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दुधवा में वन्यजीवों के अपने ही तो नहीं बने दुश्मन...! थम नहीं रहा लगातार बाघों की मौत का सिलसिला

दुधवा में बाघों की लगातार मौत होने के मामले में कहीं अपने ही तो वन्यजीवों के दुश्मन नहीं बन गए हैं। तीन जून को रामपुर ढखेरवा में हुई बाघिन की मौत के पीछे वन विभाग के अधिकारियों द्वारा बताए गए कारण पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।

By swetank shankarEdited By: riya.pandeyUpdated: Sun, 18 Jun 2023 06:07 PM (IST)
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तीन जून को रामपुर ढखेरवा में हुई बाघिन की मौत

पलियाकलां (लखीमपुर) [हरीश श्रीवास्तव]: दुधवा में बाघों की लगातार मौत होने के मामले में कहीं अपने ही तो वन्यजीवों के दुश्मन नहीं बन गए हैं। मैलानी रेंज के रामपुर ढखेरवा में जिस तरह से बाघिन की मौत हुई थी, उससे इस बात को बल मिल रहा है कि जिले में अवैध कटान व वन्यजीवों के शिकार में विभागीय कर्मियों की संलिप्तता की बात काफी पुरानी है।

वन्यजीवों के मौत में शिकारियों व कर्मियों की मिलीभगत होने की आशंका

पहले विभाग के अधिकारी इस बात को एकदम सिरे से खारिज कर देते थे लेकिन पांच साल पहले महेशपुर रेंज में फंदे में फंसकर हुई बाघ की मौत के मामले में एक वाचर को नामजद करते हुए गिरफ्तार किया गया था और उससे हुई पूछताछ में शिकारियों से उसकी मिलीभगत की पुष्टि भी हुई थी। हालांकि इससे सभी कर्मियों की निष्ठा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है पर इतना तो है कि कुछ ऐसे लोग विभाग में शामिल हैं, जो वन्यजीव तस्करों व शिकारियों तथा लकड़ी माफियाओं को मदद पहुंचा रहे हैं।

रेंज में तैनात दो कर्मियों की आपसी दुश्मनी भी हो सकती है बाघिन की मौत की वजह

तीन जून को रामपुर ढखेरवा में हुई बाघिन की मौत के जो भी कारण वन विभाग के अधिकारियों ने बताए थे, उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जिस पर विश्वास किया जा सके और खास बात यह कि विभाग की टीम के पहुंचते ही कुछ देर बाद बाघिन की मौत हो गई। इस रेंज में तैनात दो कर्मियों की आपस में दुश्मनी भी काफी महत्वपूर्ण तथ्य है, लेकिन इसका खुलासा जांच से ही हो सकता है और जांच करने वाले अभी यहां तक पहुंचे नहीं हैं।

नेपाली माफिया की संलिप्तता की भी संभावना

इसके साथ ही दुधवा टाइगर रिजर्व में अवैध कटान व वन्यजीवों के शिकार के मामले में नेपाली माफिया की संलिप्तता हमेशा रही है। इससे भारत के वनाधिकारी काफी परेशान भी रहते हैं और जब भी दोनों देशों के अधिकारियों की बैठक होती है तो उसमें यह मुद्दा उठता भी है।  नेपाल के अधिकारी इसे दबी जबान से स्वीकार भी करते हैं लेकिन कार्रवाई के नाम पर होता कुछ नहीं है। उनका कहना है कि इसमें नेपाली माफिया को भारतीय वनकर्मी ही उन्हें संरक्षण देते हैं लेकिन तब यहां के अधिकारी नेपाली अधिकारियों पर कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति न होने की बात कहकर मामले को टालते रहे हैं।

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