Bada Mangal 2022: लखनऊ में 400 वर्ष पुरानी है बड़ा मंगल की परंपरा, बड़े रोचक हैं इससे जुड़े तथ्य
बदलते समय के साथ भंडारों का ट्रेंड भी बदला है। पहले जहां भंडारे के प्रसाद के तौर पर गुड़धनिया चना बताशे बेसन के लड्डू बूंदी और शर्बत ही बंटता था। वहीं धीरे-धीरे भंडारे में पूड़ी-सब्जी भी बांटी जाने लगी और अब तो तरह-तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं।
By Anurag GuptaEdited By: Updated: Tue, 17 May 2022 06:54 AM (IST)
लखनऊ, जागरण संवाददाता। इस बार ज्येष्ठ का पहला बड़ा मंगल 17 मई को पड़ेगा। इस बार पांच बड़े मंगल पड़ेंगे। 17 मई, 24 मई, 31 मई, सात जून और 14 जून को बड़े मंगल पड़ रहे हैं। ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि 17 मई को शिव योग, चंद्रमा मंगल की वृश्चिक राशि में और शनि का अनुराधा नक्षत्र का संयोग विशेष फलदायी है। 14 जून को ज्येष्ठ माह समाप्त हो जाएगा।
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं। इनकी पूजा तत्काल फल देने वाली है। इन्हें संकटमोचन, ग्राम देवता के रूप में भी पूजा जाता है। माता सीता ने हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नवनिधि की प्राप्ति का वरदान दिया था। भक्त व्रत रखकर रामसीता, लक्ष्मण और हनुमान जी का पूजन कर भजन कीर्तन करते हैं और रामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ करना बहुत लाभदायक होता है। लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, सिंदूर, चमेली के तेल का लेप, तुलसी पत्र, बेसन के लडडू और बूंदी से बजरंगबली शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
कोई नहीं रहता भूखा : बड़े मंगल पर सूरज के जागने से पहले ही शहर जाग जाता। दिन चढऩे के साथ ही उत्साह उत्सव सी चहलपहल में बदल जाता। जेठ की आग बरसती दुपहरी में भंडारों की तैयारी होती। कैसा भी रास्ता हो, संकरा या चौड़ा, हर चार कदम पर भंडारा लगता। लखनऊ में जेठ के सभी मंगल को कोई भूखा प्यासा नहीं रहता, शायद ही किसी के घर पर खाना बनता हो। बने भी क्यों, जब भंडारे में ही हर तरह का स्वाद मिल जाता है।
सुबह घर से निकलने के बाद रात तक के खाने की चिंता नहीं करनी पड़ती। कोई वहीं खड़े होकर खाता, कोई गाड़ी में बैठकर तो कई लोग भंडारे का प्रसाद पैक कराकर घर ही ले जाते। कहने को तो प्रसाद, लेकिन पेट जब तक न भरे, खाते ही जाते। लखनऊ में बड़े मंगल की एक और खासियत रही है, इस दिन विशेषकर सरकारी दफ्तरों में काम न होता। आधे से ज्यादा स्टाफ भंडारे में प्रसाद बांटता ही मिलता। कुछ लोग तो परिवार को दफ्तर बुलाकर सपरिवार भंडारा वितरण करते।
बड़ा मंगल का इतिहास :
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- अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर की स्थापना नवाब शुजाउद्दौला की बेगम और दिल्ली की मुगलिया खानदान की बेटी आलिया बेगम ने करवाई थी।
- 1792 से 1802 के बीच मंदिर का निर्माण हुआ था। कथानक है कि बेगम के सपने में बजरंगबली आए थे। बजरंगबली ने सपने में एक टीले में प्रतिमा होने का हवाला दिया था।
- बड़ी बेगम ने टीले को खोदवाया और बजरंगबली की प्रतिमा को हाथी पर रखकर मंगाया। गोमती पार प्रतिमा स्थापित करने की मंशा के विपरीत हाथी अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर से आगे नहीं बढ़ सका। उत्सव के साथ मंदिर की स्थापना की गई।
- मंदिर के गुंबद पर चांद का निशान एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करता है।
- स्थापना काल के दो तीनवर्षों के बाद फैली महामारी को दूर करने के लिए बेगम ने बजरंगबली का गुणगान किया तो महामारी समाप्त हो गई।
- इस दौरान उत्सव का आयोजन किया गया। आयोजन का दिन मंगलवार था और ज्येष्ठ मास का महीना था। बस फिर उसी समय से शुरू हुआ बड़ा मंगल लगातार जारी है। जगहजगह भंडारे में ङ्क्षहदू मुस्लिम दोनों ही शामिल होते हैं।
- बड़े मंगल की परंपरा अलीगंज के हनुमान मंदिर से ही शुरू हुई। चंद्रमास जेठ के पहले मंगल का मेला यहां की प्रधान परंपरा है।
- बड़े मंगल पर यहां मेला लगता आया है।
- अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने बड़ा मंगल की इस परंपरा को उत्साहपूर्वक निभाया और आगे बढ़ाया।
- बड़े मंगल पर अलीगंज हनुमान मंदिरों की परिक्रमा करने के लिए दूरदराज से लोग आते हैं। मनोरथ प्राप्ति के लिए भक्त लेटकर ही घर से मंदिर तक ही यात्रा तय करते हैं।
- पहले बड़े मंगल की परंपरा अलीगंज हनुमान मंदिरों से ही जुड़ी थी। धीरेधीरे बड़े मंगल की प्रतिष्ठा लखनऊ भर के अन्य हनुमान मंदिरों तक भी पहुंचने लगी।
- एक अन्य कथानक के अनुसार इत्र कारोबारी लाला जाटमल ने अलीगंज में हनुमान मंदिरों को बनवाया।
- अलीगंज हनुमान मंदिर का विग्रह स्वयंभू है और यह मूर्ति महंत खासाराम को एक स्वप्न निर्देश में जमीन से मिली।
- महंत खासाराम के अनुरोध पर ही इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।