Dainik Jagran Samvadi 2019 Lucknow UP : हास्य की बतरस से भीगी संवादी...गूंजे सतरंगी ठहाके
लखनऊ, जेएनएन। Dainik Jagran Samvadi 2019 Lucknow : अभिव्यक्ति के उत्सव ने दो दिन का सफर पूरा कर लिया। विचारों के टकराव, तालियों की गूंज और आक्रोश के सुर आपस में भरपूर संवाद करते दिखे। दर्शकदीर्घा ने जितनी शिद्दत से संवाद किया, उतने ही संतुष्टिपरक निष्कर्ष मंच से मिले। अगर आप अब तक इस साहित्यिक उत्सव का हिस्सा नहीं बन सके तो पूरा रविवार आपके पास है। रविवार को स्त्री साहित्य का संघर्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय के सौ साल, हिंदी पर बेस्टसेलर का प्रभाव, यथार्थ और कल्पना का साथ, इतिहास लेखन की चुनौतियां, साहित्य और सिनेमा, हास्य और गीत ठहाके होगे खास। रविवार को संवाद के सात रंग आपको भिगोने के लिए तैयार हैं। आइए और संवाद कीजिए...
Dainik Jagran Samvadi 2019 Lucknow : अभिव्यक्ति के उत्सव ने दो दिन का सफर पूरा कर लिया। विचारों के टकराव, तालियों की गूंज और आक्रोश के सुर आपस में भरपूर संवाद करते दिखे। दर्शकदीर्घा ने जितनी शिद्दत से संवाद किया, उतने ही संतुष्टिपरक निष्कर्ष मंच से मिले। अगर आप अब तक इस साहित्यिक उत्सव का हिस्सा नहीं बन सके तो पूरा रविवार आपके पास है। रविवार को स्त्री साहित्य का संघर्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय के सौ साल, हिंदी पर बेस्टसेलर का प्रभाव, यथार्थ और कल्पना का साथ, इतिहास लेखन की चुनौतियां, साहित्य और सिनेमा, हास्य और गीत ठहाके होगे खास। रविवार को संवाद के सात रंग आपको भिगोने के लिए तैयार है। आइए और संवाद कीजिए...
समापन सत्र - हास्य और गीत
सर्वेश अस्थाना, अनु अवस्थी, मालविका हरिओमव
संवादी के अंतिम सत्र की घोषणा ही हुई तो गोमतीनगर के बीएनए हॉल की सीढिय़ां कुर्सियां बन गईं। हास-परिहास भरे लहजे में संचालक आत्म प्रकाश मिश्र ने हास्य कवि सर्वेश अस्थाना और मालविका का परिचय कराया लेकिन, उस मेहमान के बारे में बस हिंट किया। वो छोटे बप्पी लहरी की तरह दिखते हैं और वैसे ही सोने की चेन पहनते हैं...और जब वो आए तो अपना परिचय यूं दिया- पहचान त गयो होइहो...। कानपुर से बोल रहे हैं...अन्नुअवस्थी...।
- सर्वेश अस्थाना : हास्य कवि हैं। हिंदी, उर्दू में गीत, गजल के साथ हास्य-व्यंग्य के लिए जाने जाते हैं।
- अनु अवस्थी : हास्य कलाकार हैं। कनपुरिया टोन में अपनी मजेदार बातों से दर्शकों को लोटपोट करा देते हैं।
- मालविका हरिओम : लेखन और गायन दोनों में समान अधिकार रखती हैं। लोक गीतों पर आधारित देवी भजनों का अलबम देवी दयालु भईं प्रसिद्ध हुआ।
आज भी आर्टिस्ट थिएटर से निकल रहा है
बंगाल फिल्मों में गलत प्रोपेगंडा कैसे रोका ? इसपर संदीप भूतोडि़या ने कहा कि बंगाल में आज भी आर्टिस्ट थिएटर से निकल रहा है। यूपी के संगीत का क्या महत्व है ? प्रभात रंजन ने बताया कि नौशाद साहब बहुत अच्छे शायर हैं। मजरूह सुल्तानपुरी ने बहुत कम गजल लिखी है।
डायरेक्टर अपनी थर्ड आई से देखता है
