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Lucknow University: पूर्व छात्रों ने साझा की यादें, बोले-गुरुजी के पढ़ाने से कैंटीन के चाय-समोसे तक सब कुछ याद

Lucknow University 102 Foundation Day लखनऊ विश्वविद्यालय के 102 स्थापना दिवस समारोह पर पूर्व विद्यार्थियों ने अपनी पुरानी यादें साझा कीं। जागरण से खास बातचीत में सबने कहा कि गुरुजी के पढ़ाने का तरीका से लेकर कैंटीन के चाय-समोसे तक सब कुछ आज भी याद है।

By Jagran NewsEdited By: Vrinda SrivastavaUpdated: Fri, 25 Nov 2022 03:29 PM (IST)
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लखनऊ विश्वविद्यालय के 102 स्थापना दिवस समारोह पर पूर्व विद्यार्थियों ने अपनी पुरानी यादें साझा कीं।

लखनऊ, [अखिल सक्सेना]। कोई प्रसिद्ध टीवी कलाकार है तो कोई कुलपति या फिर निदेशक। लेकिन 35-40 साल पहले लखनऊ विश्वविद्यालय में बिताए अपने यादगार पल उन्हें आज भी याद हैं। शिक्षक के पढ़ाने का तरीके से लेकर कैंटीन के समोसे तक। हर यादें उन्हें एक पल के लिए भी नहीं भूलतीं। जब भी मौका मिला तो विश्वविद्यालय पहुंच ही जाता हूं। समाज में प्रतिष्ठित स्थानों पर पहुंचे कई पूर्व छात्रों ने लखनऊ विश्वविद्यालय के 102 साल पूरे होने पर दैनिक जागरण से बातचीत में अपनी यादें साझा कीं।

लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ रही चौथी पीढ़ी : सेंटर आफ बायोमेडिकल रिसर्च लखनऊ में बतौर निदेशक तैनात डा. आलोक धवन की चौथी पीढ़ी लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ रही है। 1986 में लवि से एमएससी केमिस्ट्री और बायो केमिस्ट्री से पीएचडी करने वाले डा. धवन बताते हैं कि सबसे पहले उनके बाबा, फिर पिता, वह स्वयं और अब उनका बेटा यहां पढ़ रहा है। शिक्षक पढ़ाने के साथ यह देखते थे कि छात्र को कितना समझ में आया। डा. एमपी खरे आते ही कहते थे कि किताब बंद करिए। अगर रिएक्शन न समझा पाया तो बेकार। छात्र अपने नोट्स खुद बनाते थे।

खूब होती थी राजनीति : नागिन, इश्क सुभान अल्लाह, जय हनुमान जैसे सौ से ज्यादा सीरियल में अपनी दमदार भूमिका निभाने वाले कलाकार मनीष खन्ना भी लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रह चुके हैं। वह बताते हैं कि बनारस से आकर यहां 1986 में बीकाम किया। उस समय पहली बार स्नातक तीन साल का शुरू हुआ था। बीकाम में 68 फीसद अंक मिले थे। महमूदाबाद हास्टल में रहा। माहौल बहुत अच्छा था। पढ़ाई के साथ राजनीति भी खूब होती थी। हमारे शिक्षक पढ़ाई में बहुत सहयोग करते थे।

नहीं भूले कैंटीन के समोसे : एरा यूनिवर्सिटी की कुलपति डा. फरजाना मेंहदी ने 1985 में लखनऊ विश्वविद्यालय  से एमएससी केमिस्ट्री में दाखिला लिया था। वह बताती हैं कि 1987 में एमएससी की पढ़ाई पूरी की। शिक्षक और विद्यार्थी दोनों का सहयोग रहता था। डा. एमएम हुसैन हमारे मेंटॉर रहे। पढ़ाई के बाद कैंटीन जाना, वहां के समोसे कभी नहीं भूलते। अपने बैच के 50 लोगों का ग्रुप आज भी बना है। अच्छा लग रहा है कि 102 साल पुराने विश्वविद्यालय के हम विद्यार्थी रहे।

बहुत अच्छी होती थी पढ़ाई : बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की निदेशक डा. वंदना प्रसाद लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा रही हैं। वह बताती हैं कि 1985 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एमएससी बाटनी किया। शिक्षकों की पढ़ाई आज भी याद है। टीचिंग बहुत अच्छी थी। शिक्षक डा. एससी श्रीवास्तव, डा. एचएन वर्मा, डा. बीबी शर्मा हमेशा याद आते हैं। वह अपने विषय में इतना एक्सपर्ट थे कि बिना किताबें ही पढ़ाते थे। मुझे जब भी मौका मिलता है तो अपने बाटनी विभाग में जरूर जाती हूं।

लगती थी ट्यूटोरियल क्लासेज : 82 वर्षीय प्रो. एनके मेहरोत्रा ने लखनऊ विश्वविद्यालय में अपने 51 वर्ष दिए। 1962 में एमएससी फिजिक्स की डिग्री लेने वाले प्रो. मेहरोत्रा ने पूरे विज्ञान संकाय में टाप किया था। उसी समय यहां पर उन्हें बतौर शिक्षक नौकरी मिल गई। बताते हैं कि डा. एमसी सक्सेना अपने विषय के बहुत बड़े विशेषज्ञ थे। जिन छात्रों को क्लास में नहीं समझ में आया तो उनके लिए अलग से ट्यूटोरियल क्लास लगती थी। शिक्षक हर छात्र की समस्या होती थी।

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