अयोध्या जी साक्षात्कार: मेरी कोख को राम के पूर्वजों की जननी होने का सौभाग्य प्राप्त
उत्तर प्रदेश की सबसे पावन नगरी अयोध्या इस पवित्र भूमि पर खुद भगवान राम ने जन्म लिया। अथर्ववेद में अयोध्या जी को ईश्वर का नगर बताया गया है। इसकी तुलना स्वर्ग से की जाती है। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द अ कार ब्रम्हा य कार विष्णु और ध कार रूद्र का स्वरूप है। आइए जानते हैं अयोध्या जी का आज का साक्षात्कार...
अयोध्या जी सोहर गा रहीं। कलश भी गोठती जा रहीं वे। उनके सम्मुख माता सरयू गीत पुरवाते हुए ढोल पर थाप दे रहीं। तुलसी मइया महाप्रसाद तैयार कर रहीं। मुझ आगत को देख वह कृपापूर्वक मुस्कुरातीं हैं। ...आज बहुत टहल है वत्स..। आशय था-वार्ता न कर सकेंगी। उदारमना हैं, कहतीं हैं जो जिज्ञासा हो, पूछो। देहरी लीपनी है मुझे..अभी। वे काज निबटाती रहीं, मैं अपनी शंकाओं का समाधान पाता रहा। वे कहती हैं-लंबे कालखंड के संघर्ष के बाद यह घड़ी आई है। जादा कुछ न कहब..बस इहै जानि लेंय...आज अपने राम कां महला-दुमहला मा देखि कै जिउ जुड़ाइ गै. (अधिक नहीं कहूंगी, बस इतना कहना चाहूंगी कि आज अपने राम को भव्य प्रासाद में देखकर हृदय शीतल हो गया। ) अयोध्या जी का साक्षात्कार ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं वरिष्ठ उप समाचार संपादक पवन तिवारी
प्रश्न: श्री अयोध्या जी! आपके गौरवशाली इतिहास ग्रंथ पृष्ठ पर एक नया आख्यान लिखा जा रहा, कैसी अनुभूति है?
उत्तर: यशस्वी हों। ... जिस बोझ से धंसी जा रही थी, जिस लज्जा से उबर नहीं पा रही थी, जिस ऋण से उरिण नहीं हो पा रही थी, उससे उन्मोचित होने का अवसर देख मुदित हूं। मेरी धूलि में लोट-पोटकर शिशु राम ने मुझे अर्च्य बनाया। उन्हें वनवास जाते देखा, उन्हें जानकी के वियोग के संत्रास में देखा। कलियुग में लगभग 500 वर्ष तक उन्हें आघात सहते, रामत्व की मर्यादा बनाए रखते देखा। अब अपने लाल..बाल राम को भव्य भवन में विराजित होते देखूंगी, एक मां के लिए इससे बड़ा हर्ष और क्या हो सकता है भला?
प्रश्न: राम ने आपको अर्च्य बनाया? आप तो इक्ष्वाकु वंश की धारिणी रही हैं?
उत्तर: सत्य है। मेरी कोख को राम के पूर्वजों की जननी होने का सौभाग्य प्राप्त है। इससे मैं गौरवशालिनी अवश्य हुई, किंतु यदि मैं अर्च्य हूं तो वह नारायण के अवतार राम की कृपा से।
प्रश्न: अभी आपने लज्जा, बोझ और ऋण का उल्लेख किया। समझा नहीं। कैसा भार था आप पर?
उत्तर: अरे! अत्यंत साधारण सी बात है। इतना भी नहीं समझते? मेरे राम के अर्चावतार की दशा किसी छिपी थी क्या? आतताइयों ने सिर्फ मेरे राम का महल ही नहीं, राम की पहचान, उनके द्वारा सुस्थापित मर्यादा, संस्कृति, सभ्यता को विनष्ट करने का दुस्साहस कर डाला था। कैसी उत्सवी बेला आई है, अब क्षोभ में न लाएं मुझे। अगला प्रश्न पूछें।
प्रश्न: 500 वर्ष के अपने संत्रास, उपेक्षा पर आप आज कुछ कहना नहीं चाहेंगी?
उत्तर: सर्व विदित है। नौ लाख वर्षों में बहुत कुछ बदला। 500 वर्ष पहले तो मुगल आक्रांता ने दुस्साहस किया, इससे पहले भी अत्याचार हुए। आदि गुरु शंकराचार्य ने मेरी सुधि ली और मेरे आंचल में स्थापित विग्रहों की पूजा अर्चना प्रारंभ कराई।
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प्रश्न: कहा जा रहा है कि अयोध्या जी (आप) पहले भी चुप नहीं बैठीं?