संदीप भूतोडिय़ा ने कहा कि फिल्मों में किसी भी स्टोरी को डायरेक्टर अपनी थर्ड आई से देखता है। उसी के हिसाब से हमें काम करना होता है। वहीं, प्रभात रंजन ने कहा कि लेखक अब शब्दों से चित्र नहीं बना पा रहा है। सिनेमा एकमात्र संवाद का विकल्प नहीं है। संदीप भूतोडिय़ा ने कहा कि साहित्य का प्रभाव हमारे देश में पहली फ़िल्म से था, बंगाल में सिनेमा आज भी ठोस है। बंगाल के फिल्म डायरेक्टर सत्यजीत रे जब अवध की पिक्चर बनाते हैं, तो वो अलग क्यों हो जाती है? प्रकाशक गौरव प्रकाश ने कहा कि सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में यूपी के लोगों को बहुत लेजी दिखाया है।
साहित्य और सिनेमा
छठे सत्र साहित्य और सिनेमा पर सवाल उठा कि आजतक 28 बार देवदास बनाई जा चुकी है। पीसी बरुआ ने बनाया। उसमें देवदास मुंह पर किताब रखे होते हैं। दूसरी बार में कमरे के पास खड़ी होती है। तीसरी बार संजय लीला के साथ पारो पैर के पास खड़ी होती है, एक ही साहित्य के तीन सिनेमा? इसपर प्रभात रंजन ने कहा कि तीनों देवदास अपने-अपने जमाने में बहुत हिट हुई।
छठा सत्र - साहित्य और सिनेमा
'फिल्म मुगले आज़म' की पूरी कहानी झूठी
एतिहासिक फिल्मों में हमेशा कंट्रोवर्सी होती है, उसमें लोगों के विरोध का क्या कारण है ? इसपर विश्वास पाटिल ने कहा कि उस नजरिये से देखना चाहिये, आसिफ ने दुर्गा खोटे (भारतीय अभिनेत्री) को दिखाया। आज भी मां के रुप में, उन्हें ही दिखाया जाता है। कल्पना बेस्ट चाहिए यथार्थ पर । मुगले आज़म पूरी कहानी झूठी है । एक ड्रामा कम्पनी ने मनगढंत कहानी बना दी थी। काशिराव को नाचता था। बाजीराव को नचाया गया, जबकि बाजीराव की तलवार नाचती है। आज बाजीराव में मस्तानी भी नाचने लगी । चंद्रमुखी , पारो आदि सबको फ़िल्म डायरेक्टर ने नचवा दिया, जबकि इतिहास में ऐसा कुछ नहीं है। लेखक को कोई भी कृति अपने मातृभाषा में लिखनी चाहिए , अनुवाद करने के लिए अनुवादक मौजूद हैं। क्या पानीपत के बाद आपको कुछ घमंड हुआ ? पाटिल ने कहा कि हां , मुझे रातों- रात सफलता मिलने से थोड़ा घमंड आ गया था। तलवार से कलम महान है । खारिज करने से भी इतिहास खत्म नहीं होता।
पाण्डुलिपि लिखी तो आठ बार रिजेक्ट, तब भी हार नहीं मानी
युवावस्था में इतना गम्भीर क्यों हो गए ? इसपर विश्वास पाटिल ने कहा कि मैंने जब पाण्डुलिपि लिखी तो पब्लिशर ने 8 बार रिजेक्ट कर दिया। 9वीं बार महाराष्ट्र के एक पब्लिशर ने इसे लिया। फिर वो रातों-रात अमीर हो गये। एक-एक साल में तीन एडिशन लिये जा रहे थे। आज के जमाने में भी इसे इतना पढ़ा जा रहा है। इस स्टोरी में तीन थॉट्स थे। जो अहमद शाए, अफ्दाली और पेशवा के बीच की जंग पर हैं।
पानीपत की जंग हर रोज की कहानी नहीं
पांचवें सत्र में इतिहास लेखन की चुनौतियां पर सवाल उठा कि पानीपत, ढाई लाख प्रतियां छप चुकी है, ये टाइटिल कैसे सूझा ? इसपर विश्वास पाटिल ने कहा कि मुझसे स्कूल में छुट्टी के बाद आने के बाद पूछा पानीपतकी जंग कब-कब हुई? मैंने कॉन्फिडेंस के साथ कहा, पहले पहला हुआ उसके बाद में दूसरा फिर तीसरा। 22 साल का था, तब मैंने पानीपत के बारे में पढ़ा तो मुझे लगा की ये हर रोज की कहानी नहीं है। यह विशाल स्टोरी है, मैं 22 साल से 28 साल तक स्टडी करता रहा।
