Allahabad High Court: भ्रष्टाचार का केस खारिज कराने कोर्ट पहुंचे प्रो विनय पाठक, फैसला 15 को
Vinay Pathak Corruption Case कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। विनय पाठक की याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 10 Nov 2022 08:47 PM (IST)
लखनऊ, विधि संवाददाता। Vinay Pathak Corruption Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई पूरी करके गुरुवार को फैसला सुरक्षित कर लिया। पीठ ने कहा कि वह अपना फैसला 15 नवंबर को सुनाएगी।
यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस विवेक कुमार सिंह की पीठ ने पाठक की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया। पाठक ने इंदिरानगर थाने पर अपने खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी को चुनौती दी है। प्राथमिकी दर्ज कराकर वादी डेविड मारियो डेनिस ने कहा है कि पाठक ने उनके बिल पास करने के एवज में उनसे एक करोड़ इकतालीस लाख रुपये ऐंठे हैं।
पाठक के अधिवक्ता का तर्क
पाठक की ओर से पेश अधिवक्ता एल पी मिश्रा का तर्क था कि भ्रष्टाचार के केस में पाठक को बिना अभियोजन स्वीकृति के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। वहीं राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जे एन माथुर एवं वादी के वरिष्ठ अधिवक्ता आइ बी सिंह ने कहा कि प्राथमिकी को पढ़ने से प्रथमदृष्टया संज्ञेय अपराध का बनना स्पष्ट होता है, लिहाजा प्राथमिकी को खारिज नहीं किया जा सकता। इन परिस्थितियों में पाठक की गिरफ्तारी पर भी रोक नहीं लगाई जा सकती है।कोर्ट ने दिया बहस का समय
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। इससे पहले भी पीठ ने एक नवंबर को सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित किया था किंतु अगले दिन फैसला आने से पहले ही पाठक के अधिवक्ता के अनुरोध पर उन्हें और बहस करने का समय दे दिया था।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।इन विवादों में रहे विनय पाठक
- 11 और 14 मई को हुए पेपर लीक मामले के बाद नोडल केंद्रों में आरएफआइडी लाक लगाए गए। इन लाक को लगाने के लिए 25 लाख रुपये का भुगतान बिना नियम प्रक्रिया के हुआ, जिसके चलते आइइटी के पूर्व निदेशक प्रो. वीके सारस्वत से विवाद भी हुआ था।
- गेस्ट फैकल्टी में आरक्षण का पालन नहीं किया गया।
- स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति का विज्ञापन निकाला। प्रोफेसर का पद ईडब्ल्यूएस श्रेणी में दिया गया।विज्ञापन में करोड़ो रुपये खर्च किए गए। इसकी शिकायत भी मुख्यमंत्री के शिकायत पोर्टल भी की गई है।
- आवासीय इकाई में प्रवेश के विज्ञापन के लिए वित्त समिति से पांच लाख रुपये इंटरनेट मीडिया पर प्रचार के लिए स्वीकृत हुए, लेकिन ढाई करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किए गए।
- अलीगढ़ के राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेजों को समय निकलने के बाद भी मान्यता प्रदान की गई।इसकी शिकायत शासन से की गई। शासन ने जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई।समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिख कर दिया था कि शासन द्वारा निर्धारित अंतिम तिथि के बाद भी फाइलों पर हस्ताक्षर किए और मान्यता दी गई।
- आंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध जिन कालेजों के पास अस्थायी संबद्धता थी, उनके शिक्षकों का अनुमोदन दो लाख रुपये में किया गया।इसकी शिकायत भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री को की गई थी।
- डीन एकेडमिक, डीन एल्युमिनाई व डीन फैकल्टी पदों का असंवैधानिक रूप से गठन किया गया।
- पांच निदेशकों को असंवैधानिक रूप से पद से हटा दिया गया।
- सेंटर निर्धारण की शिकायतें भी शासन को पहुंची थी।
- दो हजार अभ्यर्थियों के लिए कराई गई पीएचडी प्रवेश परीक्षा भी अजय मिश्रा की एजेंसी से कराई गई, जिसके लिए 25 लाख रुपये का भुगतान हुआ।