उत्तर: हां, मैं कहां चुप बैठी। अपने ही राम की जन्मभूमि की मुक्ति के लिए मैंने 77 संघर्ष सहन किए। अंग्रेजों का राज खत्म हुआ तो मेरे मन में आस जगी कि मैं अपना खोया स्वाभिमान वापस पा सकूंगी, किंतु मैंने गलत सोचा था। ऐसे राजनीतिक षड्यंत्र में उलझाया गया, जिससे निकलने में ही 70-75 वर्ष का कालखंड बीत गया। वह मेरे पराभव का काल था, जब मेरी पहचान एक अव्यवस्थित, अनियोजित, अस्वच्छ नगरी की हो चली थी। विश्व अब मेरा वैभव देख रहा है। हुलास देखें- कैसे जिसे देखो, मेरे दर्शन को भागा चला आ रहा।
प्रश्न: प्राधिकारीगण, सेवक बंधु, भक्तजन सब कार्य संपन्न करेंगे? तो आपकी कैसी व्यस्तता भला?
उत्तर: (खिलखिलाती हैं...भावुक हो जातीं हैं) ...देहरी लीपूंगी स्वयं, तब संतोष हो सकेगा मुझे। लला मेरे कहीं धूसरित न हो जाएं मेरी धूल से...।
प्रश्न: आपने निज रूप को नहीं निहारा माता जन्मभूमि?
उत्तर: निहारा ना! . तुम शिशुओं के नेत्रों की पुतलियों में मैंने अपना प्रतिबिंब देखा। मां अपने शिशुओं को रोमांचित होते देख, निज रूप पर इतरा उठती है। तुम सब भावुक हो मेरे बालकों। मेरा संप्रति रूप निहार, मुझे भव्यतम होते देख, मुझे अपनी मर्यादा में पुनर्स्थापित होते देख तुम सब रामजन, आमजन भाव-सरिता, अश्रु सरिता में प्रवाहित हो रहे हो। तुम उत्साह से गंगनचुंबी जय-जयकार कर रहे हो। मुझे निज रूप का भान हो गया।
प्रश्न: अपने बालक राम से कोई उलाहना आपको?
उत्तर: कैसी बात करते हो वत्स? राम को मुझसे उलाहना होगी अवश्य. माता जो हूं, पर मुझे राम से कैसी उलाहना? राम न होते तो भौतिक जीवन की मर्यादा की स्थापना कौन करता? मनुजों को भला कौन बताता कि जीवन की जटिलताओं, चुनौतियों के समक्ष मुस्कुराते ही रहने का मंत्र कौन देता आखिर? अहिल्या का तारणहार कौन होता? कोल, भील, रीछ, वानरों की अतुलनीय शक्ति की पहचान कौन कराता? अहंकार और अत्याचार के प्रतीक रावण का संहार कौन करता? और..रामराज कौन लाता?
प्रश्न: रामराज की बात आपने...अब क्या इतने श्रेष्ठतम और महाकल्याणकारीराज की पुनर्स्थापना संभव है माते?
उत्तर: अपनी मर्यादा और उत्तम पुरुषार्थ के रूप में राम हम सबके मध्य हैं। दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज नहीं काहुहु ब्यापा...भौतिक परिवर्तन देख ही रहे हो। वैचारिक रामराज तब आएगा, जब तुम सब राम के कम से कम एक सिद्धांत को अपने जीवन में उतारोगे।
माता ! आप त्रेता की भी साक्षी रही हैं, अब कलियुग है!
कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिरि नर उतरहिं पारा।
प्रश्न: ..और पावन सलिला सरयू माता? सुना है उनका आह्लाद संभाले नहीं संभल रहा!
उत्तर: हाहाहा...। स्वाभावक है आह्लादित होना उनका। कितनी गंभीर हैं वह। मेरा अंचरा हैं, मेरा घूंघट काढ़ वही मुझे मर्यादित करती हैं। लोग मेरी वंदना करते हैं तो उनको नहीं विस्मृत करते- बंदउं अवध पुरी अति पावनि, सरयू सरि कलि कलुष नसावनि। मेरे राम को कलेवा वे कराने नित्य प्रति आतीं हैं। यूं कहें कि अभी प्रात:काल उनके ही आचमन से अयोध्या (साधु-सतों से लेकर गृहस्थ तक) की दिनचर्या प्रारंभ होती है।
प्रश्न: और श्री हनुमानजी महाराज?
उत्तर: यह जो कुछ मेरे अंगना हो रहा, सब उन्हीं की तो महिमा है। अहर्निश (दिन-रात) मेरी सुरक्षा की चिंता करते हैं वे। वे इन दिनों कैसे मगन हैं, सिर्फ मैं ही देख पा रही।
प्रश्न: नागेश्वर नाथ बाबा?
उत्तर: डमरू नाद कर रहे। देवी गौरा को प्रसंग सुना रहे। ...गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा।।
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