भाजपा के लिए अपने ही बन रहे विपक्ष से बड़ी चुनौती
मंत्री और विधायकों के इस्तीफे के एलान को दबाव की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन, भाजपा नियंताओं को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं यह भविष्य में चलन न बन जाए।
लखनऊ (आनंद राय)। प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार को विपक्ष से ज्यादा बड़ी चुनौती अपनों से ही मिल रही है। अफसरों की कार्यशैली और अपनी ही सरकार के मंत्रियों से खफा सांसदों और विधायकों का मौके-बे-मौके गुस्सा जाहिर हो रहा है। ताजा मामला तिलोई के विधायक मयंकेश्वर शरण सिंह का है, जिन्होंने इस्तीफे की धमकी देकर सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। मुख्यमंत्री से मिलने के बाद उन्होंने इस्तीफा टाल दिया लेकिन, अभी उनका आक्रोश कम नहीं हुआ है।
मयंकेश्वर कोई पहले विधायक नहीं हैं। मयंकेश्वर से पहले सत्ता पक्ष के कई विधायक हैं जिन्होंने अपनी उपेक्षा और सुनवाई न होने की टीस लेकर गुस्से का इजहार किया है। बाराबंकी की सांसद प्रियंका रावत अपने जिले के डीएम से खफा हैं तो हापुड़ के विधायक विजय पाल सिंह समर्थकों समेत एसपी के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे।
ऐसे और भी मामले हैं। भाजपा के साझीदार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने भी अपने क्षेत्र की समस्याओं का समाधान न होने पर गाजीपुर के डीएम को हटाने की मांग की थी। उन्होंने एलान किया था कि या तो गाजीपुर के डीएम हटाए जाएं वरना वह मंत्री पद छोड़ देंगे। हालांकि मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद मयंकेश्वर की तरह ही उन्होंने भी इस्तीफे की बात टाल दी थी।
कहीं यह चलन न बन जाए: मंत्री और विधायकों के इस्तीफे के एलान को दबाव की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन, भाजपा नियंताओं को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं यह भविष्य में चलन न बन जाए। इस मसले को लेकर ही पार्टी में दो तरह के मत उभर रहे हैं। एक वर्ग मान रहा है कि प्रचंड बहुमत की वजह से सत्तापक्ष के विधायकों की कद्र नहीं हो रही है लेकिन, यह भी बात कही जा रही है कि कुछ लोग अपना सिक्का चलाने के लिए इस तरह की सियासत कर रहे हैं।
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समर्थकों में किरकिरी: सत्तापक्ष में विधायकों की बड़ी संख्या होने की वजह से जिलों में वर्चस्व की लड़ाई भी खूब चल रही है। थाना, तहसील और जिला स्तर पर विधायक अपने मनमाफिक नहीं करा पा रहे हैं। इससे उनकी समर्थकों में किरकिरी हो रही है। यह बात भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तक भी पहुंची और विधायकों की समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने 12-12 का ग्रुप बनाकर मंत्रियों को जिम्मेदारी दी, लेकिन यह फॉर्मूला कारगर नहीं हो सका।
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