जबरन मतांतरण के मामले में विशेष जज पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी, जानिए क्या है पूरा मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जबरन मतांतरण के एक केस के विचारण के दौरान विशेष जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी के खिलाफ सख्त टिप्पणी की है। विशेष जज के मुस्लिम अधिवक्ताओं के शुक्रवार को केस की पैरवी करने से मना कर नमाज के लिए जाने पर कुछ अभियुक्तों के लिए एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त करने पर कोर्ट ने कहा कि यह धार्मिक आधार पर भेदभाव दिखाता है।
विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जबरन मतांतरण के एक केस के विचारण के दौरान विशेष जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी के खिलाफ सख्त टिप्पणी की है। विशेष जज के मुस्लिम अधिवक्ताओं के शुक्रवार को केस की पैरवी करने से मना कर नमाज के लिए जाने पर कुछ अभियुक्तों के लिए एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त करने पर कोर्ट ने कहा कि यह धार्मिक आधार पर भेदभाव दिखाता है।
मतांतरण केस के एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस ने हाई कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर विशेष जज के 19 व 20 जनवरी 2024 के आदेशों को चुनौती दी। याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने पांच मार्च को याची के संदर्भ में उक्त दोनों आदेशों पर स्थगन दे दिया था।
जिसके बाद विशेष जज ने हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में याची के संबध में एमिकस क्यूरी देने वाले अपने आदेश पर 11 मार्च को रोक लगा दी, किन्तु अन्य अभियुक्तों को एमिकस क्यूरी देने की बावत अपने आदेश को यथावत रखा। याचिका पर जब 15 अप्रैल को हाई कोर्ट में पुन: सुनवाई हुई तो न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने विशेष जज पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि उन्होंने हाई कोर्ट के पांच मार्च के आदेश को ठीक से नहीं समझा। न्यायमूर्ति अहमद ने कहा कि विशेष जज ने 11 मार्च को इलेक्ट्रानिक सुबूतों को देने के बावत कोई आदेश क्यों नहीं पारित किया।
अनुच्छेद 15 के उल्लंघन पर का मामला
न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने कहा कि विशेष जज त्रिपाठी ने याची सहित कुछ अन्य अभियुक्तों को एमीकस क्यूरी देने का जो आदेश दिया है वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है और यह धार्मिक विभेद की श्रेणी में आता है। ऐसा आदेश कुछ अभियुक्तों को अपनी पसंद के धर्म के अधिवक्ता से वंचित कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि विषेश जज का आदेश कदाचरण की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने उन्हें 15 अप्रैल को तलब किया तो आदेश के अनुपालन में विशेष जज त्रिपाठी हाई कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी। कोर्ट ने उनसे 18 अप्रैल तक व्यक्तिगत हलफनामा भी मांगा है।