ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे...किसान की मौत के बाद शव के पास खूब रोया बंदर, महिलाओं ने बंधाया ढांढस
ऐसी अपनी दोस्ती...ऐसा अपना प्यार। ये लाइनें भले ही फिल्मी गीत की हैं लेकिन किसान और बंदर की दोस्ती ने एक बार फिर इसे जीवंत कर दिया है। कहानी इत्ती सी है कि किसान दो वर्ष पूर्व अपनी फसल की रखवाली करने खेत में रात को जाता था। वहां झोपड़ी में वह रात का भोजन भी करता था। बंदर वहीं आकर बैठ जाता था।
हरीश श्रीवास्तव, पलियाकलां (लखीमपुर): ऐसी अपनी दोस्ती...ऐसा अपना प्यार। ये लाइनें भले ही फिल्मी गीत की हैं, लेकिन किसान और बंदर की दोस्ती ने एक बार फिर इसे जीवंत कर दिया है। कहानी इत्ती सी है कि किसान दो वर्ष पूर्व अपनी फसल की रखवाली करने खेत में रात को जाता था। वहां झोपड़ी में वह रात का भोजन भी करता था। बंदर वहीं आकर बैठ जाता था।
किसान रोजाना एक-दो रोटी खिला देता था। यहीं से किसान चंदन और बंदर आंखों की भाषा समझने लगे। भाव पढ़ने लगे। दोस्ती क्या होती है वह जान गए...उसमें जीने लगे। फिर एक दिन किसान की मौत हो गई। बंदर न जाने कहां से सूचना पा गया। दौड़ते भागते किसान के घर पहुंच गया। शव के पास जाकर कपड़े हटाकर दोस्त को चिरनिद्रा में सोए देख खूब रोया।
शव के पास आकर बैठ गया बंदर
भीरा के गोंदिया गांव निवासी चंदनलाल वर्मा की तीन दिन पहले मौत हो गई थी। परिवारजन और सगे संबंधी सभी शोक जता रहे थे। अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। उसी समय जंगल से एक बंदर उनके घर आया और मृत चंदनलाल के शव के पास जाकर चुपचाप बैठ गया।
कुछ देर तक गुमसुम बैठे रहने के बाद बंदर ने धीरे से शव के ऊपर पड़ा कपड़ा हटाया और चंदन का चेहरा देख रो पड़ा। बंदर को देख वहां मौजूद महिलाएं तो पहले डरीं, लेकिन जब बंदर ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया तो महिलाओं ने बंदर को ढांढस बंधाने की कोशिश की। इस पर बंदर महिलाओं की गोद में सिर रखकर दोस्त के जाने का गम मनाने लगा।
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बंदर कभी जमीन पर लेटकर तो कभी अपने दोस्त चंदन के शव के पास बैठकर उसे निहारने लगता। जब परिवार के लोग चंदन के शव को अंतिम संस्कार के लिए घर से लेकर चले तो बंदर कुछ दूर तक साथ चला, लेकिन उसके बाद वह वापस जंगल में चला गया।
मृतक चंदनलाल वर्मा के परिवारजन ने बताया कि चंदन का खेत जंगल के किनारे है। करीब दो साल पहले वह खेत में झोपड़ी डालकर फसल की रखवाली करते थे। तभी चंदन और बंदर की अच्छी दोस्ती हो गई थी।