मां का बुना स्वेटर कभी छोटा नहीं पड़ता...Actor अनुपम खेर ने शेयर की लखनऊ के कवि की ये कविता, आप भी पढ़ें
लखनऊ के हास्य व्यंग्य कवि हैं पंकज प्रसून। सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही इनकी कविताएं। अभिनेता अनुपम खेर ने इसे पूरे भावों के साथ अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया। सोशल मीडिया अकाउंट पर भी किया शेयर।
एहसासों का ऊन लेकर ममता और धैर्य की दो सलाइयों से तुम जीवन को बुन देती थीतुम स्वस्थ रहो या बीमारघर में रहो या बाजारये सलाइयां थमने का नाम ही नहीं लेती थीं.मां ने उस दिन के बाद जहाज से सफर ही नहीं कियाजिस दिन उनकी सलाइयां पर्स से निकाल ली गईं थींवह जहाज पर भी स्वेटर बुनना चाहती थींसलाइयों को ऊंचाइयों का अनुशासन नहीं भातामैं हर विशेष मौके पर इस स्वेटर को पहनता हूं जिसके कुछ फंदे उधड़ गये हैं एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में सूटबूट टाई वालेमुझे देखकर हंस रहे थे,मैं उन पर हंस रहा था शायद उनकी माओं ने उनके लिए स्वेटर नहीं बुनी होगीमां की स्वेटर ने सिखाया है बने हुए और बुने हुए में बड़ा अंतर होता हैबना हुआ सलीके से बनता तो हैलेकिन उधड़ता बेतरतीब है बुना हुआ उधड़ता भी सलीके से है मां की स्वेटर जब बुन जाती थीवो मुझे पहना कर इठलाती थीमां आज भी तुम ठीक वैसे ही इठलाती होगी तुमने सर ऊंचा करना सिखाया हैशायद इसीलिए स्वेटर में कॉलर नहीं लगाया है एक राज की बात बताऊंजब मैं यह स्वेटर पहन कर बेटी को गले लगाता हूंतुमको आत्मा के बेहद करीब पाता हूंलड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं कविताइससे पहले अनुपम खेर टाइम्स स्क्वायर न्यूयॉर्क से पंकज की लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं...कविता पढ़ चुके हैं...माँ के हाथ का बुना स्वेटर: मेरे बचपन की यादों से जुड़ी एक बहुत ख़ूबसूरत याद है घंटों माँ को स्वेटर बुनते देखना!! तो जब लखनऊ के लेखक @prasun_pankaj ने ये कविता भेजी तो मेरी माँ की बहुत सारी यादें ताज़ा हो गई है। इसे देखें, सुनें और शेयर करें!! ख़ासकर अपनी प्यारी माँ के साथ।🙏😍🌺 pic.twitter.com/90A2LFwxmo
— Anupam Kher (@AnupamPKher) November 24, 2020
मैंने देखा एक लड़की महिला सीट पर बैठे पुरुष को उठाने के लिए लड़ रही थी तो दूसरी लड़की महिला - कतार में खड़े पुरुष कोहटाने के लिए लड़ रही थीमैंने दिमाग दौड़ायातो हर ओर लड़की को लड़ते हुए पाया जब लड़की घर से निकलती है तो उसे लड़ना पड़ता है गलियों से राहों सेसैकड़ों घूरती निगाहों सेलड़ना होता है तमाम अश्लील फब्तियों सेएकतरफा मोहब्बत से ऑटो में सट कर बैठे किसी बुजुर्ग की फितरत सेउसे लड़ना होता हैविडंबना वाले सच से कितनों के बैड टच से वह अपने आप से भी लड़ती हैजॉब की अनुमति न देने वाले बाप से भी लड़ती हैउसे हमेशा यह दर्द सताता हैचार बड़े भाइयों के बजाय पहले मेरा डोला क्यों उठ जाता हैवह स्वाभिमान के बीज बोने के लिए लड़ती है खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए लड़ती हैवह शराबी पति से रोते हुए पिटती हैफिर भी उसे पैरों पर खड़ा करने के लिए लड़ती है वह नहीं लड़ती महज शोर मचाने के लिए वह लड़ती है चार पैसे बचाने के लिए वह अपने अधिकार के लिए लड़ती हैसुखी परिवार के लिए लड़ती है वह सांपों से चील बनके लड़ती हैअदालत में वकील बन के लड़ती हैवह दिल में दया, ममता, प्यार लेकर लड़ती है तो कभी हाथ में तलवार लेकर लड़ती है वह अमृता बन के पेन से लड़ती हैतो अवनी बनके फाइटर प्लेन से लड़ती हैकभी कील बनके लड़ती है कभी किला बनके लड़ती हैकभी शर्मीली तो कभी ईरोम शर्मिला बनके लड़ती हैकभी नफरत में कभी अभाव में लड़ती है तो कभी इंदिरा बन चुनाव में लड़ती हैप्यार में राधा दीवानी की तरह लड़ती हैतो जंग में झांसी की रानी की तरह लड़ती है कभी शाहबानो बन पूरे समाज से लड़ती हैतो कभी सावित्री बनके यमराज से लड़ती है कभी रजिया कभी अपाला बनके लड़ती हैकभी हजरत महल कभी मलाला बनके लड़ती हैकभी वाम तो कभी आवाम बनके लड़ती हैऔर जरूरत पड़े तो मैरीकॉम बनके लड़ती हैकभी दुर्गावती कभी दामिनी बनकर लड़ती हैअस्मिता पर आंच आये तो पन्नाधाय और पद्मिनी बनके लड़ती हैउसने लड़ने की यह शक्ति यूं ही नहीं पाई हैवह नौ महीने पेट के अंदर लड़ के आई है सच में लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं...।।“लड़कियाँ बड़ी लड़ाका होती है...” Here is my tribute to every woman, specially in our side of the world, in the form of a poem (author unknown). I recorded this poem in the crowded #TimesSquare in NY to scream out the poets words & my emotions. Jai Ho!🙏 #InternationalWomensDay pic.twitter.com/mGzLTL6U9J
— Anupam Kher (@AnupamPKher) March 8, 2020