पांचवां सत्र- इतिहास लेखन की चुनौतियां'
विश्वास पाटिल से आत्म प्रकाश मिश्र की बातचीत
कश्मीरी मुसलमान गलत नहीं
हरिंदर सिक्का ने कहा कि कश्मीरी मुसलमानों को हमेशा गलत समझा जाता है। हमें से समझना होगा कि कौन मां चाहेगी कि उसका बेटा हाथ में पत्थर उठाए। इतने सालों से वहां आतंकवाद को फंडिंग की जा रही थी। धारा 370 हटने के बाद बहुत कुछ बदला है । मेरी अगली किताब धारा 370 है जिसकी प्रेरणा भी कॉलिंग सहमत की सहमत हैं। वहां कश्मीरी मुस्लिम औरत सहमत भी है जिसने हिंदुस्तान के लिये अपना पूरा परिवार खत्म कर दिया। उसके लिए अपने मुल्क से बढ़कर कुछ नहीं था।
राजी फिल्म ने नहीं किया किरदार के साथ न्याय
हरिंदर सिक्का ने बताया कि राजी फिल्म बनाने में एआर रहमान, सोनू निगम, मास्टर सलीम, और जाने कितने ही लोगों ने मेरी मदद की, लेकिन फिल्म राज़ी ने मेरी किताब कॉलिंग सहमत के साथ न्याय नहीं किया। उन्होंने बताया कि सहमत जब भारत वापस आई तो उसे राष्ट्रीय सम्मान दिया गया था। उस दौरान उसने कहा था।
'कॉलिंग सहमत' से बनी थी राज़ी फिल्म
राज़ी फिल्म के सवाल पर हरिंदर ने बताया, 1994 में मैंने फौज की नौकरी छोड़ दी, घर मे पैसे नहीं थे। कारगिल जंग के दौरान उपजे हालत के बाद मैंने कश्मीरी महिला सहमत के निजी जीवन पर किताब कॉलिंग सहमत लिखना शुरु किया। मुझे यह किताब लिखने में आठ साल लगे । किताब के पूरा होने के बाद इसे खरीदने के लिए कई लोग आए, करोड़ में कीमत लगाई, लेकिन मैंने साफ मना कर दिया।
चौथा सत्र : यथार्थ और कल्पना का साथ
चौथा सत्र : यथार्थ और कल्पना का साथ में हरिंदर सिक्का से मनोज राजन त्रिपाठी की बातचीत।
सभी बेस्ट सैलर में आने के लिये ही लिख रहे
प्रचार में प्रकाशक के रोल पर प्रभात रन्जन ने कहा, वो विषय कहा है जो पूरे इंडिया की बात कह रहा हो, सभी पाठकों को पकड़ पा रहा हो। सभी बेस्ट सैलर में आने के लिये ही लिख रहें हैं। लेखकों पर बेस्ट सैलर ही लिखने के सवाल पर नवीन ने कहा, ऐसा नहीं है, कंज़्यूमर बिहेवियर पर भी डिपेंड करता है। रीडर बेस को समझना पड़ता है। मार्किट को देखना पड़ता है।
सोशल मीडिया पर सुनने के बाद ही लोग आते हैं
बेस्टसेलर लिस्ट में आने के बाद होने वाले दबाव के बारे में सदाबहार लेखक गौतम राजऋषि ने कहा कि प्रेशर भी होता है, पुराने और नए लेखकों पर प्रभाव आ गया है। पहले लुगदी साहित्य होता था, अब बेस्टसेलर होता है। जो लोग प्रचार करते है, उन्हे बुरा कहा जाता है। लेकिन आपको अपना प्रचार करना पड़ता है। इसपर नवीन चौधरी ने कहा कि 55 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर सुनने के बाद ही आते हैं। कहा, बेशर्मी की हद तक प्रचार मुझे समझ नहीं आता है। डिस्ट्रीब्यूशन का पूरा मॉडल ध्वस्त हो गया है, हिंदी को दिक्कत आ रही है। छोटी जगह बुक्स मिलना मुश्किल हो गया है।
बेस्टसेलर ने नए ही पुराने लेखकों भी पहचान दी
