाते हुए लड़ेगी न्याय की लड़ाई; बोली- 'बेवफा सिपाही को रास नहीं आ रहा...'

Kaushambi News कौशांबी के सिपाही के प्रेमजाल में फंसकर कोर्ट मैरिज करने वाली बसंती कर्मकार ने जिला नहीं छोड़ने का फैसला लिया है। उसका बस यही कहना है कि बेटी को पिता का नाम व हक दिलाने के लिए वह सामाजिक परंपरा निभाते हुए न्याय की लड़ाई लड़ने को तैयार है। बसंती कर्मकार ने उच्चाधिकारियों से भी मदद के लिए गुहार लगाई है।

By Vikas Malviya Edited By: Abhishek Pandey Updated: Fri, 09 Feb 2024 08:43 PM (IST)
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कौशांबी नहीं छोड़ेगी बसंती...,परंपरा निभाते हुए लड़ेगी न्याय की लड़ाई; बोली- 'बेवफा सिपाही को रास नहीं आ रहा...'
जागरण संवाददाता, कौशांबी। कौशांबी के सिपाही के प्रेमजाल में फंसकर कोर्ट मैरिज करने वाली बसंती कर्मकार ने जिला नहीं छोड़ने का फैसला लिया है। उसका बस यही कहना है कि बेटी को पिता का नाम व हक दिलाने के लिए वह सामाजिक परंपरा निभाते हुए न्याय की लड़ाई लड़ने को तैयार है।

बसंती कर्मकार ने उच्चाधिकारियों से भी मदद के लिए गुहार लगाई है।  नार्थ त्रिपुरा के धर्मानगर रानीबारी निवासी बसंती कर्मकार का कहना है कि इंटरनेट मीडिया के जरिए कौशांबी में तैनात दीपक निवासी नगला कुंजी, गोंडा अलीगढ़ ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसा लिया।

2022 में की थी कोर्ट मैरिज

वर्ष 2022 में त्रिपुरा में कोर्ट मैरिज कर उसे वह अपने साथ लेकर कौशांबी आ गया। जुलाई 2023 में दीपक को जानकारी हुई कि वह गर्भवती है तो उसे छोड़कर भाग निकला। शिकायत पर मंझनपुर पुलिस ने सिपाही के खिलाफ केस दर्ज किया।

पुलिस अधीक्षक बृजेश कुमार श्रीवास्तव से उसे तत्काल प्रभाव से निलंबित किया। दो जून की रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही बसंती ने न्यायालय में भरण पोषण के लिए वाद दाखिल कर रखा है। इस बीच मंगलवार की रात उसने जिला अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। इससे उसका इरादा और भी मजबूत हो गया।

बसंती के अनुसार अब वह कौशांबी नहीं छोड़ेगी। चाहे जितना भी कोई दबाव बनाने की कोशिश करे। वह अपनी बेटी को पिता का नाम व हक दिलाकर रहेगी। उसका कहना है कि ऐसा नहीं है कि बेटी के जन्म की जानकारी सिपाही व उसके परिवार को नहीं है, लेकिन किसी ने हाल जानना तक उचित नहीं समझा।

समाज को जानकारी होने पर परिवार का बंद हो सकता है हुक्का-पानी

बताया कि आदिवासी प्रांत की होने के कारण सामाजिक परंपराओं का झंझावत उसे झेलना पड़ सकता है। इसके चलते वह अपने मायके नहीं जा रही है, क्योंकि इसकी जानकारी समाज के लोगों को हुई तो परिवार का हुक्का-पानी बंद हो जाएगा।

बताया कि माता-पिता उसे महीने में ढाई-तीन हजार रुपये भेज देते हैं, उसी से खर्च चल रहा है। उसने कुछ दिन पहले पुलिस अफसरों से भी आरोपित सिपाही की वेतन स्लिप मांगने के लिए गुहार लगाई थी। जिससे कोर्ट में भरण पोषण खर्च का लाभ मिल सके।

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