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Lucknow: भातखंडे विश्वविद्यालय की कुलपति बनीं प्रो. मांडवी, बोलीं-लोक संस्कृति को भी संगीत शिक्षा से जोड़ेंगे

प्रो. मांडवी सिंह कहती हैं कि महिलाओं का सही विकास न होने से बच्चों पर प्रभाव पड़ता है। स्वरों का ज्ञान मंत्रों का उच्चारण करने से महिलाओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक प्रभाव दिखे। यहां भी गर्भाधान संस्कार को संगीत शिक्षा से जोड़कर काम करना चाहूंगी।

By Jagran NewsEdited By: Vrinda SrivastavaUpdated: Thu, 17 Nov 2022 08:52 AM (IST)
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भातखंडे विश्वविद्यालय की कुलपति बनीं प्रो. मांडवी।
लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। बात 1956 की है, जब छत्तीसगढ़ में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। राजकुमारी इंदिरा के नाम पर यह विश्वविद्यालय बना था। वहां की संगीत प्रेमी रानी पद्मावती प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) की थीं। तब उत्तर प्रदेश से भातखंडे के पटु शिष्य/सहयोगी रातंजनकर को वहां का पहला कुलपति बनाया गया था। आज इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मांडवी सिंह को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय बनने के बाद यहां के पहले कुलपति के रूप में अवसर दिया गया है। इसे संयोग बताते हुए प्रो. मांडवी सिंह कहती हैं कि वह लोक संस्कृति काे संगीत शिक्षा से जोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास करेंगी। प्राे. मांडवी सिंह के साथ दुर्गा शर्मा की विशेष बातचीत के प्रमुख अंश-

प्रश्न - अपनी 96 वर्षों की यात्रा में भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। चुनौतियों को कैसे दूर करेंगी?

उत्तर - कार्यभार ग्रहण करने के बाद वहां की स्थितियों का अध्ययन कर कार्य करूंगी। योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा। जो चीजें विश्वविद्यालय के विकास में अवरोध हैं, उन्हें दूर करना प्राथमिकता होगी।

प्रश्न - पहली बार संस्कृति विश्वविद्यालय की परिकल्पना की गई हैं। एक तरह से आप इसकी पहली कुलपति हैं, क्या योजनाएं हैं ?

उत्तर - विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की विश्वविद्यालयी शिक्षा को लेकर अनेक योजनाएं हैं, उसका लाभ कैसे मिले, इस पर ध्यान देंगे। किसी भी उच्च शिक्षा का मूल्यांकन नैक के माध्यम से होता है। नैक के मूल्यांकन और उसके मापदंड के अनुसार कार्यप्रणाली पर विचार करना होगा। तभी हम संगीत शिक्षा को मुख्य धारा से जोड़कर विश्वविद्यालय का विकास सुनिश्चित कर पाएंगे।

प्रश्न - एक कलाकार के रूप में स्वयं के लिए समय और कुलपति के दायित्व के बीच सामंजस्य कैसे बैठाएंगी?

उत्तर - संगीत ने मेरे मन और जीवन को इतना तृप्त किया है कि मैं बिना अभ्यास तो रह नहीं सकती। वैसे भी शिक्षा के साथ अभ्यास जुड़ा हुआ है तो यह तो चलता ही रहेगा, तभी मैं कुछ रचनात्मक कार्य विश्वविद्यालय के लिए कर पाऊंगी। विद्यार्थियों के शिक्षण, प्रशिक्षण के लिए प्रशासक और शिक्षक को अभ्यासरत रहना जरूरी है।

प्रश्न - किसी नये कोर्स को लेकर पहल होगी?

उत्तर - प्रदर्शनकारी कलाओं की अन्य विधाओं और लोक परंपरा से संबंधित नवीन पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जा सकता है। संगीत और नृत्य से समाज को होने वाले प्रभाव पर भी कार्य किया जा सकता है। खैरागढ़ विवि में मेरे द्वारा ऐसा प्रयोग किया गया था। महिलाओं का सही विकास न होने से बच्चों पर प्रभाव पड़ता है। संगीत इस दिशा में कैसे मदद कर सकता है, इस पर हमने पहले भी काम किया है। स्वरों का ज्ञान, मंत्रों का उच्चारण करने से महिलाओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक प्रभाव दिखे। यहां भी गर्भाधान संस्कार को संगीत शिक्षा से जोड़कर काम करना चाहूंगी।

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