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एसिड अटैक के बाद हर रोज सिसकती हैं इन बेटियों की जिंदगियां, आईना देखने का भी नहीं बचता साहस

बेटों को बताना होगा जीवन में कई जगह आपके प्रस्ताव ठुकरा जाएंगे। कहीं नौकरी के कहीं मैत्री के कहीं प्रणय के। ऐसी अमानवीय प्रतिक्रिया देने से पहले सौ बार सोचें। शीरोज की एजुकेशन हेड माधवी मिश्रा बेटों के इस प्रशिक्षण माड्यूल से सहमत हैं। कहती हैं-हम चाहते हैं कि एसिड पीड़िताओं को लेकर हम सभी कालेजों में जाएं। एक-एक कर इन पीड़िताओं को मिलवाएं ताकि वे इनका दर्द समझ सकें।

By Jagran News Edited By: Mohammed Ammar Updated: Fri, 05 Jul 2024 05:39 PM (IST)
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इस बात पर दिया जोर- एसिड चेहरे पर फेंकने वालों को मिले कड़ी सजा

पवन तिवारी, लखनऊ। छपाक्क...। और पूरा जीवन विकृत। मृत्यु से भी अधिक दुसह दुख। यह प्रतिशोध क्यों! प्रस्ताव ठुकराए जाने की यह कैसी विद्रूप प्रतिक्रिया। चमड़ी की परत बेधते हुए अस्थि-मज्जा तक झुलसा देने वाले इस द्रव्य को शरीर पर झेलने वालों की पीड़ा कभी महसूस की है आपने। आईना देखने का साहस नहीं जुटा पातीं वे।

लखनऊ में चौक चौकी के पास तेजाब के हमले के शिकार भाई-बहन ट्रामा सेंटर में इस वेदना से दो-चार हो रहे हैं। शुक्र है, उस बेटी के चेहरे पर तेजाब की हल्की छीटें पड़ीं हैं। उनका उपचार चल रहा। आशा है, वे जल्दी ही जीवन की मुख्यधारा में लौट सकेंगे, लेकिन सभी पीड़िताओं का भाग्य इतना साथ नहीं देता। उनके अपने साथ छोड़ देते हैं। तिल-तिल मरतीं हैं वे। इंसाफ के लिए एड़ियां रगड़तीं हैं।

रेस्तरां में दिखेगी इनकी एक अलग दुनिया 

कभी लखनऊ के शीरोज हैंगआउट जाएं। गोमतीनगर में अंबेडकर पार्क के ठीक सामने। तेजाब हमले की शिकार महिलाओं, पुरुषों की लड़ाई लड़ने वाला छांव फाउंडेशन इस रेस्तरां को चलाता है।

अपना दर्द ढंककर कितने करीने से व्यंजन परोसतीं हैं वे। शीरोज में आगंतुकों का स्वागत करती मिलेंगी रूपाली। गाजीपुर की हैं। 2015 में एसिड ने उनके मुखमंडल की आभा भले छीन ली, पर आत्मविश्वास और जिजीविषा के तत्व से उनका मुखड़ा दमकता है।

बाजार में क्यों आसानी से बिकता है एसिड?

कहती हैं, ‘जब तक जान है, लड़ूंगी।’ बुधवार को चौक की घटना के पीड़ित भाई-बहनों से मिलने भी अपनी टीम के साथ गईं। दर्द उभर आता है, ‘बेटियों पर तब तक हमले होते रहेंगे, जब तक बाजार में आसानी से एसिड मिलता रहेगा।’ दवा लेने जाओ तो केमिस्ट पर्चा मांगते हैं। और एसिड...आसानी से खरीद लो। हंसते-खिलखिलाते चहरे को तड़पने के लिए छोड़ दो। कहती हैं, ‘मीडिया भी इस घटनाओं का कवरेज तब तक न छोड़े, जब तक दोषियों को सजा और पीड़ित को न्याय न मिल जाए’।

बेटों को भी देनी चाहिए बेहतर नसीहत...

रूपाली की बात से सहमति है। खुले बाजार में तेजाब मिलना बंद हो। पर, हम अभिभावकों को एक काम और करना है। बेटों को सिखाना होगा। ठीक उसी तरह जैसे बेटियों को लोकलाज सिखाते हैं।

नेशनल पीजी कालेज में बेटियों की सुरक्षा पर एक सेमिनार था। आइपीएस अधिकारी अपर्णा रजत कौशिक मुख्य वक्ता थीं। देखा कि छात्राओं के बीच कुछ छात्र भी हैं। पूछा, ब्वायज भी हैं? छात्र उठकर जाने लगे। उन्होंने रोक दिया। कहा-असली प्रशिक्षण तो आपको ही देना है।

क्या सही क्या गलत बेटों को भी बताएं

ऐसे हमले इंपल्सिव (अति आवेश भरे) व्यवहार की वजह से होते हैं। बच्चों को शुरू से ही सिखाया जाए कि क्या सही है, क्या गलत। पहले तो संयुक्त परिवार में दादा-दादी, नाना-नानी से बच्चे सदाचार और नैतिकता सीख लेते थे। अब एकल परिवार हैं। बच्चे की हर जिद पूरी होती है।

बड़ा होकर वह ऐसी दुनिया में पहुंचता है, जहां उसको इन्कार सुनना पड़ता है। ना शब्द उसे नागवार लगता है। इतना नागवार कि प्रतिक्रिया में कुछ भी कर गुजरता है। बच्चों के प्रशिक्षण के साथ नए कानून में इस पर इतनी कड़ी सजा का प्रविधान हो कि कोई तेजाब तो क्या पानी तक छिड़कने की हिम्मत न कर सके।

डा. देवाशीष शुक्ल, वरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ व चिकित्सा अधीक्षक, कल्याण सिंह कैंसर संस्थान

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