तीसरे सत्र हिंदी पर बेस्टसेलर का प्रभाव में बेस्टसेलर के आने के बाद नए लेखकों की स्थिति पर हिंदी साहित्यकार प्रभात रंजन ने कहा कि बेस्टसेलर ने नए ही नहीं पुराने लेखकों को नई पहचान दी है। मैं लेखक हूं, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाता हूं, लेकिन अब नई पीढ़ी के युवा आदर्श के रूप में देख रहे हैं, जो अभी पेेन लेखक हैं। भगवंत अनमोल ने कहा कि मैं कही भी बुलाया जाता हूं, इसलिये की मैं बेस्टसेलर लिस्ट में शामिल हूं। एक युवा लेखक के रूप में, बेस्टसेलर संजीवनी के रूप में काम आती है।
तीसरा सत्र - हिंदी पर बेस्टसेलर का प्रभाव
तीसरे सत्र हिंदी पर बेस्टसेलर का प्रभाव पर प्रभात रंजन, भगतवंत अनमोल, गौतम राजऋषि नवीन चौधरी से चर्चा। प्रभात रंजन हिंदी साहित्यकार हैं। कहानी और आलोचना विधा में पहचान रखते हैं। भगवंत अनमोल बेस्ट स्पीच थेरेपी के संस्थापक हैं। स्पीच थेरेपिस्ट और मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं। गौतम राजऋषि सदाबहार लेखक हैं। शायर हैं। फौज में होते हुए भी लेखन में अमिट छाप छाप छोड़ी है।
नेताओं ने बनाया है ये कल्चर
जस्टिस हैदर अब्बास रजा ने कहा, आज 15 रेपिस्ट राज्य सभा के मेंबर हैं। यह कल्चर नेताओं ने बनाया है, जो छात्रों ने सिखा है। छात्रों और वीसी के बीच कोई कम्यूनिकेशन नहीं रह गया है। वीसी क्लास नहीं लेते हैं, केवल प्रशासनिक कार्य देखते हैं।
टाॅपर ही इलेक्शन में हिस्सा लेते थे
एलयू में होने वाले चुनाव को पिछ्ले जमाने के चुनावों से अंतर बताते हुए जस्टिस हैदर अब्बास रजा ने कहा कि यूनिवर्सिटी में जब तक एग्जीक्यूटिव कम्युनिटी थी, तब तक बहुत अच्छा था। जब से बाहर के वीसी आने लगे, ऐसे लोग वीसी बनाए जा रहे हैं, जो कभी यूनिवर्सिटी गये ही नहीं। छात्र उनकी इज्जत क्यों करेगा। जो टॉपर नहीं होता है, वो इलेक्शन में भाग नहीं लेता था। एनएम शर्मा, शंकर दयाल शर्मा, एसएन जाफर जैसे एलीमेंट लोग चुनाव लड़ते थे।
अब अपनो को खुश करने के लिए नीतियां बनाई जाती हैं
विखंडन कहां से शुरु हुआ और हम कब सिखेंगे ये बात की परिपाटी मज़बूत करने की ज़रुरत है के सवाल पर एसपी सिंह ने कहा कि मैं परिवर्तन के लिये जाना जाता हूं। एक ऐसा स्थाई सिस्टम हो, जो मॉनिटर कर रहा हो। वीसी के जाते ही तुरंत सिरे से निर्णय वापस ले लिये जाते हैं। सुविधा देने के लिए अपनो को खुश करने के लिये नीतियां बनाई गयी, अपने लिये नीतियां बनाई गयी। वहीं, प्रोफेसर भूमित्रिदेव ने कहा कि जो तबाही नालंदा में हुई उसे 12वीं सदी में जाक स्लो वत्स ने देखा, 90 साल का शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहा था, बीएचयू में मैं चोथा वीसी था।
गुलाम भारत के विश्विद्यालय आज़ाद थे
गुलाम भारत के विश्विद्यालय आज़ाद थे और अब एलयू छावनी मे बदल गया के सावल पर प्रोफेसर भूमित्रिदेव ने कहा कि थोड़ा सीलिंग ऑफ एक्सेलेंस, तालमेल, वेडिंग की जरूरत है। भारत कृषि प्रधान देश है, नरेंद्र देव ने कहा कि लखनऊ से बीएचयू भेजा गया तो बच्चो ने नाराज़गी दिखाई। केएम मुंशी वासी थे, तब चांसलर कैंप की शुरुआत हुई।
यूनिवर्सिटी में 1953 में हुआ सबसे बड़ा आंदोलन
