मिर्गी की नई क्लासीफिकेशन, जरूरी नहीं की मरीज को पड़े दौरा
डॉ.सुनील प्रधान ने बताया कि मिर्गी के लक्षणों में व्यवहार परिवर्तन भी शामिल है। बलरामपुर अस्पताल के 150 वे स्थापना दिवस पर आयोजित हुई सीएमई।
By Anurag GuptaEdited By: Updated: Sat, 02 Feb 2019 08:55 PM (IST)
लखनऊ, जेएनएन। मिर्गी में यह जरूरी नहीं है कि मरीज को दौरा पड़े, मुंह से झाग निकले या वो बेहोश हो जाए। इसके अलावा भी मिर्गी के दौरों के दो प्रमुख लक्षण हैं, जिसमें मरीज का व्यवहार बदल जाता है या कुछ पल के लिए वो सब कुछ भूल जाता है। इन लक्षणों के आधार पर मिर्गी की नई क्लासीफिकेशन की गई है जिसे इंटरनेशनल जनरल में भेजा जाएगा। यह जानकारी एसजीपीआइ के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ.सुनील प्रधान ने बलरामपुर अस्पताल के 150 वें स्थापना दिवस पर दी।
झांड-फूंक कहकर हो जाती है अनदेखी
डॉ.सुनील प्रधान ने बताया कि मिर्गी के दौरे के सामान्य लक्षणों में अकडऩ, हाथ-पैर में झटके और बेहोश होना आदि होते हैं, लेकिन वहीं हमारे देश में मिर्गी के दौरे के कई अन्य लक्षण भी होते हैं। इसे स्टडी के आधार पर दो कैटेगरी में बांटा गया है। पहला व्यवहार परिवर्तन जिसमें व्यक्ति कुछ भी बोलता है उसे याद नहीं रहता है। इसमें कभी वो धार्मिक बातें बोलने लगता है तो कभी उल्टी सीधी बातें बोलने लगता है। जिसमें गांव के लोग अंधविश्वास से जोड़ देते हैं और इलाज नहीं करवाते हैं।
डॉ.सुनील प्रधान ने बताया कि मिर्गी के दौरे के सामान्य लक्षणों में अकडऩ, हाथ-पैर में झटके और बेहोश होना आदि होते हैं, लेकिन वहीं हमारे देश में मिर्गी के दौरे के कई अन्य लक्षण भी होते हैं। इसे स्टडी के आधार पर दो कैटेगरी में बांटा गया है। पहला व्यवहार परिवर्तन जिसमें व्यक्ति कुछ भी बोलता है उसे याद नहीं रहता है। इसमें कभी वो धार्मिक बातें बोलने लगता है तो कभी उल्टी सीधी बातें बोलने लगता है। जिसमें गांव के लोग अंधविश्वास से जोड़ देते हैं और इलाज नहीं करवाते हैं।
याद नहीं रहती हैं चीजें
दूसरे मामले में कुछ लोग पांच से 10 मिनट के लिए स्टेचू बनकर खड़े रह जाते हैं। इस तरह के लक्षण में मरीज को अपनी हालत के बारे में पता नहीं चलता है इसे आसपास के लोग या रिश्तेदार बताते हैं। दोनों ही लक्षणों में मरीज गिरता या बेहोश नहीं होता है। बॉडी स्टेंस के नाम से इंडियन जनरल में प्रकाशित इस शोध को इंटरनेशनल जनरल में प्रकाशित होने के लिए प्रस्तावित किया गया है। स्ट्रोक के मरीजों के लिए शुरू हुई नई थेरेपी
दूसरे मामले में कुछ लोग पांच से 10 मिनट के लिए स्टेचू बनकर खड़े रह जाते हैं। इस तरह के लक्षण में मरीज को अपनी हालत के बारे में पता नहीं चलता है इसे आसपास के लोग या रिश्तेदार बताते हैं। दोनों ही लक्षणों में मरीज गिरता या बेहोश नहीं होता है। बॉडी स्टेंस के नाम से इंडियन जनरल में प्रकाशित इस शोध को इंटरनेशनल जनरल में प्रकाशित होने के लिए प्रस्तावित किया गया है। स्ट्रोक के मरीजों के लिए शुरू हुई नई थेरेपी
