अयोध्या में भी लहलहाते थे नारियल के पेड़, वाल्मीकि रामायण की चौपाइयों में चंदन और सुपारी के पेड़ों का भी उल्लेख
Ayodhya Ram Mandir News प्रमुख वन संरक्षक डा. महेंद्र प्रताप की किताब राम वनगमन पथ की वनस्पतियां में वाल्मीकि रामायण की चौपाइयों के साथ उल्लेख। वाल्मीकि काल में अयोध्या से प्रयाग तक का क्षेत्र पूर्णत साल वन क्षेत्र था।
By Anurag GuptaEdited By: Updated: Mon, 09 Aug 2021 06:39 PM (IST)
दुर्गा शर्मा, लखनऊ: समुद्र तट के आस-पास पाए जाने वाले नारियल के पेड़ों के अगर आपको अयोध्या के किसी वन में होने की बात कही जाए तो निश्चित ही उत्सुकता होगी, लेकिन यह सच है। वन विभाग के अधिकारी डा. महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी किताब 'राम वनगमन पथ की वनस्पतियां' में भगवान राम के वनगमन के मार्ग (अयोध्या से श्रीलंका तक) पर पाई जाने वाली विभिन्न वनस्पतियों का उल्लेख किया है। इसमें स्पष्ट है कि जो नारियल समुद्रतट के आस-पास मुख्यत: केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु एवं दमन दीव में बहुतायत में पाया जाता है, उसके अयोध्या के अशोक वन में तमाम वृक्ष थे।
सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, पर्यावरणीय दृष्टि से भी अयोध्या अहम है। राम वनगमन के समय की बात करें तो, अयोध्या से श्रीलंका तक का पूरा मार्ग घने वन क्षेत्र से युक्त था। सिर्फ अयोध्या में ही ऐसे पेड़ थे, जो मौसमी परिस्थितियों के हिसाब से कौतुक जगाते हैं। औषधीय पौधों का रोपण विशेष तौर पर किया जाता था। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित और अयोध्या शोध संस्थान के सहयोग से तैयार की गई इस किताब में सिर्फ वनस्पतियों का नाम नहीं, वाल्मीकि रामायण की चौपाइयों के साथ उनका वर्णन भी किया गया है। हालांकि, समय के साथ कई वनस्पतियां अब इस क्षेत्र से गायब हो गई हैं। किताब के जरिए उन्हें फिर से लगाए जाने का सुझाव भी दिया गया है।
ऐसे ही वाल्मीकि काल में अयोध्या से प्रयाग तक का क्षेत्र पूर्णत: साल वन क्षेत्र था, पर वर्तमान में अयोध्या से प्रयाग तक साल वन नहीं हैं। अयोध्या के पास के तराई क्षेत्र गोंडा एवं बहराइच में साल वन क्षेत्र हैं, पर वहां भी साल का अच्छा पुनर्जनन नहीं है। इसी तरह किताब में अन्य पेड़ों के बारे में भी कहा गया है।
देशी आम के पेड़ लगाए जाएं
अयोध्या से प्रयाग तक के राम वनगमन पथ पर पहले देशी आम के वृक्ष पर्याप्त संख्या में विद्यमान थे। वर्तमान में कलमी आम के बाग तो बहुत लगाए गए हैं, किंतु देशी आम धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। किताब में सुझाव दिया गया कि राम वनगमन पथ पर देशी आम के पेड़ अवश्य लगाकर उनकी सुरक्षा का प्रबंध किया जाना चाहिए।चंदन, तिलक और सुपारी के पेड़ : अयोध्या में चंदन के पेड़ होने का भी उल्लेख है। चंदन के पेड़ कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में 4,000 फीट तक की ऊंचाई तक पाए जाते हैं। तब अयोध्या के अशोक वन में चंदन के वृक्ष थे। ऐसे ही भारत के शुष्क जंगली क्षेत्रों में पाए जाने वाले तिलक के वृक्ष का भारद्वाज मुनि के आश्रम में होने का भी उल्लेख है।
संदर्भ ग्रंथों का भी प्रयोग : लेखक डा. महेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं, किताब के लिए संदर्भ ग्रंथों का भी प्रयोग किया गया है। इसमें डा. रामसुशील सिंह की वनौषधि निदर्शिका, मानस में प्रकृति विषयक संदर्भ, वाल्मीकि की पर्यावरण चेतना भाग-एक, आरवी सिंह की फोड्डर ट्रीज ऑफ इंडिया, जेएस गैंबल की मैनुअल ऑफ इंडियन टिंबर्स और सीके वार्मेन की ट्रिज ऑफ इंडिया का संदर्भ भी लिया गया है।
कुछ भी अतिश्योक्ति नहीं है : राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डा. राम लखन सिंह सिकरवार के अनुसार उस समय खेती-किसानी की उम्दा तकनीक और अनुकूल मौसमी परिस्थितियों से यह संभव है। साल के वन चित्रकूट में मोहकमगढ़ के जंगलों में अब भी एक पैच के रूप में उपलब्ध हैं। वाल्मीकि रामायण में चित्रकूट में भी साल वनों का वर्णन है, जो इस बात की पुष्टि करता है। चंदन के पेड़ भी चित्रकूट के वनों में पाए जाते थे। लखनऊ के वनस्पति उद्यान में भी चंदन के पेड़ लगे हैं और चित्रकूट में भी आरोग्यधाम में उग रहे हैं। अयोध्या के उद्यान में इनको उगाना अतिशयोक्ति नहीं है।
नारियल उत्तर भारत के उद्यानों में आज भी उगाए जा रहे हैं। चित्रकूट के आरोग्यधाम में मैंने नारियल लगाया था, आज वो 15 फीट से ऊंचा हो गया है। प्रयागराज भी शुष्क क्षेत्र में आता है और तिलक भी इसी क्षेत्र में उगता है। सुपारी के रोपण का वर्णन श्री राम विवाह में मिलता है-सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पर चहुं ओरा।
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