'OTT ने सिस्टम को धक्का मारा…', फिल्में न चलने पर मनोज बाजपेयी ने खोले दिल के राज, Irrfan Khan को लेकर कही ये बात
फिल्म साइलेंस-2 मनोज की 99वीं फिल्म है। भैयाजी आने के बाद उनकी फिल्मों का शतक पूरा हो जाएगा। मनोज बाजपेयी अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए लखनऊ आए। इस दौरान वह दैनिक जागरण के कार्यालय में पहुंचे। कार्यालय में बातचीत के दौरान उन्होंने अपने जीवन के कुछ मजेदार पल भी साझा किए। दैनिक जागरण के ओटीटी सिस्टम को लेकर भी अपना एक्सपीरियंस भी बताया...
महेन्द्र पाण्डेय, लखनऊ। Actor Manoj Bajpayee: दक्षिण भारत की फिल्मों में अधिक प्रयोग किए जाते हैं। वहां किरदार, परिधान, रिलेशन, सबमें प्रयोग दिखता है, लेकिन हम यह नहीं कर पाते। अगर फिल्म इंडस्ट्री डीसेंट्रलाइज (विकेंद्रित) हो तो जिसको जहां काम मिलेगा, वह वहीं करेगा। फिर वह मुंबई क्यों जाएगा।
अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने सोमवार को विकेंद्रित फिल्म इंडस्ट्री पर खुलकर बात की। स्पष्ट कहा कि फिल्म इंडस्ट्री जितना डीसेंट्रलाइज हो, उतना ही अच्छा होगा।
अपनी फिल्म साइलेंस-2 के प्रमोशन के लिए दैनिक जागरण कार्यालय आए मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने फिल्म निर्माता, निर्देशक, रंगकर्मियों, शिक्षक व विद्यार्थियों से संवाद किया। उनसे प्रश्न किया गया कि लखनऊ शूटिंग का हब बन रहा है। यहां फिल्म स्टूडियो बन रहा है।
नोएडा में फिल्म सिटी बन रही है। इसे किस रूप में देखते हैं? मनोज बोले- आने वाले वर्षों में इसका बड़ा फर्क दिखेगा। लखनऊ में शूटिंग बहुत हो रही हैं। मैंने भी कई फिल्मों की शूटिंग यहां की हैं। कलाकारों के लिए यहां अवसर बढ़ रहे हैं।
हर कैरेक्टर के लिए खुद को करते हैं तैयार
आपने कई किरदार निभाए हैं। हर कैरेक्टर के लिए स्वयं को किस तरह तैयार करते हैं? मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने कहा- मैं हूं या इरफान रहे हों। केके मेनन हों या अन्य वे अभिनेता जिन्होंने रंगमंच पर अभिनय किया है, उन्हें किरदार में ढलने में दिक्कत नहीं होती। अब यथार्थवाद शुरू हो गया है।अभिनय भी नेचुरल किया जा रहा है।नवयुग पीजी कालेज की शिक्षिका डा. अपूर्वा अवस्थी ने प्रश्न किया कि साहित्य व सिनेमा समाज के दर्पण हैं, पर दोनों को अलग किया गया। अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दोनों को शामिल किया गया है। इस पर क्या राय है? मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने कहा कि देवानंद के समय में साहित्य और सिनेमा जुड़े थे।
बाद में इनका रूट अलग कर दिया गया, लेकिन अब ओटीटी के आने से तय हो गया है कि सिनेमा का कल्याण साहित्य के जुड़ने से ही होगा। इससे पहले वरिष्ठ रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और नाटक 'उलझन' की यात्रा पर प्रश्न किया तो मनोज में पूरा वृत्तांत सुनाया। उन्होंने 'उलझन' को अपने बेहतरीन कार्यों में से एक बताया।
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