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हल्दी पर नहीं चढ़ सका 'पहल का रंग', केले के रेशे की तरह हल्दी को भी ODOP में शामिल करने का हुआ था प्लान

डेढ़ वर्ष पूर्व हल्दी को ओडीओपी में शामिल करने की पहल हुई थी लेकिन अब तक बात नहीं बनी। इरोड सांगली और गुंटूर की तरह यहां इसकी चमक बिखरेगी। प्रशासन ने इसका आधार देते हुए प्रस्ताव शासन को भेजा भी था। दरअसल जिले के 793 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। किसानों को प्रति एकड़ दो से ढाई लाख रुपये की आमदनी होती है।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Sun, 03 Dec 2023 03:42 PM (IST)
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दुदही ब्लाक के पृथ्वीपुर गांव में हल्दी की फसल। जागरण

अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। केले के रेशे की तरह हल्दी को भी ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) में शामिल करने की पहल का रंग परवान नहीं चढ़ सका। प्रशासन की पहल के लगभग डेढ़ वर्ष बाद भी इसको लेकर कोई बात नहीं बन सकी ताकि हल्दी किसानों के जीवन में खुशहाली का रंग घुल सके। तब कहा गया था कि कुशीनगर का पीला सोना कही जाने वाली हल्दी शीघ्र ही किसानों की किस्मत बदलने का कार्य करेगी।

इरोड, सांगली और गुंटूर की तरह यहां इसकी चमक बिखरेगी। प्रशासन ने इसका आधार देते हुए प्रस्ताव शासन को भेजा भी था। दरअसल, जिले के 793 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। किसानों को प्रति एकड़ दो से ढाई लाख रुपये की आमदनी होती है और औसतन डेढ़ सौ से 200 क्विंटल उत्पादन होता है। सात माह में फसल तैयार हो जाती है।

यह सब देखकर योगी सरकार ने इसको ओडीओपी के तहत साथ लेने की पहल की। इसके बाद प्रशासन ने सर्वे किया और रिपोर्ट भेजी। इसको लेकर किसानों की रुझान बढ़ी तो उम्मीद जगी कि यहां की अर्थव्यवस्था के लिए पीला सोना कही जाने वाली हल्दी, किसानों को समृद्ध करेगी।

इसी संभावना को लेकर 2014 में ही टाटा ट्रस्ट के सहयोग से किसानों के बीच काम करने वाली संस्था सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट एसोसिएशन (SHDA) भी एक प्रयास शुरू की। 1150 किसानों की कंपनी बनाई गई, इसमें सभी किसान हितधारक हैं। सीमित क्षमता की प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई गई है। पर, आज तक इसको बिजली का कनेक्शन नहीं मिल सका है। दूसरी ओर हल्दी को लेकर ओडीओपी के साथ की उम्मीद लगाए किसान भी अब निराश हो चले हैं।

क्या है किसानों की मंशा

किसान रामभरोसा प्रसाद, जितेंद्र कुशवाहा, हरेश जायसवाल आदि का कहना है कि हल्दी को ओडीओपी में शामिल कर सरकार सुविधाएं दे, मसलन बाजार, ढुलाई आदि की सुविधा मिलती तो हल्दी वरदान बन जाती।

किसान हित को लेकर शासन-प्रशासन गंभीर

डीएम उमेश मिश्र ने बताया कि किसान हित को लेकर शासन-प्रशासन गंभीर हैं। हल्दी को लेकर क्या पहल की गई थी और क्या होना था, इसको पता कर फिर से पहल होगी।

मुख्य रूप से यहां होती है खेती, यह है संभावनाएं

इसकी खेती मुख्य रूप से दुदही, रामकोला, बिशुनपुरा, खड्डा, सेवेरी, कप्तानगंज, कठकुइयां और फाजिलनगर में होती है। बात संभावनाओं की करें तो कुशीनगर बिहार की सीमा से सटे है। इस ओर से बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए चार लेन की सड़क की बेहतर कनेक्टिविटी है। ऐसे में हल्दी आसानी से बाहर अपनी पहुंच बना सकती है।