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1980 Moradabad Riots: 43 साल बाद सच आया सामने, मुस्लिम लीग के समर्थकों ने कराई थी हिंसा, 84 लोगों की गई थी जान

1980 Moradabad Riots घटना के 43 वर्षों बाद यह सच तब सार्वजनिक हुआ जब जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की 458 पन्नों की जांच रिपोर्ट मंगलवार को विधानमंडल के पटल पर रखी गई। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद यह भी साफ हुआ है कि हिंसा में कोई सरकारी कर्मचारी व हिंदू उत्तरदायी नहीं था। आयोग ने प्रकरण की पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी।

By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Tue, 08 Aug 2023 08:13 PM (IST)
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1980 Moradabad Riots: मुस्लिम लीग समर्थकों ने कराई थी मुरादाबाद में सांप्रदायिक हिंसा (प्रतीकात्मक फोटो)

 राज्य ब्यूरो, लखनऊ : मुरादाबाद में 13 अगस्त, 1980 की सुबह ईद की नमाज के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश मुस्लिम लीग के नेता डा.शमीम अहमद खां (वर्ष 1999 में दिवंगत) व उनके कुछ साथियों ने रची थी। गहरे षड्यंत्र के तहत ही हिंसा से एक दिन पूर्व मुस्लिम लीग समर्थकों की ओर से दो झूठी एफआइआर भी दर्ज कराई गई थी।

घटना के 43 वर्षों बाद यह सच तब सार्वजनिक हुआ, जब जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की 458 पन्नों की जांच रिपोर्ट मंगलवार को विधानमंडल के पटल पर रखी गई। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद यह भी साफ हुआ है कि हिंसा में कोई सरकारी अधिकारी-कर्मचारी व हिंदू उत्तरदायी नहीं था।

कहा गया है कि ....'आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि ईदगाह व अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था। इन दंगों में आरएसएस या भाजपा कहीं भी सामने नहीं आई थी। यहां तक कि आम मुसलमान भी ईदगाह पर उपद्रव करने के लिए उत्तरदायी नहीं थे।'

एकल सदस्यीय जांच आयोग ने पूरे प्रकरण की गहनता से पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर, 1983 को शासन को सौंप दी थी। पूर्ववर्ती सरकारों ने जांच रिपोर्ट सामने नहीं आने दी थी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में 12 मई को हुई कैबिनेट बैठक में मुरादाबाद हिंसा की रिपोर्ट को 40 वर्ष बाद विधानमंडल में रखने का बड़ा फैसला किया गया था। अब मानसून सत्र में यह जांच रिपोर्ट विधानमंडल के पटल पर रखी गई। हिंसा में 84 बेकसूर लोगों की जानें गई थीं और 112 व्यक्ति घायल हुए थे।

हिंसा भड़काने में मुस्लिम लीग के नेता डा.शमीम अहमद खां, डा.हामिद हुसैन उर्फ डा.अज्जी व उनके कुछ खास समर्थकों की मुख्य भूमिका थी। रिपोर्ट के अनुसार ईदगाह में गड़बड़ी के षड्यंत्र को बढ़ावा देने के लिए 12 अगस्त, 1980 को पहली एफआइआर थाना मुगलपुरा में हामिद हुसैन की ओर से तथा उसी रात दूसरा मुकदमा थाना कटघर में काजी फजुलुर्रहमान की ओर से दर्ज कराया गया था।

गाली-गलौज व जान से मारने की धमकी देने की धाराओं में दर्ज इन मुकदमों में आरोप लगाए गए थे कि वाल्मीकि समाज के लोगों ने उनसे निपटने की धमकी दी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि .... 'तुरंत जांच किए जाने में दोनों रिपोर्ट झूठी पाई गईं, जिससे यह पता चलता है कि अगले दिन ईदगाह में जो घटना होने वाली थी उसकी जिम्मेदारी वाल्मीकियों पर डालने की पेशबंदी करने के लिए यह रिपोर्ट लिखवाई गई थीं।' .... कहा गया है कि डा.शमीम व उनके साथियों ने ईदगाह पर उस समय गड़बड़ी पैदा करने के लिए अपनी रणनीति बनाई जब लगभग 70 हजार पवित्र नमाजियों की धार्मिक सभा होने वाली थी।

इसका उद्देश्य प्रशासन को बदनाम करके घटना का उत्तरदायित्व वाल्मीकि समाज के लोगों व पंजाबी हिंदुओं पर डालकर मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारना था। मुरादाबाद में उन्हें कोई ऐसी उत्तेजक बात करनी थी, जिससे संपूर्ण धार्मिक सभा भड़क उठे। नेताओं के लिए कोई भी ऐसा कारण पैदा कर देना आवश्यक था, जिससे उन्हें सभी मुसलमानों की सहानुभूति मिलती।

इस प्रयोजन के लिए सुअर के घुस आने की बात गढ़ी गई जिसे मुसलमान नापाक जानवर मानते हैं और जिसे देखने से ही नमाज अपवित्र हो जाती है। यदि कोई और कहानी गढ़ी गई होती तो उससे मुसलमानों का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ होता'।

कहा गया कि 'वास्तव में यह बात सिद्ध नहीं हो सकी है कि ईदगाह के पास कहीं भी सुअर दिखाई पड़ा था। इस सांप्रदायिक हत्याकांड के पीछे मुस्लिम लीग और खाकसारों की योजना थी, जिसका नेतृत्व डा.शमीम अहमद खां व डा.हामिद हुसैन उर्फ डा.अज्जी कर रहे थे और यह सब पूर्व नियोजित था।'