Lucknow News: हाइपरटेंशन की औषधि देने वाले सर्पगंधा पर संकट, कई प्रजातियां हो चुकी हैं विलुप्त
Hypertension medicine Sarpagandha हाइपरटेंशन की औषधि देने वाला सर्पगंधा की प्रजातियों पर संकट छाया है। इसको बचाने के लिए बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआइपी) लखनऊ और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआइ) प्रयागराज के वैज्ञानिकों ने कई वर्षों तक शोध किया है।
By Ramanshi MishraEdited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 09 Nov 2022 08:10 AM (IST)
लखनऊ, [रामांशी मिश्रा]। हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप जीवनशैली से जुड़ी गंभीर बीमारी है। बढ़े हुए रक्तचाप से राहत दिलाने वाली दवा को बनाने में सर्पगंधा पौधे की जड़ों का उपयोग किया जाता है। हालांकि अत्यधिक उपयोग से इनका दोहन बढ़ रहा है। इसके चलते सर्पगंधा की कुछ किस्में संकटग्रस्त की श्रेणी में आ चुकी हैं। इसका संरक्षण करने और औषधीय गुण समेत अन्य उपयोगिता जानने के लिए बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआइपी) लखनऊ और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआइ) प्रयागराज के वैज्ञानिकों ने सर्पगंधा के परागकणों पर तीन वर्षों तक शोध किया है।
क्या है सर्पगंधा की खासियत
बीएसआइ की कार्यालय अध्यक्ष और वैज्ञानिक डा. आरती गर्ग और डा. अच्युतानंद शुक्ला ने बताया कि मध्य गंगा के क्षेत्र और अमरकंटक रिजर्व फारेस्ट में राउवोल्फिया की सर्पेंटीना और टेट्रेफिला नामक प्रजातियां पाई जाती हैं। पौधे स्वयं को रोगों और कीटों से बचाव के लिए फाइटोकेमिकल (रसायन) संश्लेषित करते हैं। सर्पगंधा की जड़ों में फाइटोकेमिकल रेसरपिन या रेसरपाइन पाया जाता है।
सर्पगंधा की ज्यादातर प्रजातियां विलुप्त
इसका उपयोग औषधियों में हाइपरटेंशन की दवा में किया जाता है। तथा प्रजनन के लिए इनके परागकण अति विकसित होते है। बीते तीन दशकों से अधिक समय से सर्पगंधा की इन प्रजातियों के ज्यादातर पौधे जंगलों से विलुप्त हो गए हैं। अतः इन पौधों का दोहन बेहद चिंताजनक बात है। इसे दोबारा जीवित के लिए बीएसआइ के बागानों में इन प्रजातियों को बड़ी संख्या में उगाया जा रहा है ताकि इनके संरक्षण को बढ़ावा मिले।परागणों पर अध्ययन
बीएसआइपी की वैज्ञानिक डा. स्वाति ने बताया कि परागकण की आकृति और आकार से उनकी सीमाओं, अंकुरण और प्रजनन आदि संबंधित कई जानकारियां मिल सकती हैं। ऐसे में हमने बीएसआइ से राउवोल्फिया की सर्पेंटीना प्रजाति के परागण और अमरकंटक से टेट्राफिला के परागणों पर अध्ययन किया। अध्ययन में स्कैनिंग इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से पता चला कि राउवोल्फिया के पराग की सतह चिकनी होती हैं।
जन-जागरूकता से संरक्षण संभव
पराग के एपर्चर (छिद्र) के चारों तरफ यू आकार की मोटाई (मार्गो) होती है। इसके कारण यह जल्दी नष्ट नहीं होते और प्रजनन की प्रक्रिया सफलतापूर्वक हो सकती है। इसका अर्थ है कि प्राकृतिक कारणों से इनके संकटग्रस्त होने के आसार कम हैं। इनके संरक्षण में एक अहम उपाय जन-जागरूकता है। इसके अलावा टिश्यू कल्चर से इन पौधों को अधिक संख्या में तैयार कर जंगलों और पौधों के लिए अनुकूल वातावरण वाले क्षेत्र में लगाया जा सकता है।शोध में ये रहे शामिल
इस शोध में लखनऊ स्थित बीएसआइपी से डा. स्वाति त्रिपाठी, डा. अंजुम फारूकी और प्रयागराज स्थित बीएसआइ की वैज्ञानिक एवं कार्यलयाध्यक्ष डा. आरती गर्ग, डा. अच्युतानंद शुक्ला और उनकी टीम ने किया है। यूनाइटेड किंगडम की पैलिनोलाजी- टेलर एंड फ्रांसिस नामक शोध पत्रिका में हाल ही में यह शोध प्रकाशित भी हुआ है।
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