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Dhanwantri Jayanti 2022: निरोगी काया की कामना से जुड़ा है धनवंतरि की आराधना, देता है खास संदेश

Dhanwantri Jayanti 2022 धनवंतरि जयंती स्वास्थ्य के प्रति सजगता का एहसास कराती हैं। 23 अक्टूबर को धनवतंर‍ि जयंती मनाई जाएगी। आयुष मंत्रालय ने वर्ष 2016 से प्रत्येक वर्ष धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने की लिए घोषणा की थी।

By Jitendra Kumar UpadhyayEdited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 19 Oct 2022 05:44 PM (IST)
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Dhanwantri Jayanti 2022: मौसम में आए बदलाव से खुद को सचेत रहने का संदेश देता है पर्व।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। Dhanwantri Jayanti कार्तिक मास की शरद पूर्णिमा के बाद मौसम में आए बदलाव का असर हमारे शरीर पर पड़ता है। गर्मी से ठंड के एहसास के इस मौसम में मनाई जाने वाली धनवंतरि जयंती भी स्वास्थ्य के प्रति सजगता का एहसास कराती हैं। 23 अक्टूबर को एक बार फिर जयंती मनाई जाएगी। इस दिन भगवान धनवंतरि की पूजा होती है। राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के प्रोफेसर डा.संजीव रस्तोगी ने बताया कि निरोगी काया की कामना से जुड़ा है भगवान धनवंतरि की आराधना। मौसम में आए बदलाव से खुद को सचेत रहने का संदेश देने का पर्व है धनवंतर‍ि जयंती।

समुद्र मंथन से जुड़ा है कथानक

मान्यता है कि धनवंतरि त्रयोदशी (धनतेरस) को ही समुद्र मंथन से धन-धान्य एवं रत्नादि संपदा के स्वामी कुबेर का आविर्भाव हुआ। अत: दीपदान, मिठाइयां, नूतन वस्त्र, धातु-पात्र, नए बही खाते एवं कलम-दवात की पूजा भी व्यापारी वर्ग करता है। रात्रि देर तक बाजारों में क्रय-विक्रय का मेला चलता है।

स्वास्थ्य समृद्धि का पर्व

आयुर्वेदाचार्य व पूर्व राजवैद् डा.शिवशंकर त्रिपाठी ने बताया कि वास्तव में धनतेरस शारीरिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य समृद्धि का पर्व है। ऐसा काल चक्र चला कि हम शारीरिक स्वास्थ्य को भूल गए तथा सामाजिक स्वास्थ्य की प्रधानता के साथ धनतेरस को केवल सम्पदा विनिमय का पर्व मानने लगे। यह सब मुद्रा के मूल्यांकन की महत्ता के समाज में व्याप्त होने से जुड़ा हुआ है। वस्तुत: धनतेरस सभी के लिए स्वास्थ्य एवं सुख-समृद्धि का पर्व है।

इसलिए मनाई जाती है जयंती

आयुष मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से वर्ष 2016 से प्रत्येक वर्ष धनतेरस को 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने की लिए घोषणा की। भारतीय पौराणिक विश्वास के अनुसार मानव जीवन को सुगम बनाने के लिए बुद्धिजीवियों ने मिलकर सामाजिक विचार मंथन किया। दोनों ने एकमत से यह तय पाया कि जीवन चलाने के लिए नियंत्रण विधान एवं साधन संपन्नता अपेक्षित है। साधन प्राप्ति हेतु पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त जलराशि क्षीर सागर को लक्ष्य बनाकर समुद्र मंथन कर उससे प्राप्त प्रतीकों का प्रयोग जीवन निर्वाह हेतु आरम्भ किया।

समुद्र मंथन वास्तव में मानव जीवन में किये जाने वाले कर्म का प्रतीक है। समुद्र मंथन से हमे जो प्रेरणा मिलती है उसमें वैयक्तिक और सामाजिक दोनों प्रकार की संपदाओं का समावेश होता है। राजकीय आयुर्वेद महाविद्याल के प्रोफेसर डा.संजीव रस्तोगी ने बताया कि समुद्र मंथन से सुरों व असुरों ने शाश्वत एवं सनातन जीवन के प्रतीक अमृत को प्राप्त किया।

देवताओं के चिकित्सक

अमृत प्राप्ति का दिन शरद पूर्णिमा के रूप में प्राकृतिक मन को प्रसन्न एवं शीतल चंद्रमा के धवल प्रकाश में मनाया जाता है इसीलिए 'अमृत क्षीर भोजन की परंपरा शरद पूर्णिमा से जुड़ी है और उसे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। अमृत प्राप्त कर जीवन की सार्थकता का आभास होने पर स्वास्थ्य देवता का समुद्र से आविर्भाव हुआ। इस देवता का नाम धनवंतरि है। धनवंतरि को देवताओं के चिकित्सक, मानवों के लिए चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के प्रवर्तक और 24 अवतारों में से एक विष्णु के विग्रह, यज्ञ भोक्ता देवतत्व के रूप में माना जाता है।

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