जब अटल बिहारी वाजपेयी ने दोस्त से लगायी मलाई खिलाने की शर्त
एक बार रामकृष्ण और गिरीश चंद्र मिश्र के साथ अटल बसंत सिनेमा हॉल में फिल्म शोखियां देखने गए। उस समय रामकृष्ण स्वदेश में फिल्म समीक्षा और फिल्म जगत के समाचार लिखा करते थे।
By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Fri, 17 Aug 2018 12:27 PM (IST)
लखनऊ [राजीव दीक्षित]। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से दशकों पुराना नाता रहा है। फिल्म देखने के शौकीन रहे अटल ने लखनऊ में संपादक की भूमिका भी निभायी। फिल्मों से उनके लगाव के कई संस्मरण लखनऊ से जुड़े हैं।
वरिष्ठ फिल्म पत्रकार (अब स्मृतिशेष) रामकृष्ण बताते थे कि चालीस के दशक में एक दिन रात 11 बजे उनके घर के दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो देखा सामने अटल बिहारी वाजपेयी और उनके मित्र गिरीश चंद्र मिश्र सामने खड़े थे। अटल तब लखनऊ में स्वदेश के संपादक थे और वह अमीनाबाद की मारवाड़ी गली में कलंत्री मंदिर में रहते थे। आने की वजह पूछने पर पता चला कि दोनों दोस्तों में इस बात को लेकर शर्त लगी थी कि फिल्म अभिनेता अजीत कहां के रहने वाले हैं। अजीत तब अटल के पसंदीदा अभिनेता हुआ करते थे। एक का कहना था कि वह शाहजहांपुर के रहने वाले हैं और दूसरे का मानना था कि वह हैदराबाद के बाशिंदे हैं।दोनों दोस्तों के बीच तय हुआ था कि जो भी शर्त जीतेगा, वह दूसरे को दस रुपये की मलाई खिलाएगा। उस जमाने में एक रुपये में सेर भर मलाई मिलती थी। अटल अमीनाबाद में शंभू हलवाई की दुकान पर अक्सर उसका लुत्फ लेते थे। यह सवाल सुनकर रामकृष्ण असमंजस में पड़ गए। अजीत का पैतृक निवास शाहजहांपुर था लेकिन, उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था। इस हिसाब से दोनों मित्र अपनी-अपनी जगह सही थे। अगले दिन अटल थाली भर मलाई लेकर रामकृष्ण के घर पहुंचे और सबने जमकर उसका लुत्फ लिया।
एक बार रामकृष्ण और गिरीश चंद्र मिश्र के साथ अटल बसंत सिनेमा हॉल में फिल्म 'शोखियां' देखने गए। उस समय रामकृष्ण स्वदेश में फिल्म समीक्षा और फिल्म जगत के समाचार लिखा करते थे। अटल को वह फिल्म कुछ खास प्रभावित नहीं कर सकी लेकिन रामकृष्ण को वह पसंद आयी। अगले दिन उन्होंने फिल्म की समीक्षा लिखकर अटल को दी और अखबार में वह हूबहू छप गई। इस पर रामकृष्ण ने अटल से पूछा कि आपको यह फिल्म पसंद भी नहीं आयी थी, तब फिर अखबार के संपादक के रूप मेंं आपने मेरी लिखी फिल्म समीक्षा में काट-छांट क्यों नहीं की? इस पर अटल ने कहा कि यह अलग बात है कि मुझे यह फिल्म अच्छी नहीं लगी लेकिन, तुम हमारे अखबार के अधिकृत फिल्म समीक्षक हो। मैं तुम्हारे नजरिये पर अपनी राय थोपना नहीं चाहता था। यह तुम्हारे अधिकारों का अतिक्रमण होता।सोते हुए चिंतन और पांडाल में लगा ठहाका
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने जनवरी, 2002 में लखनऊ विश्वविद्यालय में भारतीय विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन किया था। मंच पर उन्हें झपकी आ गई। जब उनके बोलने की बारी आयी तो बगल में बैठे तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने उन्हें हौले से थपकी देकर जगाने की कोशिश की। अटल की नींद नहीं टूटी तो शास्त्री जी ने उन्हें तनिक झकझोरा। अटल की आंख खुली और कुछ ही पलों में वह माइक के सामने थे। कुछ अचकचाये, कुछ मुस्कुराये। फिर कहा कि 'आप लोगों को लगा होगा कि मैं सो रहा था। अरे, सो तो मैं रहा ही था लेकिन सोते हुए भी मैं कुछ चिंतन कर रहा था।' उनका यह कहना था कि पांडाल ठहाकों से गूंज उठा। दरअसल अटल को उसी दिन काठमांडू में सार्क शिखर सम्मेलन में शिरकत करना था।
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