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आसान नहीं थी आंदोलन की राह, अयोध्‍या राम मंदिर के गर्भगृह पूजन से पहले पढ़ें त्रेता युग से अब तक के संघर्ष की कहानी

Ayodhya Ram Mandir गर्भगृह पूजन के साथ राम मंदिर के सुदीर्घ अतीत से लेकर वर्तमान की यात्रा स्वर्णिम पड़ाव से गुजरेगी। युगों से पहले अस्तित्व में आने के साथ राम मंदिर के खाते में अपूर्व गौरव-गरिमा रही है हिंदू अस्मिता की इस विरासत को अवमान-अपमान का भी सामना करना पड़ा।

By Vrinda SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 30 May 2022 02:24 PM (IST)
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Ayodhya Ram Mandir: गर्भगृह पूजन के साथ स्वर्णिम मोड़ से गुजरेगा राम मंदिर।
अयोध्या [रघुवरशरण]। गर्भगृह पूजन के साथ राम मंदिर के सुदीर्घ अतीत से लेकर वर्तमान की यात्रा स्वर्णिम पड़ाव से गुजरेगी। युगों से पहले अस्तित्व में आने के साथ राम मंदिर के खाते में यदि अपूर्व गौरव-गरिमा रही है, तो हिंदू अस्मिता की इस विरासत को अवमान-अपमान का भी सामना करना पड़ा है। श्री राम के जन्म और एक आदर्श राजा, मर्यादा पुरुषोत्तम एवं सृष्टि के नायक भगवान के रूप में उनकी प्रतिष्ठा के समय अयोध्या और उनकी जन्मभूमि की गरिमा का सहज अनुमान किया जा सकता है।

श्री राम के स्वधाम गमन के बाद उनके पुत्र कुश ने यशस्वी पिता की स्मृति में उनकी जन्मभूमि पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया। तभी से यह मंदिर श्री राम के प्रति आस्था, आदर और अहोभाव का परिचायक बनी है। युगों के सफर में राम मंदिर की गौरव-गरिमा शिखर का स्पर्श करती रही। समय के साथ अगर आस्था के इस महानतम स्मारक की आभा मंद पड़ी, तो उसे नई चमक और नया गौरव भी प्रदान किया जाता रहा।

त्रेता युग में श्री राम के सूर्यवंशीय वंशजों के समय राम जन्मभूमि पर बने भव्य-दिव्य मंदिर का रखरखाव पूरी जिम्मेदारी से होता रहा। वृहदबल के रूप में अयोध्या के अंतिम सूर्यवंशी शासक का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरव सेना की ओर से युद्ध में भाग लिया और अभिमन्यु के हाथों मारे गए। उनके अवसान के बाद से अयोध्या के साथ राम मंदिर की भी चमक मंद पड़ने का संकेत मिलता है। साथ ही यह तथ्य भी प्रतिपादित होता है कि महाभारत युद्ध के बाद श्री कृष्ण अयोध्या आए और उन्होंने अपने पूर्ववर्ती श्री राम के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

दो हजार वर्ष पूर्व भारतीय लोक कथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य के जिस समय अयोध्या आगमन का उल्लेख मिलता है, उस समय अयोध्या अपनी पहचान से वंचित हो चुकी थी। विक्रमादित्य ने न केवल अनेक त्रेता युगीन स्थलों के साथ उससे भी पूर्व के पौराणिक स्थलों सहित पूरी अयोध्या का जीर्णोद्धार कराया, बल्कि राम जन्मभूमि पर भव्य दिव्य मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर की भव्यता के बारे में आज भी अनेक किंवदंतिया प्रचलित हैं। विक्रमादित्य द्वारा निर्मित होने के एक हजार वर्ष बाद जैसे राम जन्मभूमि को नजर लग गई।

राम भक्तों की यह विरासत लंबे समय तक त्रासदी का सामना करती रही। पहले सालार मसूद गाजी ने अयोध्या सहित राम जन्मभूमि को क्षतिग्रस्त किया और सन 1528 में मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने तोप से राम मंदिर को गिरवा दिया। इसके बाद करीब 500 वर्षों तक राम जन्म भूमि के सम्मान की प्रतिष्ठा के लिए सतत संघर्ष चलता रहा।

सुदीर्घ संघर्ष 9 नवंबर 2019 को रामलला के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फलीभूत हुआ। तब उत्कर्ष का नया चरण शुरू हुआ और 5 अगस्त 2020 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के लिए भूमि पूजन किया, तो यह सफर हजार वर्ष तक सलामत रहने वाले भव्य मंदिर के संकल्प से गुजरा और आगामी बुधवार को यह संकल्प भव्य-दिव्य मंदिर के अनुरूप भव्य गर्भगृह के निर्माण की शुरुआत करते हुए आगे बढ़ेगा।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित सनातन संस्कृति की गौरव-गरिमा के पर्याय बड़ी संख्या में संत-महंत भी मौजूद होंगे। जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी राम दिनेश आचार्य कहते हैं कि राम मंदिर को लेकर राम भक्तों ने जितना दंश झेला है, अब उतने ही उल्लास का आभास हो रहा है और इसके लिए राम मंदिर के संघर्ष में शामिल सभी घटक कृतज्ञता के पात्र हैं ।

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