Ayodhya Structure Demolition Case: आडवाणी समेत 32 आरोपितों को बरी करने के खिलाफ याचिका हाई कोर्ट में खारिज
Ayodhya Disputed Structure Demolition Case अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सहित सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ दाखिल याचिता को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
By Umesh TiwariEdited By: Updated: Wed, 09 Nov 2022 04:37 PM (IST)
लखनऊ, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले (Ayodhya Disputed Structure Demolition Case) में पूर्व उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी सहित सभी 32 आरोपितों को बरी करने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। पीठ ने कहा कि अपीलार्थियों को अपील दाखिल करने का हक नहीं क्योंकि वे पीड़ित की श्रेणी में नहीं आते। यह फैसला जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने अयोध्या निवासी दो अपीलार्थियों हाजी मुहम्मद अहमद एवं सैयद अखलाख अहमद की ओर से दाखिल अपील को खारिज करते हुए सुनाया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआइ की विशेष अदालत द्वारा 30 सितंबर, 2020 को पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, ब्रज भूषण शरण सिंह सहित सभी 32 अभियुक्तों को बरी करने के फैसले के खिलाफ दाखिल आपराधिक अपील को प्रारंभिक स्तर पर ही सुनवाई के लिए अयोग्य मानते हुए बुधवार को खारिज कर दिया।
बता दें कि छह दिसंबर, 1992 को हजारों कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया था जिसके बाद कई प्राथमिकियां दर्ज की गईं थीं। बाद में सीबीआइ ने इस घटना की विवेचना पूरी करके आरोपपत्र दाखिल किये। लंबी कानूनी प्रकिया के बाद विचारण के लिए तलब किये गए एलके आडवाणी, कल्याण सिंह सहित सभी 32 अभियुक्तों को अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया। इस फैसले के खिलाफ अपीलार्थियों ने 2021 में पहले रिवीजन याचिका दाखिल की परंतु बाद में उसे अपील में परिवर्तित करा लिया। जब अपील की ग्राह्यता के बिंदु पर सुनवाई हुई तो इसका विरोध किया गया।
सीबीआइ की ओर से शिव पी. शुक्ला, राज्य सरकार की ओर से अरुणेंद्र एवं एक अभियुक्त चंपत राय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने पेश होकर अपील की पोषणीयता के बिंदु पर अपना पक्ष रखा। कहा गया कि जिन अपीलार्थियों ने स्वयं दो प्राथमिकियां दर्ज कीं थीं, जब उनमें से एक केस में अंतिम आख्या लगायी गई और दूसरे में साक्ष्य के अभाव में अभियुक्तों को बरी कर दिया गया तो उन्होंने उन आदेशों को चुनौती नहीं दी।
ऐसे में इस केस में जिसमें वे केवल गवाह थे और किसी प्रकार से पीड़ित नहीं तो फिर उनकी ओर से सीबीआइ कोर्ट के 30 सितंबर 2020 के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है। सुनवाई के बाद पीठ ने वर्ष 2016 में मनेाज कुमार सिंह के मामले में सुनाये गए पूर्ण पीठ के फैसले को नजीर मानते हुए कहा कि अपीलार्थी किसी प्रकार अपने को पीड़ित पक्ष नहीं साबित कर सके अतः उनकी ओर से दाखिल अपील सुनवाई के लिए ग्राह्य नहीं है।
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