CM Yogi Adityanath Speech: 15 वर्ष बाद भी चर्चा में बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ का 2007 में गोरखपुर में दिया गया भाषण
CM Yogi Adityanath Speech वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि असल में बात को इसलिए लंबा खींचा जा रहा है क्योंकि योगी आदित्यनाथ अब मुख्यमंत्री बन चुके हैं। मुख्यमंत्री पर आरोप है कि उनके सांसद रहते 2007 में भड़काऊ भाषण देने के बाद गोरखपुर में दंगा भड़क गया था।
By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Fri, 26 Aug 2022 11:16 AM (IST)
लखनऊ, जेएनएन। Hate Speech Of Yogi Adityanath Matter: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के बतौर लोकसभा सदस्य गोरखपुर (MP Gorakhpur) के भड़काऊ भाषण देने के मामले में अहम मोड़ आ गया है। 15 वर्ष पहले के भाषण के मामले में उनके खिलाफ केस दर्ज करने को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया। शीर्ष अदालत आज इस फैसले को सुना सकती है। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ इतने पुराने मामले में केस दर्ज करने का आदेश देने से इन्कार कर दिया था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप है कि उनके सांसद रहते 2007 में भड़काऊ भाषण देने के बाद गोरखपुर में दंगा भड़क गया था। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके खिलाफ केस दर्ज करने इजाजत नहीं दी थी। हाई कोर्ट ने भी किया था इन्कार
इलाहाबाद हाई कोर्ट 2018 में कहा था कि उसे मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार करने का फैसला लेने की प्रक्रिया में कोई प्रक्रियात्मक गलती नहीं मिली। हाई कोर्ट ने भी राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया था। याचिकाकर्ता परवेज परवाज और अन्य ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
अब तक कोई सबूत नहीं मिला
योगी आदित्यनाथ की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि असल में बात को इसी लिए लंबा खींचा जा रहा है क्योंकि योगी अब मुख्यमंत्री बन चुके हैं। साल जांच के बाद सीआईडी को तथ्य नहीं मिले। उस दौरान राज्य में दूसरी पार्टियों की सरकार थी। 2017 में राज्य के कानून विभाग और गृह विभाग ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना किया। तब उसकी वजह भी यही थी कि पुलिस के पास मुकदमे के लायक पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इसे पहले निचली अदालत और 2018 में हाई कोर्ट भी मान चुके हैं।
सुनवाई में भी आए कई मोड़इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने 20 अगस्त 2018 को नोटिस जारी किया था। अब मौजूदा चीफ जस्टिस एन वी रमना की बेंच ने इस पर आदेश सुरक्षित रखा है। इस सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता परवेज के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बिना कोई कारण बताए जिरह करने से मना कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से वकील फ़ुजैल अय्यूबी ने बहस की।
सरकार ने दी यह दलीलउत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की बेंच से कहा कि मामले में कुछ भी नहीं बचा है। सीडी को सीएफएसएल को भेजा गया था, जिसमें पाया गया कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी। याचिका में उठाए गए मुद्दे पर पहले ही हाई कोर्ट विचार कर चुका है। उन्होंने कहा कि आप 15 वर्ष बाद अब एक मरे हुए घोड़े की पिटाई नहीं कर सकते क्योंकि वह आदमी आज मुख्यमंत्री है।
क्या कहना है याचिकाकर्ता कायाचिकाकर्ता परवेज परवाज का कहना था कि तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के भाषण के बाद 2007 में गोरखपुर में दंगा हुआ। इसमें कई लोगों की जान चली गई। वर्ष 2008 में दर्ज एफआईआर की राज्य सीआईडी ने कई साल तक जांच की। इसके बाद उसने 2015 में राज्य सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी। मई 2017 में राज्य सरकार ने इससे मना कर दिया। जब राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना किया, तब तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। ऐसे में सभी अधिकारियों की तरफ से लिया गया यह फैसला दबाव में लिया गया हो सकता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।