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Boat Village: यूपी का एक गांव, जहां दहेज में नाव मांगते हैं लड़केवाले; नहीं चाहिए कार या बाइक

यूपी में एक गांव ऐसा है जहां शादी के दौरान लड़केवाले दहेज में कार या बाइक नहीं बल्कि नाव मांगते हैं। चारों ओर भरे पानी के कारण छोटी नौकाएं यहां के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी हैं। यही कारण है कि शादी विवाह में वर पक्ष वाले यहां दहेज में शगुन के तौर पर नाव मांगते थे।

By Dharmesh Kumar Shukla Edited By: Aysha Sheikh Updated: Thu, 01 Aug 2024 05:13 PM (IST)
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यूपी का एक गांव, जहां दहेज में नाव मांगते हैं लड़केवाले - प्रतीकात्मक तस्वीर।

दीपेंद्र मिश्र/अंबुज मिश्र, ईसानगर (लखीमपुर)। आपने दहेज में कार, मोटरसाइकिल या साइकिल मांगते तो सुना होगा लेकिन क्या कभी किसी को नाव मांगते सुना है? जी हां, है एक ऐसा स्थान, जहां पर लोग दहेज में नाव मांगते हैं। जिस तरह लोग गाड़ी रखते हैं, उसी तरह यहां लोग नाव रखते हैं। चारों ओर भरे पानी के कारण छोटी नौकाएं यहां के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी हैं। ब्लाक मु्ख्यालय, बैंक और बाजार जाने के लिए इनकी नाव मोटरगाड़ी से कम नहीं है।

यही कारण है कि शादी विवाह में वर पक्ष वाले यहां दहेज में शगुन के तौर पर नाव मांगते थे। कुछ वर्गों में यह परंपरा अभी तक कायम है। टपरा निवासी गोबरे कहते हैं कि जन्म हो तो विधि विधान नाव पर, शादी ब्याह हो तो नाव ही आर पार लाती ले जाती है। कभी कभार तो मौत होने पर अंतिम यात्रा भी नाव पर ही होती है। पहले छोटी नौकाएं थीं, अब बड़ी भी हैं। जो परिवार संपन्न हो पाए वह बाहर निकल गए।

आय का स्रोत भी बनती हैं नाव

नाव चलाने से लोगों की रोजी रोटी की व्यवस्था भी हो जाती है। साहबदीनपुरवा निवासी तीरथराम बताते हैं कि इस जलप्लावित क्षेत्र में लोगों को कहीं भविष्य नजर नहीं आता। खेती योग्य जमीन भी नदी में डूबी रहती है। इसलिए स्थानीय स्तर पर नाव के जरिये लोगों को नदी पार कराने और मछली पकड़ने, लकड़ी पकड़ने जैसे काम आय का मुख्य स्रोत होते हैं।

(1) : ग्राम पंचायत ओझापुरवा, बेलागढ़ी, पोखरा, लौकाही मल्लापुर, गनापुर, चकदहा, चंदौली, मांझासुमाली, सधुवापुर, गौढ़ी और उनके मजरे घाघरा नदी के पास बसे हैं। यहां लगभग 17 आबादी है। वर्ष भर यहां नाव की जरूरत रहती है। बरसात के समय में स्थिति भयावह हो जाती है।

(2) : टपरा गांव के कमलेश निषाद, मांझासुमाली के झब्बू लाल, बेलागढ़ी के परभू और चकदहा के नेत्रपाल बताते हैं कि उन्हें ससुराल से दहेज में नाव मिली थी। यह ग्रामीण बताते हैं कि गांव में करीब 50 लोगों के पास नाव है। इनमें से तमाम ऐसे हैं जिन्हें शादी में नाव मिली।

(3) : ग्राम हसनपुर कटौली के नाव निर्माता विनय अवस्थी बताते हैं कि बरसात के समय में करीब दो दर्जन नाव बिक जाती हैं। रमेश रस्तोगी का कहना है कि शादी विवाह के सीजन में भी एक दर्जन नाव बिकती हैं। एक नाव बनाने में 18 से 20 हजार खर्च आता है।

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