डॉ.प्रधान ने बताया कि पैरालिसिस के मरीजों में ठीक होने के बाद भी उनके अंग मजबूती से काम नहीं करते हैं। मसल्स को मजबूत बनाने के सीएएसपी (कैप्स) फिजियोथेरेपी करवाई जा रही है। इसे कई मरीजों को भी फायदा हुआ है।
डिस्पेंसरी से लेकर 776 बेड का सफर
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केजीएमयू का कुलपति प्रो.एमएलबी भट्ट ने बताया कि बलरामपुर अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल है। यहां से निकले हुए कई चिकित्सक बड़े-बड़े संस्थानों में रह चुके हैं। अगर बलरामपुर अस्पताल की सुविधाएं बढ़ेगी तो केजीएमयू पर बर्डन भी कम होगा। निदेशक डॉ.राजीव लोचन ने बताया कि डिस्पेंसरी से लेकर पीएमएस के सबसे बड़े अस्पताल के रूप में बलरामपुर अस्पताल का सफर काफी अच्छा रहा है। यहां डॉ.सुनील प्रधान ने भी इंटर्नशिप की थी। इसके अलावा डॉ.एससी राय भी यहां 1960 में रह चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री राम प्रसाद गुप्ता, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अटल बिहारी वाजपेई का भी यहां इलाज हो चुका है। अब तक अस्पताल में न्यूरो, आर्थो, यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी समेत कई विभाग हैं।नाक, कान और गले में कुछ फंसने पर न करें घरेलू उपचार
डॉ.एससी श्रीवास्तव ने बताया अक्सर बच्चे नाक, कान और गले में कोई बाहरी चीजें जैसे सिक्के, बीज आदि फंसा लेते हैं। ऐसे में घरवाले परेशान हो जाते हैं, सबसे ज्यादा जरूरी है कि परेशान न होकर शांति से काम न लिया जाए। पीठ थपथपाना, या किसी चीज से कुछ निकालने की कोशिश न करे इससे और ज्यादा दिक्कत बढ़ सकती है। कार्यक्रम में आयुष्मान भारत के मरीज की लाइव सर्जरी भी की।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केजीएमयू का कुलपति प्रो.एमएलबी भट्ट ने बताया कि बलरामपुर अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल है। यहां से निकले हुए कई चिकित्सक बड़े-बड़े संस्थानों में रह चुके हैं। अगर बलरामपुर अस्पताल की सुविधाएं बढ़ेगी तो केजीएमयू पर बर्डन भी कम होगा। निदेशक डॉ.राजीव लोचन ने बताया कि डिस्पेंसरी से लेकर पीएमएस के सबसे बड़े अस्पताल के रूप में बलरामपुर अस्पताल का सफर काफी अच्छा रहा है। यहां डॉ.सुनील प्रधान ने भी इंटर्नशिप की थी। इसके अलावा डॉ.एससी राय भी यहां 1960 में रह चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री राम प्रसाद गुप्ता, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अटल बिहारी वाजपेई का भी यहां इलाज हो चुका है। अब तक अस्पताल में न्यूरो, आर्थो, यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी समेत कई विभाग हैं।नाक, कान और गले में कुछ फंसने पर न करें घरेलू उपचार
डॉ.एससी श्रीवास्तव ने बताया अक्सर बच्चे नाक, कान और गले में कोई बाहरी चीजें जैसे सिक्के, बीज आदि फंसा लेते हैं। ऐसे में घरवाले परेशान हो जाते हैं, सबसे ज्यादा जरूरी है कि परेशान न होकर शांति से काम न लिया जाए। पीठ थपथपाना, या किसी चीज से कुछ निकालने की कोशिश न करे इससे और ज्यादा दिक्कत बढ़ सकती है। कार्यक्रम में आयुष्मान भारत के मरीज की लाइव सर्जरी भी की।