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सपा ने राजनीति में खोया जनाधार पाने के लिए कभी 'पंजा' तो कभी 'हाथी' का लिया सहारा, अब 'PDA' बनी आस

पांच वर्ष तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने के बाद अखिलेश ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ समझौता कर 311 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सपा मात्र 47 सीटों पर सिमट कर रह गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने फिर बसपा की बैसाखी का सहारा लिया। 80 में से मात्र 37 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज पांच सीटें ही जीत सकी।

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Updated: Sat, 16 Mar 2024 07:33 PM (IST)
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सपा ने राजनीति में खोया जनाधार पाने के लिए अब 'PDA' का आस

शोभित श्रीवास्तव, लखनऊ। Lok Sabha Election 2024: चार अक्टूबर 1992 में समाजवादी पार्टी (SP) के गठन के चार वर्ष बाद ही पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री बने और राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी पहचान बनकर उभरे। इटावा के छोटे-से गांव सैफई से निकलकर मुलायम ने ऐसी साइकिल चलाई कि पार्टी प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर पहुंची और राष्ट्रीय राजनीति में भी पहचान बनाई।

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 35 सांसदों को जिताने वाली सपा आज मात्र तीन पर अटक गई है और उसे राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने के लिए जूझना पड़ रहा है। खोया जनाधार पाने के लिए उसे कभी 'हाथी' तो कभी 'पंजे' का सहारा लेना पड़ रहा है।

1993 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने मुलायम

अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने से दो महीने पहले बनी सपा अन्य पिछड़ा वर्ग व मुस्लिम मतदाताओं के सहारे प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गई। पार्टी गठन के करीब एक वर्ष बाद चार दिसंबर 1993 को मुलायम दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 29 अगस्त 2003 को तीसरी बार वे मुख्यमंत्री बने।

इससे पहले केंद्रीय राजनीति में 1996 में उनका प्रवेश हुआ। एचडी देवगौड़ा की सरकार में वे देश के रक्षामंत्री बने। सैनिकों के शव को युद्ध क्षेत्र से वापस लाने की प्रथा उन्होंने ही शुरू की थी। वर्ष 2012 के विधान सभा चुनाव में भी मुलायम सिंह की ही बदौलत 224 सीटों पर सफलता प्राप्त कर समाजवादी सरकार बनी। मुलायम ने इस बार खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाय बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया।

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने लिया था बसपा का सहारा 

पांच वर्ष तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने के बाद अखिलेश ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ समझौता कर 311 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सपा मात्र 47 सीटों पर सिमट कर रह गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने फिर बसपा की बैसाखी का सहारा लिया। 80 में से मात्र 37 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज पांच सीटें ही जीत सकी। इसमें से दो सीटें सपा उपचुनाव में गंवा भी चुकी है।

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने छोटे दलों का साथ लिया और 347 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर 111 सीटों पर सफलता प्राप्त की थी। इस चुनाव में उसे अब तक का सबसे अधिक 32.06 प्रतिशत वोट मिला किंतु भाजपा के 41.29 प्रतिशत से करीब नौ प्रतिशत कम रह गई।  

अब सपा को छोड़कर रालोद व सुभासपा भी भाजपा के पाले में जा चुके हैं। वहीं, सपा इस लोकसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस का सहारा ले रही है। सपा ने कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं। 'एमवाई' (मुस्लिम, यादव) समीकरण के बाद अब सपा को 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ से आस है।

बसपा के कमजोर होने से सपा की उम्मीदों के लगे पंख

दलितों की राजनीति करने वाली बसपा के कमजोर होने से सपा को उम्मीदों के पंख लगे हैं। यही कारण है कि सपा अब दलितों को भी अपने साथ जोड़ने में लगी है। दलितों को साधने के लिए ही सपा ने हाल में राज्यसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री व दलित नेता रामजीलाल सुमन को उच्च सदन भेजा है।

कांग्रेस के समर्थन से ही सपा मध्य प्रदेश के खजुराहो में चुनाव लड़कर प्रदेश के बाहर भी अपनी स्थिति मजबूत करना चाह रही है। पार्टी कितना सफल होगी यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि इस बार प्रदेश में भाजपा को सपा ही हराएगी।

पिछले लोकसभा चुनावों में सपा का प्रदर्शन

वर्ष लड़े जीते मत प्रतिशत
2019 37 05 18.11
2014 78 05 22.35
2009 75 23 23.25
2004 68 35 26.74
1999 84 26 24.06
1998 81 20 28.70
1996 64 16 20.84

विधानसभा चुनावों में सपा का प्रदर्शन

वर्ष लड़े जीते मत प्रतिशत
2022 347 111 32.06
2017 311 47 21.82
2012 401 224 29.13
2007 393 97 25.43
2002 390 143 25.37
1996 281 110 21.80
1993 256 109 17.94

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