UP Nikay Chunav 2023: यूपी नगरीय निकाय चुनाव में BSP को बड़ा झटका, काम न आया मुस्लिमों पर बड़ा दांव लगाना
निकाय चुनाव 2017 में जहां बसपा के खाते में दो नगर निगम की सीटें आई थीं वहीं इस बार उसके हाथ खाली रहे। मुस्लिमों पर बड़ा दांव लगाना भी पार्टी के काम नहीं आया। वहीं पार्षद और नगर पंचायत अध्यक्ष जीत में भी बसपा का प्रदर्शन खराब रहा।
By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Sun, 14 May 2023 08:41 AM (IST)
लखनऊ, राज्य ब्यूरो। UP Nikay Chunav 2023 Result पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बहुजन समाज पार्टी को नगरीय निकाय चुनाव में भी बड़ा झटका लगा है। पांच वर्ष पहले निकाय चुनाव में दो मेयर जीतने वाली बसपा अबकी पूरी तरह खाली हाथ है। बसपा प्रमुख मायावती ने इस बार मुस्लिमों पर बड़ा दांव लगाया था लेकिन उससे भी पार्टी को संजीवनी मिलती नहीं दिखी।
वैसे बसपा को नगरीय निकाय चुनावों से परहेज रहा है और वर्ष 2006 और 2012 में मायावती ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। लेकिन, राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने की कोशिशों के तहत बसपा पिछली बार की तरह इस बार भी निकाय चुनाव के मैदान में उतरी। दलित वोट बैंक में भाजपा द्वारा सेंध लगाने और मुस्लिम समाज के सपा के साथ जाने से पार्टी की दुर्दशा को देखते हुए मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के डेढ़ दशक पुराने फार्मूले को छोड़ते हुए अबकी निकाय चुनाव में मुस्लिमों पर ही बड़ा दांव लगाया।
अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 17 नगर निगमों में से 11 में पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशी थे। नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में भी पहले से कहीं अधिक मुस्लिम उम्मीद्वार पार्टी ने खड़े किए। दूसरी तरफ किसी भी ब्राह्मण-क्षत्रिय को पार्टी ने मेयर प्रत्याशी नहीं बनाया। पिछले चुनाव में मेरठ और अलीगढ़ के मेयर के अलावा 29 नगर पालिका परिषद और 45 नगर पंचायत अध्यक्ष के साथ 627 पार्षद-सदस्य जीतने वाली बसपा का प्रदर्शन अबकी बेहद खराब ही रहा है।
एक भी मेयर पद न जीतने वाली बसपा के सिर्फ छह पालिका अध्यक्ष व 31 नगर पंचायत अध्यक्ष ही जीत सके हैं। पिछली बार नगर निगम चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली बसपा अबकी सहारनपुर, मथुरा-वृंदावन, गाजियाबाद के मेयर पद पर दूसरे स्थान तक ही पहुंच सकी। विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर सिमटने वाली बसपा के लिए चिंता की बात यह रही कि बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के बावजूद उसके साथ मुस्लिम आते नहीं दिखे।
गौरतलब है कि डेढ़ दशक पहले दलितों के साथ ही ब्राह्मण-मुस्लिमों के दम पर बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का प्रदर्शन पिछले एक दशक से गिरता ही जा रहा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने वाली बसपा को पिछले लोकसभा चुनाव में 10 सीटें तब मिली थी जब मायावती ने अप्रत्याशित तौर पर सपा के साथ गठबंधन किया था। चूंकि सपा से बसपा का गठबंधन टूट चुका है इसलिए निकाय चुनाव के नतीजों को देखते हुए अब लोकसभा चुनाव में अकेले ही बसपा के उतरने पर पार्टी के लिए वर्ष 2014 जैसी स्थिति के फिर रहने की आशंका जताई जाने लगी है। पार्टी के लिए अगले लोकसभा चुनाव की राह और भी कठिन होती दिख रही है।
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