जस्टिस हैदर अब्बास रजा ने कहा कि बटलर साहब, हबीबुल्लाह साहब, बीरबल साहनी, दीनदयाल उपाध्याय जी जैसे तमाम लोग लखनऊ के पढ़े हुए थे, इनमें से कुछ तो यहीं टीचर भी बनें। लखनऊ यूनिवर्सिटी में 1953 में सबसे बड़ा आन्दोलन हुआ। उस जमाने में मैं केकेसी में पढ़ता था, उस वक्त यहां स्टूडेंट यूनियन को खत्म कर दिया गया था। 1942 हो या 1953 में कई ऐसे मामले, आन्दोलन हुए मगर कभी इसके भीतर पुलिस दाखिल नहीं हुई।
जो जमाना कल था, वो आज भी है
दूसरे सत्र लखनऊ विश्वविद्यालय के सौ साल पर लखनऊ विश्वविद्यालय के समय के बदलाव पर
दूसरा सत्र- लखनऊ विश्वविद्यालय के सौ साल
दूसरा सत्र- लखनऊ विश्वविद्यालय के सौ साल में जस्टिस हैदर अब्बास रजा, प्रोफेसर भूमित्रिदेव, प्रोफेसर एसपी सिंह से वार्ता।
जस्टिस हैदर अब्बास रजा इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ से न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हैं। प्रो. एसपी सिंह हाल ही में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
औरत पैदा नहीं होतीं है, वो बना दी जाती है
पहले सत्र स्त्री साहित्य का संघर्ष पर गोवा की राज्यपाल रहीं मृदुला सिन्हा ने कहा कि साहित्यकार महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी संघर्ष करते हैं। जो साहित्य समाज को बदलता है, जो यथार्थ से निकलता है। कस्बे और महानगर में कोई फर्क़ नहीं होता है। वहीं, हिंदी साहित्य में कहानी एवं उपन्यास विधा में पहचान बना चुकी रजनी गुप्त ने भारतीय जेलों में महिलाओं के जीवन को लेकर कहा कि वहां स्त्री को मनुष्य ना समझने की पीड़ा दिखती है। कई अपराध ऐसे होते हैं जो दिखते हैं, कुछ अज्ञानता वश भी जेल में है। औरत पैदा नहीं होतीं है, वो बना दी जाती है। स्वतंत्रता, आत्म निर्णय, निजता ज़रुरी है। मेरे उपन्यास यथार्थ हैं, हमारे परिवारों में लोकतंत्र नहीं है। आत्म चेतना से सम्पन्न होते हैं, तभी आप न्याय के लिये लड़ सकते हैं।
प्रकृति ने महिलाओं को सर्जन की शक्ति दी है
स्त्री साहित्य का संघर्ष पर चर्चा करते हुए मृदुला सिंहा ने कहा कि महिला और पुरुषों का संघर्ष अलग देखना ठीक नहीं। इन सबको एक साथ देखने की जरूरत है। आज महिलाएं हर जगह। उनका संघर्ष सराहनीय है। प्रकृति ने महिलाओं को सर्जन की शक्ति दी है, जो महिला साहित्यकार जितना संघर्ष करती हैं, उनको उतनी सफलता मिलती है। साहित्यकार का काम तथ्य को झुठलाना नहीं है।
पहला सत्र स्त्री साहित्य का संघर्ष
पहले सत्र स्त्री साहित्य का संघर्ष में मृदुला सिन्हा, वर्तिका नंदा और रजनी गुप्त से चर्चा।
प्रोफाइल
- मृदुला सिन्हा : गोवा की राज्यपाल एवं भाजपा की केंद्रीय कार्यसमिति की सदस्य हैं। हिंदी साहित्य लेखन में सुविख्यात हैं।
- वर्तिका नंदा : पत्रकारिता, शोध एवं कविता के लिए पहचानी जाती हैं। मधुर दस्तक, थी, हूं...रहूंगी, रानियां सब जानती हैं प्रमुख कविता संग्रह है।
- रजनी गुप्त: हिंदी साहित्य में कहानी एवं उपन्यास विधा में पहचान है। एक नई सुबह, हाट बाजार जैसी कहानी संग्रह प्रकाशित हैं।